जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में वैष्णोदेवी मंदिर तक जाने वाले पैदल मार्ग पर प्रस्तावित रोपवे परियोजना की खबर से जहां श्रद्धालुओं के चेहरे खिल गए, वहीं इस परियोजना से प्रभावित होने वाले दुकानदार और मजदूर उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने हाल ही में ताराकोट मार्ग और सांझी छत के बीच 12 किलोमीटर लंबे मार्ग पर 250 करोड़ रुपए की ‘रोपवे’ परियोजना को अमल में लाने की योजना की घोषणा की थी, जिससे छह-सात घंटों में पूरी होने वाली कटरा से वैष्णो देवी की करीब बारह किलोमीटर की पैदल यात्रा केबल कार से एक घंटे से भी कम समय में पूरी हो सकेगी।
लगभग दो साल में पूरी होने वाली इस परियोजना से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को विशेष रूप से सहूलियत होगी, लेकिन यात्रा मार्ग के दुकानदारों और खच्चर व पालकीवालों को डर है कि केबल कार शुरू होने से वर्तमान यात्रा मार्ग बंद हो जाएगा जिससे उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा, हालांकि वर्तमान मार्ग के बंद होने की उनकी आशंका निराधार ही है।
केबल कार शुरू होने के बाद भी बहुत से स्वस्थ-तंदुरुस्त लोग पैदल मार्ग से ही जाना पसंद करेंगे, क्योंकि उसका अपना एक अलग ही आनंद होता है, जो चंद मिनटों की केबल कार यात्रा में नहीं मिल सकता। फिर भी इसमें कोई दो राय नहीं कि उनकी आजीविका पर असर तो पड़ेगा, लेकिन इसकी वजह से अत्याधुनिक तकनीकी प्रगति से मिलने वाले फायदों से वंचित रहने में भी समझदारी नहीं है। हां, परियोजना से प्रभावित होने वालों की चिंताओं का समाधान भी अवश्य किया जाना चाहिए।
रोपवे मामले में भी प्रदर्शनकारियों के हिंसक होने और तोड़-फोड़ करने के बाद स्थानीय प्रशासन ने उनसे बातचीत की और राज्यपाल की तरफ से उनकी चिंताओं का समाधान किए जाने का आश्वासन दिया गया, जिसके बाद प्रदर्शन बंद हुआ। दरअसल यह समस्या सिर्फ वैष्णो देवी के रोपवे मामले की ही नहीं है।
जहां भी अत्याधुनिक तकनीक पुराने तरीकों का स्थान लेती है, उससे परंपरागत रोजगारों पर असर पड़ता ही है। उससे निपटने का सर्वोत्तम उपाय यही है कि जहां तक हो सके, प्रभावितों के लिए पुनर्वास की योजना बनाई जाए और जहां यह संभव न हो, वहां उनके लिए मुआवजे की व्यवस्था की जाए।
इस तरह से सामंजस्य बिठाकर ही नई तकनीक का फायदा भी उठाया जा सकता है और परंपरागत रोजगारों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ने से भी रोका जा सकता है। नये-पुराने के बीच संतुलन ही सर्वोत्तम उपाय है।