किन वजहों से खास रहा इस साल का रमज़ान और इफ्तार
By भारती द्विवेदी | Published: June 14, 2018 01:15 PM2018-06-14T13:15:36+5:302018-06-14T13:15:36+5:30
Eid 2018 Eid Ul Fitr Mubarak:अगर आरएसएस ईद मिलन समारोह का आयोजन करता तो दिखावे के लिए ही सही, कुछ तो बदलता।
दो दिन बाद पूरी दुनिया में ईद मनाई जानी है। एक महीने से चल रहा मुसलमान भाइयों का रोजा खत्म होगा। वोट की राजनीति के कारण या 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए इन दिनों राष्ट्रीय स्तर से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों के बीच इफ्तार पार्टी देने की होड़ लगी है। कांग्रेस ने जहां दो साल बाद 13 जून को इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था वहीं राष्ट्रीय संघ सेवक (RSS) के इतिहास में पहली बार नागपुर मुख्यालय में ईद मिलन समारोह का आयोजन होना था। खैर वो लम्हा आते-आते रह गया।
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हमारे देश में 3-4 सालों में साम्प्रदायिकता तनाव बढ़ा है। खासकर टीवी, सोशल मीडिया और राजनीतिक पार्टियों की मुंह जुबानी जंग में। लेकिन इस बार के रमजान में कुछ ऐसी बातें हुईं जिसकी वजह से साल-2018 का रमजान हमेशा याद रखा जाएगा। अंकित सक्सेना, जिसे इसी साल कथित तौर एक मुस्लिम लड़की से प्यार करने की वजह से पीट-पीटकर मार दिया गया था। मारने वाले लड़की के घर वाले ही थे। घर के एकलौते कमाने वाले बेटे को खोने के बाद ये बहुत आम बात होती, अगर अंकित का परिवार दूसरे समुदाय के लोगों से नफरत करने लगते। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अंकित की मौत पर पॉलिटिकल पार्टी, धर्म के ठेकेदार, मीडिया चैनल इन सबने खूब नफरत फैलाया लेकिन अंकित के पिता ने जवान बेटे की लाश देखने के बाद भी कहा था कि अंकित की मौत पर राजनीति मत कीजिए। देश में चल रहे हिन्दू-मुस्लिम बहस की आग पर पानी डालते हुए उन्होंने एक और बेहतरीन पहल की। जिस जगह अंकित की मौत हुई, उसी जगह मुसलमान भाइयों को इफ्तार पार्टी देकर। मुसलमान से लेकर, मीडिया से लेकर तमाम लोग उस इफ्तार पार्टी का हिस्सा बने। उस इफ्तार पार्टी से जो तस्वीरें बाहर आई, उसे देखकर हर कोई यही तो सोच रहा था कि राजनीति के नाम पर हमने क्या बना दिया है देश को? असल में तो हम वहीं है जो इस तस्वीर में दिख रहे हैं।
दूसरी तस्वीर, रमजान के पाक महीना शुरू होते ही केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन नहीं चलाने का आदेश दिया था। हालांकि ये पहली बार नहीं हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, तब भी केंद्र की तरफ से ऐसे फैसले लिए गए थे। इस महीने सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर की एक वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें पत्थरबाजों ने आर्मी की गाड़ी को चारों तरफ से घेर हमला बोल दिया था। गाड़ी में मौजूद सेना के पास हथियार होते हुए भी उन्होंने फायरिंग नहीं की। हां अपनी जान बचाने के चक्कर में उनकी गाड़ी से दो लोग जरूर कुचलकर मौत हो गई थी। वहां के लोगों से जुड़ने के लिए सरकार की तरफ से ये एक बेहतरीन पहल थी। लेकिन कहते हैं ना कि ताली दोनों हाथ से बजती है। वैसे ही वहाँ के लोगों के समर्थन के बिना कुछ भी मुमकिन नहीं है।
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जिस तीसरी तस्वीर की मैं बात कर रही हूं वो होती आरएसएस के नागपुर मुख्यालय में ईद मिलन समारोह का होना। पांच जून को ये खबर आई थी कि आरएसएस पहली बार नागपुर मुख्यालय में ईद मिलन सामारोह का आयोजन करने जा रहा है। आरएसएस के इस फैसले पर सबको हैरानी हुई थी, लेकिन सबने उस फैसले पर अपनी खुशी जाहिर की थी। इस खबर के आने के थोड़ी देर बाद आरएसएस मुख्यालय की तरफ से इसका खंडन किया गया कि वो ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं।
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बता दें कि साल 2015 में आरएसएस के मुस्लिम विंग राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की तरफ से इफ्तार का आयोजन होता आ रहा है। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की तरफ से इसका आयोजन संघ प्रचारक इंद्रेश कुमार करते हैं। लेकिन इफ्तार पार्टी का आयोजन राज्यों के पार्टी मुख्यालय में होता है। नागपुर मुख्यालय में ये पहली बार होना था, जो कि हो नहीं पाया। अगर आरएसएस ईद मिलन समारोह का आयोजन करता तो दिखावे के लिए ही सही, कुछ तो बदलता। आरएसएस, भाजपा की छवि एक कट्टर हिंदुत्व वाली है। शायद ये आयोजन उसमें कुछ बदलाव लाता।
आओ कि तुम्हें देखकर इफ्तार कर लें हम,
एक मुद्दत हुई है आंखों को रोज़ा रखे हुए.
सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है वो,
रोज़ा तो नहीं रखता मगर इफ्तारी समझता है.
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