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राकेश गुप्ता का ब्लॉग: जीएसटी और सहकारी संघवाद के परीक्षण का समय

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 8, 2020 09:45 IST

जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर को राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए लाया गया था. हालांकि कोविड-19 के बाद आर्थिक मंदी के चलते जीएसटी राजस्व संग्रह पूरी तरह से ठप हो गया और राज्यों को मुआवजा देने के लिए उपकर बेहद अपर्याप्त है.

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वित्त विषय पर स्थायी संसदीय समिति की हालिया बैठक में, वित्त मंत्रलय ने वर्तमान परिस्थितियों में राज्यों को क्षतिपूर्ति (जीएसटी) करने में पूरी तरह से असमर्थता व्यक्त की. केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने इसे विश्वासघात कहा है. अन्य वित्त मंत्रियों (मुख्य रूप से गैर एनडीए राज्यों के) ने भी राज्यों को मुआवजा नहीं देने के विचार की आलोचना की, क्योंकि जीएसटी लागू करते समय इसकी गारंटी दी गई थी.

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को एक क्रांतिकारी उपाय के रूप में अपनाया गया था जो पूरे देश को एकल बाजार के रूप में एकीकृत करेगा और देश की जीडीपी को बढ़ावा देगा. विभिन्न राजनीतिक दलों, केंद्र और राज्यों ने लगभग सर्वसम्मति से संवैधानिक संशोधन अधिनियम के जरिये स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधार को अंजाम दिया. इसके जरिये ऐतिहासिक मध्यरात्रि को ‘सहकारी संघवाद’ (एक राष्ट्र-एक बाजार-एक कर) की अवधारणा को सामने लाया गया था.

जीएसटी कार्यान्वयन में, केंद्र सरकार के लिए एक दुखती रग राज्यों को दिया जाने वाला जीएसटी मुआवजा है. केंद्र सरकार, जीएसटी लागू करने के लिए, राज्यों को प्रति वर्ष 14 की संभावित वृद्धि दर के आधार पर 5 साल के लिए मुआवजे की गारंटी देने पर सहमत हुई थी. बाद में जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर को राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए लाया गया था. हालांकि कोविड-19 के बाद आर्थिक मंदी के चलते जीएसटी राजस्व संग्रह पूरी तरह से ठप हो गया और राज्यों को मुआवजा देने के लिए उपकर बेहद अपर्याप्त है.

इस तरह के आर्थिक संकट में, चूंकि राज्य अपने स्वयं के राजस्व के कम संग्रह के कारण अत्यधिक प्रभावित हुए हैं और कोरोना महामारी से निपटने के लिए उनकी लागत तेजी से बढ़ी है, इसलिए उन्होंने केंद्र द्वारा मुआवजा नहीं दिए जाने पर आवाज उठाई है. यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि राज्यों द्वारा मांगी गई क्षतिपूर्ति राज्यों को प्रदान की गई एक संवैधानिक सुरक्षा है और इसी गारंटी के आधार पर वे केंद्र के साथ कराधान के अपने संप्रभु कार्य को साझा करने पर सहमत हुए थे. यह भी उल्लेखनीय है कि जबकि राज्यों ने कराधान के माध्यम से राजस्व बढ़ाने के लिए अपनी पूर्ण स्वायत्तता खो दी है, केंद्र के पास अभी भी प्रत्यक्ष कर संग्रह का अधिकार है. हालांकि, केंद्र और राज्य, दोनों ने उच्चतर राष्ट्रीय भलाई के लिए अपनी स्वायत्तता से समझौता किया है, लेकिन राज्यों का बलिदान अधिक मूल्यवान लगता है.

इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, केंद्र का यह फैसला कि राज्यों को एकतरफा तौर पर मुआवजा देना बंद कर दिया जाए, विशेषकर ऐसे समय में जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, न केवल नैतिक रूप से, बल्कि संवैधानिक और कानूनी तौर पर भी तर्कसंगत या जायज नहीं है. जीएसटी काउंसिल में राज्यों की सहमति के साथ इसका समाधान नहीं होने पर इस मुद्दे पर मुकदमेबाजी होना तय है.

इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, महाराष्ट्र राज्य के लिए समस्या गंभीर है क्योंकि राज्य कोरोना महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित है. दूसरे, महाराष्ट्र उत्पादक/ सेवा प्रदाता राज्यों में से एक है जो जीएसटी के कारण अपना हिस्सा खोने के लिए बाध्य था. जीएसटी एक गंतव्य आधारित कर है. इसलिए, केंद्र सरकार से राज्य सरकारों को उचित जीएसटी मुआवजा मिलने की आवश्यकता है. दी गई तालिका से पता चलता है कि कोरोना कारक के कारण जीएसटी संग्रह कैसे प्रभावित हुआ है.

महाराष्ट्र को पिछले साल 19233 करोड़ रुपए का जीएसटी मुआवजा मिला. महाराष्ट्र जीएसटी का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता होने के नाते कर संग्रह में उसे सबसे ज्यादा नुकसान ङोलना पड़ रहा है. दी गई तालिका के अनुसार जनवरी की तुलना में महाराष्ट्र को जीएसटी से राजस्व में लगभग ढाई हजार करोड़ रुपए (केवल एक महीने में) की कमी का सामना करना पड़ा. संकट के इस समय में राज्य सरकार को उम्मीद है कि केंद्र सरकार न केवल राज्यों को मुआवजा देगी, बल्कि इसके अतिरिक्त सहायता भी करेगी क्योंकि महाराष्ट्र उन राज्यों में से एक है जहां कोविड धारावी और अन्य मलिन बस्तियों में भी फैल गया है. केंद्र सरकार को महाराष्ट्र और वहां की जनता के लिए अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करने की आवश्यकता है, जो कि जीएसटी मुआवजे के रूप में देय है.

इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. केंद्र को बड़े भाई की भूमिका निभाते हुए संकट के इस समय में राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करना चाहिए और राज्यों के भी मुआवजे की व्यवस्था हो. कहा जाता है, ‘‘प्रतिकूलता चरित्र का निर्माण नहीं करती है बल्कि इसे प्रकट करती है.’’ आर्थिक संकट के इस समय में ‘‘सहकारी संघवाद’’ की भावना दिखाना समय की जरूरत है.

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