ब्लॉग: अमित शाह ने संभाली पार्टी की चुनावी कमान
By हरीश गुप्ता | Updated: July 20, 2023 11:34 IST2023-07-20T11:26:52+5:302023-07-20T11:34:18+5:30
अमित शाह एक तरह से राजस्थान में जीत हासिल करने को लेकर बेहद आश्वस्त हैं. मध्य प्रदेश में भी बहुत मेहनत कर रहे हैं, जहां सभी सर्वेक्षणों में कहा गया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमजोर स्थिति में हैं.

ब्लॉग: अमित शाह ने संभाली पार्टी की चुनावी कमान
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हार के बाद यह साफ तौर पर सामने आ रहा है कि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इस साल के अंत में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की कमान अपने हाथ में ले ली है. अमित शाह ने इन पांच राज्यों में पार्टी प्रभारियों के अलावा अपने कुछ वफादार मंत्रियों को राज्य प्रभारी के रूप में तैनात किया है.
प्रधानमंत्री हिमाचल में हार से बेहद निराश थे जहां भाजपा के सत्ता बरकरार रखने की अच्छी संभावनाएं थीं. लेकिन कर्नाटक में हार के बाद, अमित शाह इन राज्यों में पार्टी के गुमराह नेताओं से कठोरता से निपट रहे हैं. दूसरे दलों के नेताओं को स्वीकार करने और अलग हुए सहयोगियों को संतुष्ट करने की खुली नीति एक मेगा योजना का हिस्सा है.
अमित शाह एक तरह से राजस्थान में जीत हासिल करने को लेकर बेहद आश्वस्त हैं और मध्य प्रदेश में बहुत मेहनत कर रहे हैं, जहां सभी सर्वेक्षणों में कहा गया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमजोर स्थिति में हैं. लेकिन अमित शाह ने तय किया कि इतनी देर से अब मुख्यमंत्री बदलने से काम नहीं चलेगा और पूरा समर्थन दिया.
उधर चौहान ने मतदाताओं को लुभाने के लिए एक के बाद एक मुफ्त चीजें देने के लिए राज्य का खजाना खोल दिया है और प्रधानमंत्री मोदी के राज्यों को दिए गए इस उपदेश को हवा में उड़ा दिया है कि चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की वस्तुएं बांटने के प्रलोभनों में न पड़ें. अमित शाह अभी भी भूपेश बघेल का मुकाबला करने के लिए एक चेहरा ढूंढ़ रहे हैं. तेलंगाना छोड़कर भाजपा को कम से कम राजस्थान, मध्य प्रदेश और मिजोरम में जीत का भरोसा है.
सहयोगियों की तलाश
यह एक विचित्र स्थिति है जो राजनीतिक क्षेत्र में पहले कभी नहीं देखी गई, जहां सत्तारूढ़ और प्रमुख विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यथासंभव नए सहयोगियों को जोड़ने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. भाजपा ने अगर तीन दर्जन से अधिक पार्टियों के एनडीए में होने का दावा किया है तो कांग्रेस ने भी बेंगलुरु में 26 पार्टियों के बड़े आंकड़े का दावा किया है.
अधिक से अधिक सहयोगियों को पाने की भाजपा की बेताबी काफी आश्चर्यजनक है, क्योंकि तथ्य यह है कि एनडीए से जुड़े 24 दलों के पास लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है और सात के पास सिर्फ एक लोकसभा सीट है.
मई 2019 में मोदी की जीत के बाद लगभग चार वर्षों तक भाजपा ने शायद ही एनडीए की कभी बैठक की. लेकिन अचानक उसने रणनीति बदल दी और 2024 में एनडीए की लोकसभा सीटों का आंकड़ा 400 तक पहुंचाने के लिए सभी लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए.
भाजपा के कदम को भांपते हुए, कांग्रेस नेतृत्व भी अधिक से अधिक सहयोगियों को खुश करने के लिए अपनी सीटों की कीमत पर अथक प्रयास कर रहा है. कांग्रेस ने दिल्ली सेवा अध्यादेश पर आम आदमी पार्टी की मांग मानकर जहां कड़वी गोली निगल ली है, वहीं वह सहयोगियों को संतुष्ट करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है.
गांधी परिवार ने अपने अहंकार को परे रख दिया है और अपनी लोकसभा सीटों को तीन अंकों तक ले जाने के लिए पार्टी सहयोगियों के आगे झुक रही है ताकि मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार बनाया जा सके. कांग्रेस के 26 दलों के गठबंधन की पहुंच लोकसभा में बेहतर है क्योंकि 18 दलों के पास कम से कम एक या अधिक लोकसभा सांसद हैं.
भाजपा के अतिरिक्त प्रयास करने का एक कारण यह है कि उसके पास 160 कमजोर लोकसभा सीटें हैं. यहां तक कि 224 लोकसभा सीटों में, जहां उसे 50% से अधिक वोट मिले और शेष 79 पर अच्छे अंतर के साथ जीत दर्ज की थी, उसे 2024 में इस आंकड़े को बरकरार रखने की चिंता है.
भाजपा-आरएसएस में बढ़ रही बेचैनी!
एनडीए में सभी प्रकार के दलों और नेताओं को शामिल करने के लिए भाजपा नेतृत्व द्वारा अपनाई गई खुले दरवाजे की नीति ने कैडर में भारी नाराजगी पैदा की है. भाजपा की मदद करने के लिए दशकों तक कड़ी मेहनत करने वाला आरएसएस कुछ हद तक परेशान है क्योंकि पुराने वफादारों को धीरे-धीरे बाहर किया जा रहा है जबकि दलबदलुओं को बड़े पद दिए जा रहे हैं और उन्हें राज्यों और यहां तक कि केंद्र में भी जगह मिल जाती है.
ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा की अलग तरह की पार्टी होने की छवि को नुकसान पहुंचा है और केवल पीएम मोदी की साफ छवि के कारण ही मतदाता भाजपा को वोट देना जारी रख रहे हैं. बढ़ती अशांति के परिणामस्वरूप कर्नाटक और अन्य जगहों पर विधानसभा चुनावों में हार हुई.
यहां तक कि महाराष्ट्र में भी भाजपा को एहसास हुआ कि अकेले शिवसेना को तोड़ने से चुनावी लाभ नहीं मिल सकता है और उसने अजित पवार को भी शामिल करने का फैसला किया. लेकिन चुनौती 152 विधानसभा सीटें जीतने की होगी. भाजपा ने 2024 के चुनावों के लिए तैयारी की है, जबकि उसके दो मजबूत सहयोगी आधी सीटों की मांग कर रहे हैं.
भाजपा आलाकमान अब पुराने वफादारों को खुश रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहा है. जुलाई 2021 में कैबिनेट फेरबदल के दौरान, एक दर्जन लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. जबकि इनमें से अधिकांश नेता 75 वर्ष की निर्धारित आयु सीमा से काफी नीचे थे.
राहुल ने दीक्षित का घर क्यों चुना?
राहुल गांधी की सोच और शैली में बड़ा बदलाव आया है क्योंकि वे खुद को एक आम आदमी के रूप में अधिक से अधिक प्रदर्शित करना चाहते हैं. उनकी भारत-जोड़ो-यात्रा के बाद यह बदलाव और अधिक दिखाई देने लगा. अयोग्य ठहराए जाने के बाद उन्होंने समय सीमा से पहले ही सरकारी बंगला खाली कर दिया.
शुरुआती दौर में वह सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ में शिफ्ट हुए लेकिन निजामुद्दीन में किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर किराए का घर ढूंढ़ते रहे. इससे दो संकेत गए-एक तो यह कि उनके पास दिल्ली में अपना कोई घर नहीं है और दूसरा, उन्होंने जोरबाग या गोल्फ लिंक जैसे प्रमुख इलाके में एक बहुत भव्य घर नहीं चुना. जल्द ही वह हुमायूं का मकबरा पार्क में सुबह की सैर करते और लोगों से मिलते-जुलते पाए जा सकते हैं.