वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: लॉकडाउन में कितनी ढील मिले?
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: April 10, 2020 20:39 IST2020-04-10T20:39:36+5:302020-04-10T20:39:36+5:30
क्या लॉकडाउन एकदम उठा लिया जाए? यह अब तक शायद उठा लिया जाता लेकिन कोरोना अब गांव-गांव तक फैल गया है। जिस बीमारी ने शुरू में सिर्फ विदेश यात्रियों और उनके निकट लोगों को छुआ था, वह अब रिक्शावालों, रेहड़ीवालों और झोपड़पट्टीवालों तक फैल गई है।

(प्रतीकात्मक तस्वीर)
सभी लोग यह सोच रहे हैं कि 15 अप्रैल से लॉकडाउन हटेगा या नहीं? इस सवाल का जवाब हां या ना में, दोनों ही ठीक नहीं होगा क्योंकि यह जारी रहता है तो देश के 60-70 करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे। वे अपनी रोजी-रोटी को तरस जाएंगे। सरकारें और समाजसेवी संस्थाएं उन्हें घर बैठे-बैठे कब तक खिला सकती हैं? अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का कहना है कि भारत की सकल विकास दर 5 प्रतिशत से गिरकर 2 प्रतिशत तक हो सकती है। खेती, कल-कारखानों और व्यापार को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई में बरसों बीत जाएंगे।
निराशा, उदासीनता और अंधकारमय भविष्य के डर से नागरिकों में जो मानसिक बीमारियां फैलेंगी, उनके कारण अपराधों में वृद्धि हो सकती है। तो क्या करें? क्या लॉकडाउन एकदम उठा लिया जाए? यह अब तक शायद उठा लिया जाता लेकिन कोरोना अब गांव-गांव तक फैल गया है। जिस बीमारी ने शुरू में सिर्फ विदेश यात्रियों और उनके निकट लोगों को छुआ था, वह अब रिक्शावालों, रेहड़ीवालों और झोपड़पट्टीवालों तक फैल गई है। कुछ गलतफहमी के शिकार लोग अब भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।
डर यही है कि यदि सरकारें लॉकडाउन एकदम हटा लें तो कहीं भारत में भी इटली और अमेरिका जैसा विस्फोट न हो जाए। लेकिन सरकारों को यह भी देखना होगा कि यह लॉकडाउन कहीं कोरोना से भी ज्यादा जानलेवा सिद्ध न हो जाए। इसीलिए बेहतर होगा कि सरकारें और आम जनता मध्यम मार्ग अपनाएं। अभी मुश्किल से दो दर्जन जिले सारे देश में ऐसे कोरोनाग्रस्त हैं, जिनमें पूर्ण कर्फ्यू लगाया जा सकता है। उनमें आना-जाना बिल्कुल बंद हो।
लगभग 200 जिलों को आंशिक रूप से खोला जा सकता है और 400 जिले ऐसे हैं, जिनमें नागरिक सारी सावधानियां बरतते हुए अत्यंत अनिवार्य और अपरिहार्य काम करें। कोरोना की जांच राजस्थान के भीलवाड़ा जैसी हो और सरकारी सख्ती दिल्ली जैसी हो। लोगों की जांच के बाद उन्हें अपने गांवों तक जाने देने का खतरा भी मोल लिया जा सकता है! शिविरों में पड़े लोग बेहद परेशान हैं और वहां संक्रमण का खतरा ज्यादा है। लेकिन गांव पहुंच कर कोरोना हो गया तो फिर क्या होगा, यह भी बड़ा सवाल है।