ब्लॉग: समाज को संस्कारित करने में गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण
By गिरीश्वर मिश्र | Published: July 3, 2023 09:10 AM2023-07-03T09:10:25+5:302023-07-03T09:11:46+5:30
चैट जीपीटी शिक्षक को विस्थापित करने को उत्सुक खड़ा हो रहा है. हमें बड़ी सावधानी से सोचना होगा कि इस तरह के उपाय शिक्षा में कहां रहेंगे.
ज्ञान की सामर्थ्य देता है गुरु,देश की सांस्कृतिक परंपरा में व्यक्ति और समाज के जीवन में गुरु एक प्रस्थान-बिंदु के रूप में पहचाना और स्थापित किया गया है. समाज की ओर से शिक्षक को यह दायित्व मिला है कि वह वर्तमान में रहते हुए अतीत और भविष्य को जोड़ने का काम करता रहे.
शिक्षा का भारतीय परिदृश्य आज तरह-तरह के विकल्पों की तलाश से जूझ रहा है. इसके बीच शिक्षा के प्रति बहुत दिनों से चलती चली आ रही सरकार की गहरी उदासीनताओं के चलते सरकारी स्कूल-काॅलेज और विश्वविद्यालय अब दुर्दशा की स्थिति को प्राप्त होते जा रहे हैं.
अयोग्य शिक्षकों के साथ गुरु की छवि धूमिल हो रही है और सालों-साल एडहाक व्यवस्था के साथ अध्यापन का कार्य अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पा रहा है. कई पीढ़ियां इसी माहौल में तैयार हो चुकी हैं.
आज अधिकांश संस्थाएं अध्यापकों की बढ़ती कमी, शिक्षण-प्रशिक्षण की सुविधाओं के अभाव और पाठ्यक्रमों तथा पाठ्यचर्या की कालबाह्यता की समस्याओं से वर्षों से लगातार जूझ रही हैं. इन सबसे शिक्षा की गुणवत्ता के साथ समझौता हो रहा है. सन् 2020 की नई शिक्षा नीति ने कई मूलभूत बदलावों का संकेत किया था, चर्चाएं भी खूब हुईं पर शिक्षा अभी भी अस्त-व्यस्त है, अस्पष्टताएं भी बनी हुई हैं.
गुरु की संस्था का व्यवसायीकरण अब बाजार की तर्ज पर किया जाने लगा है.
ज्ञान के नित्य नए-नए और जटिल से जटिल क्षेत्र भी उभरने लगे हैं, खास तौर पर ज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ज्ञान की नई-नई विशिष्टताएं स्थापित हो रही हैं. ऐसे में प्रतिभा के साथ प्रशिक्षण भी अत्यंत आवश्यक होता जा रहा है. दिन-प्रतिदिन होने वाले नए आविष्कारों के साथ वर्तमान प्रौद्योगिकी पुरानी पड़ती जा रही है. ज्ञान की इस वृहद यात्रा में सबकी संलग्नता अधिकाधिक धन उगाही पर ही केंद्रित होती जा रही है. दुर्भाग्य से ज्ञान की आर्थिकी की यह कथा आश्वस्ति की जगह भय पैदा करने वाली हो रही है।
इस तरह के विकास की राह कितनी हिंस्र होती जा रही है, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि ज्ञान और तकनीकी के उत्कर्ष के साथ इक्कीसवीं सदी अभूतपूर्व युद्ध और हिंसा की साक्षी हो रही है. याद रखना जरूरी है कि तकनीकी तांडव का महानायक कृत्रिम बुद्धि है. संचार, स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा सभी क्षेत्रों में आज कृत्रिम बुद्धि की बात हो रही है और उसके हानि-लाभों का आकलन हो रहा है.
चैट जीपीटी शिक्षक को विस्थापित करने को उत्सुक खड़ा हो रहा है. हमें बड़ी सावधानी से सोचना होगा कि इस तरह के उपाय शिक्षा में कहां रहेंगे. फिलहाल वह मानव की कृति है पर मानव नहीं है. हमें शिक्षा के तीनों अंगों-गुरु, शिष्य और ज्ञान के मायने फिर से समझने होंगे.