राजस्थान में अपने छात्र जीवन से ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े घनश्याम तिवाड़ी वसुंधरा राजे सरकार से खुश नहीं रहे और इसीलिए उन्होंने नई पार्टी का गठन किया। जब से वसुंधरा राजे सत्ता में आईं घनश्याम तिवाड़ी को उनका काम काज ठीक नहीं लगा। वे लगातार विरोध करते रहे हैं और पार्टी पर सवाल उठाए हैं। हालांकि बीजेपी उनके बयानों और पार्टी विरोधी गतिविधियों को लेकर हिदायत तो देती रही है, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं की। अब ऐसा लगने लगा है कि बीजेपी प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले ही तिवाड़ी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा सकती है। कहा जाता रहा है कि तिवाड़ी वसुंधरा राजे से ज्यादा नाराज चल रहे हैं।
वे इस समय दीनदयाल वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और जयपुर के सांगानेर से बीजेपी विधायक हैं। उन्होंने अपनी पार्टी 'भारत वाहिनी पार्टी' बनाई है, जिसकी कमान अपने बेटे अखिलेश तिवाड़ी को सौंपी है। हालांकि इस पार्टी के नाम को अभी चुनाव आयोग ने हरी झंडी नहीं दी है। इस राजनीतिक पार्टी के गठन के बाद घनश्याम तिवाड़ी सीधे तौर पर सामने नहीं आए, लेकिन अप्रयक्ष रूप से जरूर बीजेपी की डाल काटने में लगे हुए हैं। वह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बनते जा रहे हैं।
अगर विधानसभा चुनाव से पहले घनश्याम तिवाड़ी बीजेपी से अलग होते हैं तो पार्टी को बड़ा झटका लगेगा। जो भी वोटर्स उनके फेवर में जाएंगे उसका सीधा घाटा बीजेपी को ही होने वाला है क्योंकि इस पिक्चर में कांग्रेस कहीं नहीं है। बीजेपी के ब्राह्मण वोट में तिवाड़ी सेंध लगा सकते हैं। पिछले साल तिवाड़ी ने नई चाल चली थी, जिसमें उन्होंने मीणाओं को अपनी ओर खींचने के लिए किरोड़ी लाल मीणा से बेहतर संबंध बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उस पर बीजेपी ने पानी फेर दिया और किरोड़ी को पार्टी में शामिल कर लिया।
पार्टी के ऐलान के समय तिवाड़ी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी के आने से गरीब व किसान का राज कायम होगा। काला कानून, किसानों की कर्ज माफी, बेरोजगारी, वंचितों को आरक्षण आदि प्रमुख मुद्दे होंगे। अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, विशेष ओबीसी का आरक्षण जारी रख वंचित वर्गों के गरीब बच्चों को भी 14 प्रतिशत का आरक्षण देने की भी कोशिश की जाएगी। उनके इस तरह के बयानों को पार्टी लाइन से विपरीत देखा गया।
गौरतलब है कि घनश्याम तिवाड़ी का राजनीतिक सफर बहुत लंबा रहा है। वह पहली बार 1980 में सीकर विधानसभा से विधायक चुने गए इसके बाद 1985 में यहीं से विधायक बने, 1993 में चौमूं से विधायक बने और फिर 2003 से लगातार तीन बार सांगानेर से विधायक रहे हैं। इस दौरान वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।