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डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: चुनाव प्रचार का गिरता हुआ स्तर लोकतंत्र के लिए चिंताजनक

By डॉ एसएस मंठा | Updated: February 9, 2020 10:40 IST

हमें समझना होगा कि लोगों की भावनाओं को भड़काने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. बल्कि इस चक्कर में विकास के मुद्दे हाशिये पर चले जाते हैं.  लोगों को सतत भय के माहौल में रखना और उनकी भावनाएं भड़काना हम वहन नहीं कर सकते.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने उम्मीदवारों के किए गए चुनाव प्रचार के दौरान भारी द्वेष भावना देखने को मिली. प्रचार भाषणों में नम्रता का स्पष्ट अभाव था. कई बार ये भाषण निम्न स्तर के और भड़काऊ नजर आए. भविष्य में चुनाव प्रचारों का क्या यही स्वरूप होगा? भारत में राजनीतिक दल क्या इसी तरह से बर्ताव करेंगे? वोट हासिल करने के लिए विरोधियों पर ज्यादा से ज्यादा कीचड़ उछालने की कोशिश की जाती है. देश की आर्थिक हालत चिंताजनक है और नए रोजगार पैदा नहीं हो रहे हैं लेकिन इस विषय पर कोई बात नहीं की जाती.

मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए क्या अब संताप, चिंता, भय और देशभक्ति की भावना का ही इस्तेमाल किया जाएगा? अनेक जगहों पर विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी आंदोलित हैं और सड़कों पर उतर कर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं. इसके प्रत्युत्तर में विरोधी विचारों वाले विद्यार्थी भी उतर रहे हैं. अपने निहित स्वार्थो के लिए विद्यार्थियों को आंदोलित रखने का प्रयास राजनीतिक दलों द्वारा किया जा रहा है लेकिन यह भविष्य में क्या रूप ले सकता है इसका किसी को अंदाजा नहीं है. इस स्थिति पर सभी को विचार करना होगा और समझदारी के साथ भविष्य की दिशा तय करनी होगी.

शाहीन बाग में महिलाओं के सत्याग्रह पर क्या राजनीतिक दलों को आत्मचिंतन नहीं करना चाहिए? सीएए को लेकर लोगों की भावनाएं आंदोलित हैं. केंद्र सरकार कह रही है कि इसका देश के लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन लोगों को यह बात समझा पाने में वह असफल साबित हो रही है. इसलिए आंदोलनकारी इस कानून का विरोध कर रहे हैं. सभी इस कानून पर अपने-अपने तरीके से विचार कर रहे हैं.   इसलिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं.

लेकिन हमें समझना होगा कि लोगों की भावनाओं को भड़काने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. बल्कि इस चक्कर में विकास के मुद्दे हाशिये पर चले जाते हैं.  लोगों को सतत भय के माहौल में रखना और उनकी भावनाएं भड़काना हम वहन नहीं कर सकते. वर्तमान में विचारों का ध्रुवीकरण इतना प्रबल हो गया है कि दूसरे पक्ष के विचारों को समझने के लिए कोई तैयार ही नहीं है. जबकि वास्तविकता यह है कि विभिन्न संस्कृतियों के संगम पर ही समाज व्यवस्था टिकी हुई है. बहुसांस्कृतिक समाज हमारी दृष्टि होनी चाहिए, जहां विभिन्न भाषाओं, धर्मो और जातीयताओं वाले लोग सौहाद्र्रपूर्ण ढंग से एक साथ रहते हैं. इस तरह के लोग आज भी हमारे समाज में हैं और उन्हीं की वजह से दुनिया में हमारे देश का एक अलग ही स्थान है. जरूरत इस स्थान को कायम रखने की है.

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