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'बादल बम' के बाद अब 'वाटर बम': लेह में बादल फटने से लेकर कोविड वायरस तक चीन पर शंका, अब ब्रह्मपुत्र पर बांध क्या नया हथियार?

By विजय दर्डा | Updated: July 28, 2025 07:02 IST

​​​​​​​चीन दुनिया को डरा रहा है. खौफ पैदा कर रहा है. उसके शब्दकोश में मानवीयता नाम का कोई शब्द है ही नहीं! सवाल है कि उससे हम कैसे निपटें?

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चीन के बारे में पूरी दुनिया में आम राय यही रही है कि वह दूसरों को तबाह करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. यही कारण है कि उसे हमेशा शंका की दृष्टि से देखा जाता है. पिछले सप्ताह तिब्बत में यारलुंग सांगपो नदी पर चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने दुनिया के सबसे बड़े बांध की नींव रखी तो भारत से लेकर बांग्लादेश तक में चिंता फैल गई कि चीन इस बांध का इस्तेमाल कहीं नए हथियार 'वाटर बम' के तौर पर तो नहीं करेगा?

इस शंका के पीछे ठोस कारण है. यारलुंग सांगपो नदी तिब्बत को पार करने के बाद भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के रूप में जानी जाती है. हिमालय के कैलाश क्षेत्र से निकलने वाली यह नदी करीब 2900 किलोमीटर का सफर करने के बाद बंगाल की खाड़ी में समाप्त होती है.भारत में यह नदी 996 किलोमीटर की दूरी तय करती है. पिछले वर्षों में पूर्वोत्तर की इस नदी का प्रवाह कम हुआ है और यह माना जाता रहा है कि चीन कुछ हरकत कर रहा है. अब जो बांध बन रहा है, उसकी चर्चा पिछले कई सालों से चल रही थी. कहते हैं कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है. मगर दुनिया भर के पर्यावरण विज्ञानी ऐसी किसी भी बांध का विरोध कर रहे थे क्योंकि तिब्बत-भारत सीमा के पास यह बांध इतना बड़ा बनने वाला है कि इससे पूरा पर्यावरण तबाह हो जाएगा. खुद तिब्बत तो तबाह होगा ही, भारत और बांग्लादेश के नाजुक पठार से लेकर नीचे समतल इलाके भी बुरी तरह प्रभावित होंगे. सैटेलाइट इमेजरी स्पेशलिस्ट डेमियन साइमन ने इस बांध का लोकेशन शेयर किया है. इसे देखकर सहज ही अंदाजा हो जाता है कि अरुणाचल प्रदेश से ठीक सटे इलाके में यह बांध बनाया जा रहा है. चीन कह रहा है कि इसमें पांच हाइड्रोपावर स्टेशन शामिल होंगे. खर्च की बात करें तो इसके निर्माण पर लगभग चौदह हजार चार सौ तिहत्तर अरब रुपए खर्च होने वाले हैं. चीन का कहना है कि यह बांध ग्रीन एनर्जी के लिए है.

मगर भारत को ऐसा बिल्कुल ही नहीं लगता! भारतीय विशेषज्ञ चीन के इस बांध को भारत के खिलाफ एक नए हथियार के रूप में देखते हैं. सबसे पहली बात कि बांध बन जाने के बाद चीन अपनी मर्जी से ही ब्रह्मपुत्र नदी में पानी छोड़ेगा. किसी समझौते की बात ही बेमानी है क्योंकि वह दुनिया में किसी की सुनता कहां है? वह जब चाहेगा तब ब्रह्मपुत्र के इलाके मे सूखा पसार देगा और जब चाहेगा बाढ़ ला देगा! जो सबसे बड़ा खतरा है उसे विशेषज्ञ 'वाटर बम' कह रहे हैं. मान लीजिए कि चीन ने कभी एक साथ पूरा पानी भारत की ओर छोड़ दिया तो क्या होगा? अरुणाचल प्रदेश से लेकर असम तक बाढ़ की तबाही आ जाएगी! इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत को अभी से तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए कि यदि वाकई कभी चीन ने वैसी परिस्थितियां पैदा कर दीं तो हम महफूज रह सकें.

जैसा कि मैंने पहले लिखा कि चीन पर इस शंका के एक नहीं कई कारण मौजूद हैं. कोविड-19 की याद अभी भी बनी हुई है जब पूरी दुनिया थम सी गई थी. चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी. दुनिया अब भी शंका करती है कि कोरोना वायरस एक चीनी लैब में पैदा किया गया. जिस चीनी वैज्ञानिक ली वेनलियांग ने सबसे पहले वायरस के प्रकोप की जानकारी दी, उसे चीनी पुलिस ने रोक दिया था. बाद में वह खुद कोरोना वायरस का शिकार हो गया!

अब मैं आपको एक ऐसी घटना की याद दिलाता हूं, जिसे हो सकता है कि आप भुला बैठे हों. वैसे नई पीढ़ी को तो उस घटना की जानकारी शायद ही होगी! वो 6 अगस्त 2010 की तारीख थी और जगह थी लेह. आप में से जिन लोगों ने लेह की यात्रा की होगी या उस इलाके के बारे में पढ़ा होगा, वे जानते होंगे कि नीले आकाश में उड़ते हुए बादल तो वहां खूब दिखते हैं मगर वहां प्राकृतिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि सालाना चार इंच से भी कम बारिश होती है. नवंबर से लेकर अप्रैल महीने तक वहां बर्फ गिरती है. बर्फ की मोटी चादर बिछ जाती है लेकिन बारिश की हमेशा कमी रहती है. लद्दाख इलाके को कोल्ड डेजर्ट कहा जाता है. लद्दाख इलाके का शहर है लेह, जहां 2010 में अचानक दो घंटे में 14 इंच से ज्यादा बारिश हो गई. वहां के पहाड़ चूंकि कच्चे हैं और इतनी बारिश कभी होती नहीं है तो वह बारिश कहर बन कर टूटी और 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. सैकड़ों लोग घायल हुए.

स्वाभाविक रूप से आप कहेंगे कि बादल फटने में चीन की क्या भूमिका हो सकती है? तो मैं आपको एक घटना याद दिलाता हूं. 2008 में बीजिंग में ओलंपिक का आयोजन था. मौसम विज्ञानी कह रहे थे कि उद्घाटन समारोह के दौरान बारिश हो सकती है. सभी चिंतित थे लेकिन चीन ने सिल्वर आयोडाइड से भरे एक हजार से ज्यादा रॉकेट बादलों पर दागे और बादलों को बीजिंग से दूर बरसा दिया! माना जाता है कि चीन मे बादलों की मर्जी नहीं चलती! जहां चीन चाहेगा, उन्हें वहीं बरसना होगा! इसीलिए आज भी यह शंका कायम है कि लेह में चीन ने बादलों को हथियार की तरह इस्तेमाल किया था. तो, नदी के पानी को वाटर बम के रूप में तब्दील कर देना उसके लिए क्या मुश्किल होगा? मुश्किल तो हमारी होने वाली है. इसलिए अभी से हमें वाटर बम को डिफ्यूज करने के रास्ते तलाशने होंगे!

एक बात और कहना चाहता हूं कि चीन दुनिया की महाशक्ति बनना चाहता है. जिस तरह से महाशक्ति बनने के लिए अमेरिका और रूस ने दुनिया को डराया, और विभिन्न तरीके से आज भी डरा रहा है, उसी तरह चीन भी अपना खौफ पैदा करना चाह रहा है. मैं चीन को दोष नहीं देता लेकिन सवाल मानवीयता का है. चीन उस मानवीयता को ही नष्ट करने में तुला है. स्थिति वाकई खौफनाक बनती जा रही है.

टॅग्स :चीनकोरोना वायरस
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