ब्लॉग: योगी आदित्यनाथ के तेवर दिखाने से पसोपेश में हाईकमान
By हरीश गुप्ता | Published: June 10, 2021 10:48 AM2021-06-10T10:48:14+5:302021-06-10T10:48:14+5:30
उत्तर प्रदेश में अगले साल 2022 में विधानसभा चुनाव है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ को लेकर कई तरह की खबरें बीजेपी के अंदर से ही सामने आने लगी है। इस बीच योगी ने अपना रूख स्पष्ट कर दिया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया है कि वे न तो असम के सर्बानंद सोनोवाल हैं और न ही उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत, जिन्हें आसानी से हटा दिया जाए. उन्होंने पार्टी नेतृत्व तक यह बात भी पहुंचा दी है कि जब तक वे मुख्यमंत्री हैं, तब तक अपने हिसाब से ही प्रशासन चलाएंगे.
जब भाजपा महासचिव बी.एल. संतोष हाल ही में असंतुष्टों से बातचीत करने के लिए लखनऊ गए तो योगी को भी पार्टी मुख्यालय में आमंत्रित किया गया था. बाद में, बैठक मुख्यमंत्री के निवास पर हुई. पार्टी हाईकमान कभी भी योगी के पक्ष में नहीं था और 2017 में मनोज सिन्हा को स्थापित करना चाहता था. लेकिन योजना सिरे से ही नाकाम हो गई और योगी विजयी होकर उभरे.
इसके बाद दो उपमुख्यमंत्री उनके ऊपर थोप दिए गए और अमित शाह के नजदीकी तथा पार्टी के राज्य महासचिव सुनील बंसल को अधिकार संपन्न किया गया. लेकिन कोई भी योगी को झुका नहीं सका. इसके उलट मोदी और शाह के बाद योगी भाजपा के स्टार प्रचारक बनकर उभरे.
इसी समय पीएमओ के विश्वस्त अधिकारी ए.के. शर्मा को योगी के कद को सीमित करने के लिए यूपी भेजा गया था. वे एमएलसी बने और ‘भूमिहार’ नेता को लखनऊ में नए सीएम के रूप में पेश किया गया. पंचायत चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन का दोष योगी के सिर मढ़ा गया. लेकिन योगी ने संतोष को बताया कि शर्मा वाराणसी के प्रभारी थे और बंसल अयोध्या चुनाव संभाल रहे थे जहां पार्टी हारी थी.
उन्हें कोविड के खिलाफ युद्ध को सही तरीके से नहीं संभाल पाने के लिए दोषी ठहराया गया था और गंगा में बहते शवों की खबरों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं. योगी को हटाने या उन्हें शिवराज सिंह चौहान की तरह झुकाने के लिए पीएम के आवास और लखनऊ में बैठकें हुईं. चौहान को कभी भाजपा के पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था. लेकिन योगी कुछ और ही मिट्टी से बने हैं और उन्होंने बी.एल. संतोष से सीधी बात की.
उन्होंने कहा कि यूपी ने देश में सबसे अधिक 5.10 करोड़ कोरोना टेस्ट किए हैं और प्रतिदिन 4 लाख टीके लगाए हैं. यूपी की 7 दिन की पॉजीटिविटी रेट सबसे कम 0.3 प्रतिशत और मृत्यु दर 1.3 प्रतिशत से कम है. गंगा में तैरते शवों के संबंध में उन्होंने कहा कि ‘जल प्रवेश’ की प्रथा प्राचीन काल से यूपी और बिहार में प्रचलित रही है.
यूपी को भाजपा की एक उपलब्धि के तौर पर पेश करने की बजाय उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि वह इन फरमानों के आगे झुकने के बजाय पद छोड़ देंगे. आलाकमान ने स्थिति को भांपने के बाद पीछे हटने का फैसला किया.
आरएसएस का योगी को पूर्ण समर्थन
रिपोर्टो के विपरीत, यह स्पष्ट रूप से उभर रहा है कि भगवाधारी साधु से राजनेता बने योगी, जो अब हिंदुत्ववादी ताकतों के प्रतीक हैं, को आरएसएस का पूरा समर्थन मिल रहा है. संघ परिवार में योगी का कद कई गुना बढ़ गया है, जिन्हें मोदी के बाद के दौर में दूसरी पंक्ति के नेताओं में एक प्रमुख नेता के रूप में देखा जाता है.
आरएसएस नेतृत्व योगी को खोने के लिए तैयार नहीं है, जैसा कि कल्याण सिंह के मामले में हुआ था, जिन्हें 1999 में वाजपेयी के कहने पर बाहर का दरवाजा दिखाया गया था. भाजपा ने 2002 में इसकी भारी कीमत चुकाई और फिर से सत्ता में आने के लिए उसे 15 साल तक इंतजार करना पड़ा.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को फिर से सीएम के रूप में यूपी भेजने के लिए तैयारी कर ली गई थी लेकिन आरएसएस ने गलती नहीं दोहराने के लिए दृढ़ संकल्प किया था. कहा गया कि अगला चुनाव योगी के नेतृत्व में ही लड़ना होगा. सौदेबाजी के रूप में, दिल्ली के पसंदीदा ए.के. शर्मा को मंत्री पद दिया जा सकता है, लेकिन उपमुख्यमंत्री पद नहीं.
इस बीच, ऐसी खबरें हैं कि अमित शाह, जिन्होंने हाल ही में पश्चिम बंगाल सहित 2014 के बाद से सभी राज्य विधानसभा चुनावों में बड़ी भूमिका निभाई है, यूपी चुनाव में सुरक्षित दूरी बनाए रख सकते हैं. हालांकि वे प्रचार करेंगे लेकिन मुख्य भूमिका नहीं निभाएंगे. शाह को सीमावर्ती संवेदनशील राज्य पंजाब के चुनावों पर ध्यान देना पड़ सकता है जहां पार्टी अव्यवस्थित है. अकाली दल एनडीए से बाहर हो गया है.
धनखड़ स्थानांतरण के इच्छुक
बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कोलकाता से स्थानांतरित होने की इच्छा व्यक्त की है. उन्हें लगता है कि पूर्व में जो कुछ हुआ है, उसके बाद राजभवन में शांति से रहना और मुख्यमंत्री के साथ सद्भाव बनाए रखना मुश्किल होगा.
कई राज्यपालों के पास दोहरा प्रभार होने के कारण राज्यपालों का परिवर्तन अवश्यंभावी है. दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल सेवानिवृत्त होने वाले हैं और सीवीसी संजय कोठारी के नाम का उल्लेख किया जा रहा है जो इस महीने के अंत में पद छोड़ने वाले हैं.