अजित डोभाल के जाल में फंसा मेहुल चोकसी! आखिर क्या है पूरी इनसाइड स्टोरी
By हरीश गुप्ता | Published: June 3, 2021 12:00 PM2021-06-03T12:00:03+5:302021-06-03T12:00:03+5:30
मेहुल चोकसी डोमिनिका में जेल में बंद है। ऐसे में ये अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि चोकसी को सीधे वहां से भारत लाया जा सकता है। इन सबके बीच अजित डोभाल की इस पूरे ऑपरेशन में भूमिका पर भी चर्चा तेज है।
मेहुल चोकसी के मामले ने एक बार फिर दिखाया है कि देश के 76 वर्षीय शीर्ष स्पाईमास्टर अजित डोभाल के भीतर अभी भी दमखम है. पता चला है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) और स्ट्रेटेजिक पॉलिसी ग्रुप (एसपीजी) से तैयार की गई एक कोर टीम ने सीधे अजित डोभाल के अधीन काम करते हुए ‘ऑपरेशन चोकसी’ को अंजाम दिया.
नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जब से बैंकों का हजारों करोड़ रुपए निगलकर भारत से गायब हुए हैं, तब से प्रधानमंत्री मोदी रात-दिन एक कर रहे हैं. मोदी इस बात से नाराज थे कि उनकी तस्वीर उनके साथ पहले पन्ने पर छपी थी, जैसे कि वह उन्हें संरक्षण दे रहे हों. उन्हें लाने का जिम्मा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को सौंपा गया.
नीरव मोदी लंदन भाग गया और चौकसी एंटीगुआ में छोटे से द्वीप का नागरिक बन गया. मामले की जानकारी रखने वालों का कहना है कि नीरव मोदी के ठिकाने का पता लगाने के लिए डोभाल ने लंदन में ब्रिटिश मूल के तीन लोगों को विशेष रूप से काम पर रखा था. उन्होंने ढूंढ़ कर उसका फोटो खींचा और काम हो गया.
भारतीय जासूस ब्रिटेन में सीधे काम नहीं कर सके थे. अब उसकी गिरफ्तारी के बाद कानूनी कार्रवाई की जा रही है. लेकिन चौकसी के मामले में, उसकी एंटीगुआई नागरिकता ने एक समस्या पैदा कर दी और डोभाल ने अपने साउथ ब्लॉक कार्यालय में बैठकर एक ‘गुप्त ऑपरेशन’ करने की योजना बनाई.
चोकसी को एक महिला ने अपनी शाम की सैर के दौरान कैसे ‘हनीट्रैप’ में फंसाया, इस खूबसूरत महिला और उसके साथी को किसने काम पर रखा, कैसे भगोड़े को एंटीगुआ में इस महिला के अपार्टमेंट में झांसा देकर बुलाया गया, एक कार में बांधकर डोमिनिका ले जाया गया, इसके पीछे पूरी एक कहानी है.
यह आकर्षक कहानी अजित डोभाल की गुप्त डायरी का सिर्फ एक और रोमांचक अध्याय है जिसे शायद कभी नहीं जाना जा सकेगा.
मुंबई पुलिस ने बिगाड़ी थी डोभाल की योजना
डोभाल गुप्त अभियानों में माहिर हैं, चुपचाप काम करते हैं और केवल कुछ मुट्ठी भर लोग ही जानते हैं कि कैसे उन्होंने मिजो नेशनल फ्रंट के विद्रोह के दौर में लालडेंगा के सात कमांडरों में से छह पर जीत हासिल की, बर्मा और चीनी क्षेत्र में अराकान में वर्षो तक भूमिगत रहे और सिक्किम के भारत में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1988 में रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाया, ऑपरेशन ब्लैक थंडर से कुछ दिन पहले अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के अंदर गए और 1999 में कंधार में अपहृत इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 की रिहाई के लिए बातचीत की. उनके शानदार रिकॉर्ड के कारण ही मनमोहन सिंह सरकार ने जुलाई 2004 में उन्हें आईबी निदेशक बनाया.
डोभाल के सेवानिवृत्त होने के बाद भी यूपीए ने ‘ऑपरेशन दाऊद इब्राहिम’ में उनकी सेवाएं लीं. डोभाल ने छोटा राजन को लालच दिया, जो दाऊद से अलग हो गया था और 2000 में बैंकॉक में अपने ऊपर हुए हमले का बदला लेना चाहता था.
आर.के. सिंह के अनुसार, जो यूपीए काल में गृह सचिव थे और मोदी सरकार में मंत्री हैं, दाऊद को खत्म करने की योजना के अंतर्गत छोटा राजन के आदमियों को एक गुप्त स्थान पर प्रशिक्षित किया गया था. वास्तव में राजन के शार्प-शूटर्स, विक्की मल्होत्र और फरीद तनाशा को डोभाल पांच-सितारा होटल में ब्रीफ कर रहे थे और दुबई पहुंचने के लिए फर्जी यात्र दस्तावेज आदि सौंप रहे थे. लेकिन तभी चीजें बुरी तरह से गलत हो गईं क्योंकि मुंबई से पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए अचानक वहां पहुंच गई.
यह शायद पहली बार था जब भारतीय जेम्स बॉन्ड (केवल पर्दे के पीछे) ने अपना आपा खोया. उन्होंने डीसीपी मुंबई के नेतृत्व वाली टीम को समझाने की कोशिश की कि वे कौन हैं. लेकिन सब बेकार चला गया.
अंडरवर्ल्ड डॉन को खत्म करने के सबसे दुस्साहसी अभियानों में से एक भारत की सुरक्षा एजेंसियों के बीच एक अप्रिय संघर्ष के कारण विफल हुआ था. इस तरह के विफल ऑपरेशन के बाद ही एक नया तंत्र स्थापित किया गया है जहां सभी खुफिया एजेंसियां एनएसए के कमान के अधीन हैं.
बदलाव की बयार!
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