डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: उच्च शिक्षा की दूर होगी उपेक्षा!

By डॉ एसएस मंठा | Updated: July 17, 2019 06:03 IST2019-07-17T06:03:05+5:302019-07-17T06:03:05+5:30

भारतीय विश्वविद्यालयों में एक तरफ जहां अनुसंधान कार्यो की कमी है, वहीं उद्योग से भी उनकी दूरी बनी हुई है. इनोवेशन के प्रति भी उपेक्षा का भाव है.

Dr. SS Manda blog: Higher Education will not be Neglected | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: उच्च शिक्षा की दूर होगी उपेक्षा!

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

इस माह के पहले हफ्ते में राजग सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में  शिक्षा क्षेत्र के 94853.64 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है, जो कि पिछले बजट से करीब दस हजार करोड़ रु. ज्यादा है. इसमें से 56536 करोड़ रु. शालेय शिक्षा के लिए और 38317 करोड़ उच्च शिक्षा के लिए है. 

भारतीय विश्वविद्यालयों में एक तरफ जहां अनुसंधान कार्यो की कमी है, वहीं उद्योग से भी उनकी दूरी बनी हुई है. इनोवेशन के प्रति भी उपेक्षा का भाव है. इस बार के बजट में ‘रिसर्च एंड इनोवेशन’ के लिए 608.87 करोड़ रु. आवंटित किए गए हैं. यह 2018-19 के लिए आवंटित 243.60 करोड़ रु. की तुलना में काफी ज्यादा है.

हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में वैश्विक स्तर की शिक्षा प्रदान करने की क्षमता है. वैश्विक दज्रे के हमारे शिक्षा संस्थानों में आईआईटी मुंबई, आईआईटी दिल्ली और इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस का समावेश है. भविष्य में और भी कई संस्थान इस सूची में अपना स्थान बना सकते हैं. लेकिन वैश्विक स्तर के संस्थान तैयार करने के लिए 400 करोड़ रु. का आवंटन बहुत कम है, फिर भले ही यह पिछले वर्ष की 129.90 करोड़ की आवंटित राशि से बहुत ज्यादा हो. 

वैश्विक स्तर के शिक्षा संस्थानों के निर्माण के लिए अनुसंधान और स्पर्धात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की जरूरत है. यह सही है कि दुनिया के नामचीन शैक्षिक संस्थानों को वैश्विक स्तर हासिल करने में बहुत समय लगा है, लेकिन यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इसके लिए वहां की सरकारों और निजी संगठनों ने खुले दिल से मदद की है.

विदेशी विद्यार्थियों को शिक्षा की खातिर भारत आने के लिए आकर्षित करने के कदमों की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी. इससे हमारे संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीयकरण में मदद मिलती है. इसके लिए वैश्विक स्तर की प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाना चाहिए. साथ ही शिक्षा प्रदान करने के लिए अन्य देशों की विशेष योग्यता वाली फैकल्टी को भी आमंत्रित करना चाहिए. 

देश के एक करोड़ युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम चलाना आज के समय की जरूरत है. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को शालेय शिक्षा के साथ संलग्न कर दिया जाए तो ज्यादा बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं. नए जमाने के लिए आवश्यक उच्च स्तर के कौशल विकास का काम निजी क्षेत्र को सौंपना बेहतर रहेगा, क्योंकि उच्च स्तर के कौशल विकास के लिए अधिक खर्च करना ही पड़ेगा. 

Web Title: Dr. SS Manda blog: Higher Education will not be Neglected

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