गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: देश को हिंसा की सोच से उबरना होगा
By गिरीश्वर मिश्र | Updated: December 26, 2019 10:39 IST2019-12-26T10:39:16+5:302019-12-26T10:39:16+5:30
ये हिंसा के ही विभिन्न रूप हैं जिनको अपनी बात को व्यक्त करने का माध्यम बनाया जा रहा है. अपने पक्ष को सही साबित करने के लिए हिंसा की युक्ति का लक्ष्य सरकारी पक्ष को त्रस्त और भयभीत करना है.

प्रदर्शन में हिंसा को जोड़ने का निर्णय लिया जाता है और शिक्षा केंद्रों को जोड़ा जाता है.
गिरीश्वर मिश्र
इन दिनों जनता एक विचित्र दुविधा में है. देश को बांटने वालों को सबक सिखाने के लिए कुछ लोग कमर कस लिए हैं. विभिन्न कोनों से आगजनी, तोड़फोड़ और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हुए देश को एकजुट रखने या देश प्रेम की भावना को प्रमाणित करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
ये हिंसा के ही विभिन्न रूप हैं जिनको अपनी बात को व्यक्त करने का माध्यम बनाया जा रहा है. अपने पक्ष को सही साबित करने के लिए हिंसा की युक्ति का लक्ष्य सरकारी पक्ष को त्रस्त और भयभीत करना है.
इस सोच में जो समीकरण बनता है उसमें सरकार को सरकारी संपत्ति के बराबर मान लिया जाता है और उसे नष्ट करने को अपना परम कर्तव्य समझ लिया जाता है. विपक्ष विरोध करे यह तो उसका पद बनता है, पर कैसे करे यह उसी को तय करना है, जिसकी परिधि लोकतंत्र की व्यवस्था ही होनी चाहिए.
प्रदर्शन में हिंसा को जोड़ने का निर्णय लिया जाता है और शिक्षा केंद्रों को जोड़ा जाता है. फिर यहां से गरीब देश पिसना शुरू होता है. फिर जाने अनजाने देश की ऐसी-तैसी करने में कोई कसर नहीं बरती जाती. यह जरूर है कि सब कुछ आसानी से अज्ञात असामाजिक तत्वों के नाम मढ़ दिया जाता है जो देश में बहुतायत से उपलब्ध हैं, पर निश्चय ही सियासत का यह घातक मोड़ है.
हिंसा के बीच अफवाह, हंगामे, पथराव, बवाल, बंद, खून-खराबा और बर्बादी से आम आदमी का जीवन अस्तव्यस्त होता है, जीवन, धन-संपत्ति की अप्रत्याशित हानि ऊपर से होती है. इन सब का खामियाजा भुगतना पड़ता है देश को, जो आधार संरचना बनाने की चुनौती से जूझ रहा है. आगे बढ़ने की जगह कुछ कदम पिछड़ जाते हैं. यह कहानी बार-बार दोहराई जाती है.
लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने और आवाज उठाने की छूट स्वाभाविक रूप से मिलनी चाहिए. पर हममें इसका सलीका अभी तक नहीं आया है. हम आदिम मनुष्य के पत्थर के औजार का खूब उपयोग करते हैं. विकसित प्रौद्योगिकी का प्रयोग तो होता ही है. इस माहौल में कानून व्यवस्था बनाए रखना और शांति बहाल करना एक बड़ी चुनौती हो रही है.
आज नागरिकता कानून के तात्पर्य को लेकर व्याख्याओं और शंकाओं का दौर गर्म है. ऐसी स्थिति में जरूरी है कि सरकार समाज के हित के लिए उन भ्रमों और संदेहों को यथाशीघ्र दूर करे ताकि स्थिति सामान्य हो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ऐसा किया भी है. इस साल पूज्य बापू की डेढ़ सौवीं जयंती मनाते हुए समूचे राष्ट्र ने अहिंसा, सत्य और सौहार्द की राह पर चलने का वादा किया है. अत: विवाद की जगह संवाद की कोशिश की जानी चाहिए.