संपादकीय: हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की ताकत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 15, 2019 07:21 AM2019-03-15T07:21:19+5:302019-03-15T07:21:19+5:30

अंग्रेजी सिर्फ देश के कुछ चुने हुए अभिजात्य वर्ग की ही भाषा है और वह भी अपने रौब- दाब को बनाए रखने के लिए ही इसका इस्तेमाल करता है.

Editorial: The strength of Hindi and other regional languages | संपादकीय: हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की ताकत

संपादकीय: हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की ताकत

आम चुनाव की गहमागहमी में, राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं तक पहुंचने के लिए अपनी करीब 90 से 95} प्रचार सामग्री और खासकर वीडियो को हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में बनाने की तैयारी करना दिखाता है कि यह बात नेताओं को भी मालूम है कि आम जनता की जुबान हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाएं ही हैं.

अंग्रेजी सिर्फ देश के कुछ चुने हुए अभिजात्य वर्ग की ही भाषा है और वह भी अपने रौब- दाब को बनाए रखने के लिए ही इसका इस्तेमाल करता है. दरअसल अंग्रेजों के देश से जाने के सात दशक बाद भी हमारे देश का एक वर्ग अंग्रेजी की मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हो पाया है. वह आम लोगों से अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए इसका इस्तेमाल एक हथियार के रूप में करता रहा है.

यह दुर्भाग्य ही है कि आम जनता के वोटों से चुनी जाने वाली सरकार भी प्रशासन चलाने के लिए आमतौर पर अंग्रेजी का ही सहारा लेती है. बात चाहे संसद में होने वाली बहसों की हो या अदालतों में होने वाली जिरह की, अंग्रेजी हर जगह हावी दिखाई देती है. अगर आम जनता ही अपने हित के लिए होने वाली बहसों को न समझ पाए तो उसका क्या अर्थ? इस बारे में हम संयुक्त अरब अमीरात से सीख ले सकते हैं जिसने अभी पिछले महीने ही अपनी अदालतों में हिंदी के प्रयोग की  अनुमति दी है, ताकि वहां बसे 26 लाख भारतीयों को अदालती कार्यवाही समझ में आ सके.

हमारे देश में तर्क दिया जाता है कि कानूनी शब्दावली अंग्रेजी में ही इतनी जटिल होती है कि हिंदी में उसका सटीक अनुवाद या तो हो नहीं पाता या बहुत भारी-भरकम होता है. इस समस्या के निदान के लिए हमें हिंदी के सरल स्वरूप को अपनाना होगा, जिसमें अंग्रेजी के आवश्यक शब्दों के इस्तेमाल से परहेज न किया जाए.

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हर साल अन्य भाषाओं के अनेक शब्दों को समाहित करता किया जाता है. फिर हम क्यों नहीं दूसरी भाषाओं के जरूरी शब्दों को अपना सकते? समय आ गया है कि हम अंग्रेजी के मुखौटे को उतार फेंकें और हिंदी तथा अपनी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के हर क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाएं. आखिर जब वे वोट लेने के लिए हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं तो इतना तो जानते ही हैं कि अपनी मातृभाषा में ही जनता कोई भी बात बेहतर ढंग से समझती है या सहजता महसूस करती है!

Web Title: Editorial: The strength of Hindi and other regional languages

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