हरीश गुप्ता का ब्लॉग: मोदी कैबिनेट में फेरबदल के लिए प्रतिभाओं की तलाश
By हरीश गुप्ता | Published: October 8, 2020 02:06 PM2020-10-08T14:06:42+5:302020-10-08T14:06:42+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में जल्द ही फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को भी अचानक बिहार चुनाव का प्रभारी बनाए जाने से संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री किसी योजना पर काम कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए प्रतिभाओं की खोज कर रहे हैं. अपने करीबी दोस्त अरुण जेटली और कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं के निधन के बाद, एस. जयशंकर, हरदीप सिंह पुरी जैसे पेशेवरों को मोदी लाए और महत्वपूर्ण वित्त मंत्रलय में निर्मला सीतारमण को पदोन्नत किया. लेकिन कुछ खालीपन अभी भी वे महसूस कर रहे थे.
कुछ हफ्ते पहले उन्होंने 10 प्रमुख मंत्रियों को अपने मंत्रलयों के प्रदर्शन के बारे में एक प्रस्तुति देने के लिए कहा, जिसमें वित्त, रेलवे, बुनियादी ढांचा आदि शामिल थे. बताया जाता है कि मोदी उनमें से कुछ से, विशेष रूप से सुधारों की धीमी गति से निराश थे. उनमें से कुछ के बारे में कुछ प्रतिकूल रिपोर्टे भी हैं.
मोदी की एक और चिंता यह है कि वित्त मंत्री का लोगों से और यहां तक कि पार्टी के लोगों से भी जुड़ाव नहीं हो पाया है. वित्त मंत्री केवल एक अर्थशास्त्री नहीं होता, बल्कि एक राजनीतिक व्यक्ति होता है जिसका समाज के विभिन्न वर्गो के साथ जुड़ा होना भी आवश्यक है. नॉर्थ ब्लॉक और आम लोगों के बीच संवादहीनता को सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को व्याख्यायित करने में महसूस किया जाता है.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को अचानक बिहार चुनाव का प्रभारी बनाए जाने से संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री किसी योजना पर काम कर रहे हैं. यह परिवर्तन आकस्मिक है और इससे भाजपा के मौजूदा ढांचे को झटका लगा है, जहां कुछ लोगों का वर्चस्व भंग हुआ है.
फड़नवीस एक सख्त सौदेबाज निकले, जबकि उनके पूर्ववर्तियों ने हमेशा नीतीश कुमार की पसंद के आगे घुटने टेके थे. अगर यह दांव सफल रहा तो केंद्र में फड़नवीस का कद और बढ़ जाएगा. इसके बाद, उन्हें केंद्र में लाने और केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.
राम माधव कैबिनेट में?
इस बात को लेकर अटकलें तेज हैं कि जब फेरबदल होगा तो मोदी मंत्रिमंडल में किसको शामिल किया जा सकता है. शिवसेना और अकाली दल बाहर निकल चुके हैं और जद (यू), अन्नाद्रमुक शामिल नहीं हुए हैं जिससे कई लोगों को दोहरा-तिहरा प्रभार संभालना पड़ रहा है.
राम माधव के विरोधी कह रहे हैं कि असम के शक्तिशाली मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने महासचिव के रूप में उनकी बेदखली की योजना तैयार की.
राजधानी में चर्चा है कि माधव मुखर हैं और विदेशी मामलों तथा पूवरेत्तर व जम्मू-कश्मीर के मामले में पारंगत हैं. वे आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक हैं और अगर उन्हें शामिल किया जाता है तो वे मंत्रिमंडल में दूसरे आरएसएस प्रचारक होंगे. पहले खुद मोदी हैं. दिलचस्प बात यह है कि राम माधव ने अपने ट्विटर अकाउंट से भाजपा का संदर्भ हटा दिया है.
सुशांत मामले में सीबीआई की ‘ना’
सीबीआई चीफ आर.के. शुक्ला ने एक सख्त आदमी के रूप में काम किया, न कि दबाव में आकर, जैसा कि पिछले साल उनकी नियुक्ति के समय सोचा गया था. मध्य प्रदेश कैडर से संबंधित एक विनम्र और लो-प्रोफाइल आईपीएस अधिकारी शुक्ला ने सुशांत सिंह राजपूत मामले में झुकने से इनकार कर दिया.
उन्होंने अपने कनिष्ठों से कहा कि टीवी चैनलों द्वारा निर्देशित हुए बिना वे प्रक्रिया के अनुसार सुशांत मामले की जांच करें. जैसा कि 3 सितंबर को इस कॉलम में लिखा गया था कि सीबीआई किसी के दबाव में काम नहीं करेगी. हमने यह भी कहा था कि सीबीआई निर्दोष लोगों को नहीं फंसाने के अपने ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखेगी.
वह कुछ मामलों में धीमी हो सकती है, दूसरे तरीके अपना सकती है लेकिन किसी निर्दोष को कभी नहीं फंसा सकती है. बिहार लॉबी ने विभिन्न चैनलों के माध्यम से सुशांत के मामले को हत्या निरूपित करवाने की बहुत कोशिश की. लेकिन मिलनसार शुक्ला मुस्कुराते हुए अपने ही तरीके से काम करते रहे.
एनसीबी भी इस बात को अच्छी तरह से जानती है कि ड्रग के मामले में छोटी-छोटी मछलियों को फंसाकर एजेंसी को प्रशंसा नहीं मिल रही है. देखना होगा कि दिल्ली में मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के पसंदीदा, एनसीबी प्रमुख राकेश अस्थाना का अगला कदम क्या होगा.
भाजपा ने फेंकी चिराग की गुगली, नीतीश ढेर
लोजपा नेता चिराग पासवान के ‘नीतीश तुम्हारी खैर नहीं, मोदी तुझसे बैर नहीं’ जैसे नारे के बारे में किसी को भी अपना फैसला सुनाने से पहले धीरज रखना चाहिए. जाहिर है, वे चाहते हैं कि उनके पिता रामविलास पासवान बिहार में नीतीश कुमार को निशाने पर लेते हुए केंद्र में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री बने रहें.
लोजपा ने 2015 के चुनाव में बिहार में 243 में से दो विधानसभा सीटें जीती थीं. पासवान के कद को छोटा करने के लिए नीतीश कुमार पुरजोर कोशिश कर रहे थे. हो सकता है कि चिराग भाजपा के साथ अपना हिसाब-किताब बिठा रहे हों और हालात को देखते हुए कुछ फायदा उठाने की, अगर मिल सके तो, कोशिश में हों.
ऐसे विश्लेषण करने वालों की कमी नहीं है जो महसूस करते हैं कि भाजपा लगभग दो दशकों से ‘बिग ब्रदर’ की भूमिका निभा रहे नीतीश कुमार की काट के लिए चिराग पासवान को उकसा रही है. चुनावों से पहले चिराग की गुगली ने नीतीश को चकरा दिया है.