जनतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार चुनाव?, वोट से मतदाता प्रतिनिधि चुनता, सफलता की शर्त है जनजागरूकता

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: August 21, 2025 05:21 IST2025-08-21T05:21:55+5:302025-08-21T05:21:55+5:30

गिनती के मतदाता होते हैं पंचायत के चुनाव में. इस चुनाव में सिर्फ 350 वोटों के अंतर से एक उम्मीदवार को विजयी घोषित किया गया था.

Elections biggest festival democracy Voters choose their representatives by voting condition success is public awareness blog Vishwanath Sachdev | जनतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार चुनाव?, वोट से मतदाता प्रतिनिधि चुनता, सफलता की शर्त है जनजागरूकता

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Highlightsमतगणना में भी गड़बड़ियां होती थीं.गड़बड़ी करने के गंभीर आरोप लग रहे हैं.ग्राम पंचायत के ‘छोटे-से’ चुनाव का किस्सा है यह.

जनतंत्र का सबसे बड़ा त्यौहार होता है चुनाव. अपने वोट से मतदाता अपना प्रतिनिधि चुनता है, अपनी सरकार बनाता है. अब तो देश में ईवीएम मशीन से मतदान होता है, पर पहले जब मतदाता वोट की पर्ची हाथ में लेकर पेटी में वोट डालने जाता था तो उस वोट की पर्ची की तुलना पवित्र तुलसी-दल से की जाती थी- कहा जाता था, ‘वोट नहीं यह तेरे कर में महायज्ञ हित तुलसी-दल है!’ ऐसा नहीं कि तब इस महायज्ञ में गड़बड़ी की शिकायतें नहीं होती थीं, नकली मतदाताओं से लेकर मतपेटियां लूटने तक की न जाने कितनी शिकायतें दर्ज हैं हमारी चुनाव-व्यवस्था में. मतगणना में भी गड़बड़ियां होती थीं.

पर अब तो मतदाता सूचियों में ही गड़बड़ी करने के गंभीर आरोप लग रहे हैं. ऐसे में मतदाता की जागरूकता और जनतांत्रिक-व्यवस्था में उसके विश्वास पर ही मतदान की पवित्रता निर्भर करती है.ऐसी ही जागरूकता का एक उदाहरण हाल ही में हरियाणा के पानीपत जिले के एक गांव में देखने को मिला. एक ग्राम पंचायत के ‘छोटे-से’ चुनाव का किस्सा है यह.

गिनती के मतदाता होते हैं पंचायत के चुनाव में. इस चुनाव में सिर्फ 350 वोटों के अंतर से एक उम्मीदवार को विजयी घोषित किया गया था. यह लगभग तीन साल पहले की घटना है. चुनाव-परिणाम तो घोषित हो गया था, पर ‘हारा हुआ’ प्रत्याशी यह मान ही नहीं पा रहा था कि वह चुनाव हार सकता है. उसने घोषित परिणाम को चुनौती दी.

अदालत गया और अब तीन साल के अदालती संघर्ष के बाद उस कथित हारे हुए उम्मीदवार को देश की सर्वोच्च अदालत ने विजयी घोषित किया है. किसी पंचायत-चुनाव का विवाद उच्चतम न्यायालय तक जाने का यह संभवत: पहला प्रकरण है, और यह भी पहली बार हुआ है कि अदालत में सारी ईवीएम मशीनों को मंगवा कर संबंधित उम्मीदवारों की उपस्थिति में वीडियो कैमरे के समक्ष वोटों की पुनर्गणना हुई हो,

और हारे हुए प्रत्याशी को विजय घोषित किया गया हो. नवंबर 2022 में पानीपत के छोटे से गांव बुआना में यह चुनाव हुआ था. पराजित घोषित हुए मोहित कुमार ने चुनाव परिणाम को चुनौती दी और पूरे विश्वास के साथ मामले को उच्चतम न्यायालय तक ले गया था. इस चुनाव में गड़बड़ी करने वालों को क्या सजा मिली है,

यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि एक जागरूक नागरिक ने अपने अधिकार के लिए संघर्ष किया और देश की सर्वोच्च अदालत ने इस ‘छोटे-से प्रकरण’ को महत्वपूर्ण बना दिया. चुनाव जनतंत्र का त्यौहार ही नहीं होते, सही और ईमानदारी से हुए चुनाव जनतंत्र की प्राण-शक्ति हैं.  किसी भी चुनाव की वैधता और सफलता की पहली शर्त यह है कि चुनाव निष्पक्ष हों.

हर वह नागरिक या इकाई जिसे वोट देने का अधिकार है, उसे अपना वोट देने का अवसर मिलना ही चाहिए.  इसके लिए सबसे पहले तो जरूरी है सही मतदाता सूचियों का होना. ऐसी किसी सूची में सही मतदाता का नाम कट जाना अथवा किसी गलत मतदाता का नाम जुड़ जाना, दोनों ही समान रूप से अपराध हैं. जनतंत्र स्वार्थी राजनेताओं के भरोसे नहीं, जागरूक मतदाता के भरोसे जिंदा रहता है. यह जागरूकता बनी रहे, जनतंत्र की सफलता की शर्त है यह!

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