लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: हिंदी के लिए उच्च शिक्षा संस्थान की अनुकरणीय पहल

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 23, 2023 10:05 IST

आमतौर पर ऐसे कार्यक्रम अंग्रेजी में ही होते हैं। क्योंकि यह गलतफहमी है कि अंग्रेजी से ही हर भारतीय गुणी और विद्वान बन सकता है तथा अंग्रेजी के ज्ञान के बिना उसका भविष्य अंधकारमय है। अमेरिका और ब्रिटेन को छोड़ दिया जाए तो दुनिया के तमाम विकसित देशों में वहां की स्थानीय भाषा ही राष्ट्रभाषा है तथा उसी से शिक्षा एवं प्रशासन से लेकर सारा कामकाज चलता है।

Open in App
ठळक मुद्देआईआईएम ने कौशल विकास पर 10 दिन का कार्यक्रम अगले साल जनवरी में आयोजित किया हैरकारी तौर पर यह एक सामान्य सी खबर लग सकती हैइसका महत्तव उच्च संस्थानों में हिंदी के महत्व को बढ़ावा देना है

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) ने नेतृत्व कौशल विकास पर 10 दिन का कार्यक्रम अगले साल जनवरी में आयोजित किया है। सरकारी तौर पर यह एक सामान्य सी खबर लग सकती है क्योंकि ऐसे कार्यक्रम विभिन्न सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थानों में आयोजित होते रहते हैं। यहां तक कि जूनियर कॉलेजों तक में ऐसे कार्यक्रम होने लगे हैं ताकि नई पीढ़ी नेतृत्व कौशल के महत्व को समझकर खुद में नेतृत्व के गुण विकसित करे। इंदौर आईआईएम का यह कार्यक्रम एक विशेष कानून से विशिष्ट बन गया है। उसने नेतृत्व कौशल का यह कार्यक्रम हिंदी में आयोजित किया है। 

आमतौर पर ऐसे कार्यक्रम अंग्रेजी में ही होते हैं। क्योंकि यह गलतफहमी है कि अंग्रेजी से ही हर भारतीय गुणी और विद्वान बन सकता है तथा अंग्रेजी के ज्ञान के बिना उसका भविष्य अंधकारमय है। यह भी बहुत बड़ी गलतफहमी है कि दुनिया अंग्रेजी के ही भरोसे चलती है। अमेरिका और ब्रिटेन को छोड़ दिया जाए तो दुनिया के तमाम विकसित देशों में वहां की स्थानीय भाषा ही राष्ट्रभाषा है तथा उसी से शिक्षा एवं प्रशासन से लेकर सारा कामकाज चलता है। हम अपने पड़ोसी मुल्कों की ही बात कर लें तो चीन में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा वहां की राष्ट्रभाषा में दी जाती है, सरकारी कामकाज भी राष्ट्रभाषा में ही होता है। 

म्यांमार, जापान, थाइलैंड जैसे देशों की बात करें तो वहां भी अंग्रेजी का स्थान गौण है। हम भाषा को लेकर अब भी औपनिवेशिक संस्कृति की मानसिकता में जी रहे हैं जिससे अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा आधिकारिक तौर पर नहीं मिल सका है। हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली, समझी तथा पढ़ी जानेवाली भाषा है। दुनिया में सौ करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोल और पढ़-लिख सकते हैं। 

दुनिया के सौ से ज्यादा देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। भारत में पिछले चार दशकों से अंग्रेजी का चलन तेजी से बढ़ा है। आदमी अमीर हो या गरीब, वह अपने बच्चे को अंग्रेजी में ही शिक्षा दिलवाना चाहता है। इसका बहुत बुरा असर हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं पर भी दिखाई देने लगा है। हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा देने के लिए पिछले तीन दशकों में निजी एवं सरकारी क्षेत्र में एक भी नए स्कूल नहीं खुले हैं। उनकी जगह अंग्रेजी माध्यम के स्कूल लेने लगे हैं। 

हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा के निरंतर पिछड़ेपन का कारण मानसिकता से जुड़ा हुआ है। आजादी के बाद से ही तकनीकी तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शिक्षा का एकमात्र माध्यम अंग्रेजी रहा। शिक्षा का जैसे-जैसे निजीकरण बढ़ा, अंग्रेजी का प्रभाव भी बढ़ता गया। गांव-गांव तक यह प्रचारित कर दिया गया कि बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक या किसी भी क्षेत्र में सफल व्यक्ति बनना है तो उसे अंग्रेजी में शिक्षा दिलाना बहुत जरूरी है। हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाने का मतलब बच्चे का भविष्य चौपट करना है। इन भाषाओं के माध्यम से पढ़ने पर बच्चे मामूली हैसियत की नौकरी ही पा सकते हैं। 

आज हर भारतीय अंग्रेजी को ही तारणहार मानकर चल रहा है। अंग्रेजी बोलना और बच्चे को अंग्रेजी माध्यम की शाला में पढ़ाना सामाजिक प्रतिष्ठा एवं आर्थिक समृद्धि का प्रतीक समझा जाने लगा है। अंग्रेजी इतना बड़ा स्टेटस सिंबल बन गया है कि हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषा जानने और उसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने वालों को सम्मान की दृष्टि से देखा नहीं जाता। इस स्थिति के लिए राजनीतिक नेतृत्व में मजबूत इच्छाशक्ति का अभाव जिम्मेदार है। स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज तो चले गए लेकिन भारतीय राजनीतिक नेतृत्व को अंग्रेजी की घुट्टी पिलाकर गए। 

हिंदी तो खासतौर पर प्रशासनिक स्तर पर रस्मअदायगी की भाषा बनकर रह गई है और हर वर्ष 14 सितंबर को उसे याद करने के लिए हिंदी दिवस मनाया जाता है। दुनिया के अधिकांश देश अपनी भाषा में बच्चों को उच्च शिक्षा दे सकते हैं, अपनी भाषा के सहारे विकास के नए प्रतिमान स्थापित कर सकते हैं तो भारत में हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाएं क्यों नहीं? हिंदी घोर अंधकार के दौर से गुजर रही है। ऐसे में आईआईएम, इंदौर ने बेहद सराहनीय तथा अनुकरणीय पहल की है। उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

टॅग्स :IITIIM IndoreIIM Calcutta's Board of Governors
Open in App

संबंधित खबरें

कारोबारएआई के बाद ‘एक्सटेंडेड रियलिटी’?, क्या है और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में कैसे ला सकता क्रांति?

क्राइम अलर्टआईआईटी-खड़गपुर में क्या हो रहा?, जनवरी से सितंबर 2025 में 5 छात्रों ने दी जान

भारतलोकतंत्र की बुलंद आवाज थे प्रो. जगदीप छोकर, बहुत से बदलावों को जमीन पर उतारा

भारतराष्ट्रीय अभियंता दिवसः विकास की नींव रखने वाले दृष्टा थे विश्वेश्वरैया

भारतजॉब सीकर नहीं जॉब क्रिएटर बनें युवा?, आईआईटी पटना दीक्षांत समारोह में मंत्री धर्मेंद्र प्रधान बोले, विकास की राह पर बिहार

भारत अधिक खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई