प्रधानमंत्री कार्यालय का इनकार...मंत्रियों को नहीं मिली गर्मी की छुट्टी!

By हरीश गुप्ता | Updated: June 22, 2023 08:27 IST2023-06-22T08:24:44+5:302023-06-22T08:27:16+5:30

किसी भी मंत्री के विदेश जाने के लिए पीएमओ की मंजूरी अनिवार्य है. वहां से हालांकि मंत्रियों से कहा गया कि वे भारत में ही रहें क्योंकि उन्हें मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर एक माह तक चलने वाले जश्न और अन्य महत्वपूर्ण घरेलू कार्यों का हिस्सा बनना है.

Denial of Prime Minister's Office, Ministers did not get summer vacation | प्रधानमंत्री कार्यालय का इनकार...मंत्रियों को नहीं मिली गर्मी की छुट्टी!

प्रधानमंत्री कार्यालय का इनकार...मंत्रियों को नहीं मिली गर्मी की छुट्टी!

केंद्र सरकार के करीब आधा दर्जन मंत्री अपने करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने के लिए छुट्टी पर विदेश जाना चाहते थे. कुछ मंत्रियों को आधिकारिक तौर पर पश्चिमी राजधानियों में सेमिनारों को संबोधित करने और भारतीय डायस्पोरा के साथ-साथ विभिन्न संगठनों द्वारा बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया गया था. कुछ मंत्री गर्मी के मौसम में लंदन या यूरोप जाते रहे थे. लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा है. जब उनका प्रस्ताव विदेश मंत्रालय में पहुंचा तो वहां से इसे निर्णय के लिए पीएमओ भेज दिया गया. 

किसी भी मंत्री के विदेश जाने के लिए पीएमओ की मंजूरी अनिवार्य है. वहां से मंत्रियों से नम्रतापूर्वक कहा गया कि वे भारत में ही रहें क्योंकि उन्हें मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर एक माह तक चलने वाले जश्न और अन्य महत्वपूर्ण घरेलू कार्यों का हिस्सा बनना है. कोई भी इस बारे में पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि मंत्रिमंडल के अगले फेरबदल में कब किसको कीमत चुकानी पड़ जाए. कुछ मंत्री परेशान हैं क्योंकि उन्हें अलग-अलग कारणों से लंबे समय से अपने करीबी परिजनों से मिलने का मौका नहीं मिला है.

मोदी का ग्राफ बढ़ रहा, भाजपा का फिसल रहा !

दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्राफ बढ़ रहा है और दुनियाभर के नेता उनके इनोवेटिव आइडियाज को ध्यान से सुनते हैं. वे भारत की विकास गाथा की भी सराहना करते हैं और नई दिल्ली के साथ व्यापार करने के इच्छुक हैं. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की चुनावी रणनीति संभालने वाले बहुत चिंतित हैं क्योंकि चुनाव विकास के नाम पर जीते नहीं जाते हैं. 2014 में मोदी ने भ्रष्टाचार के विरोध के मुद्दे पर चुनाव जीता था जबकि 2019 की भाजपा की जीत में बालाकोट एयरस्ट्राइक ने निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसे पुलवामा त्रासदी के जवाब में किया गया था जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान मारे गए थे. 

इन दोनों लोकसभा चुनावों में कुछ राज्यों को छोड़कर विपक्ष बंटा हुआ था. लेकिन 2024 में परिस्थिति अलग है. इस मुद्दे पर ध्यान दिए बिना कि कौन सी पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, बड़े दलों ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने का सिद्धांत रूप में निर्णय लिया है. इसकी रूपरेखा इस साल नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद तय होगी. उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में मायावती के दलित वोटों में भारी गिरावट आने से भी भाजपा चिंतित है. 

कांग्रेस का पतन नब्बे के दशक में कांशीराम और मायावती के उदय के साथ ही शुरू हुआ था क्योंकि उन्हें दलित वोट एकमुश्त मिल गए थे. मुसलमानों ने न केवल राज्यों में बल्कि लोकसभा चुनावों में भी क्षेत्रीय दलों को वोट दिया. कांग्रेस की स्थिति दयनीय हो गई क्योंकि ब्राह्मणों सहित ऊंची जातियों के वोट भाजपा के पास चले गए. लेकिन 2024 में कुछ अलग दिखाई दे रहा है क्योंकि भाजपा द्वारा कराए गए अनेक आंतरिक सर्वेक्षणों के नतीजे दिखाते हैं कि दलितों को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे प्रधानमंत्री पद के एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में नजर आ रहे हैं. 

गांधी परिवार के 2024 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर रहने से खड़गे का मूल्य बढ़ सकता है. दो दलित नेताओं के देश का नेतृत्व करने में विफल रहने  (1977-79 में बाबू जगजीवन राम और नब्बे के दशक में मायावती) के बाद खड़गे एक मजबूत दलित नेता के रूप में उभरते हुए दिखाई दे रहे हैं. हालांकि इसमें लंबा समय लग सकता है क्योंकि मोदी मजबूती के साथ अपनी कुर्सी पर डटे हुए हैं. लेकिन यूपी, बिहार जैसे कई प्रमुख राज्यों में दलित कांग्रेस के साथ जा सकते हैं. खड़गे की कर्नाटक में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत में बड़ी भूमिका रही है क्योंकि दलितों ने बड़े पैमाने पर पार्टी को वोट दिया.

नाम बदलने का खेल

राष्ट्रीय राजधानी स्थित नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी का नाम बदल कर प्राइम मिनिस्टर म्यूजियम एंड लाइब्रेरी रखे जाने के संबंध में विवाद कम नहीं हुआ है. इसका व्यापक प्रभाव राज्यों में देखा जा रहा है. जहां भी संभव हो वहां से नेहरू का नाम मिटाने में मध्य प्रदेश सबसे आगे है. कांग्रेस का आरोप है कि मध्य प्रदेश के बुधनी स्थित नेहरू पार्क का नाम बदलकर शिवराज सिंह चौहान के बड़े बेटे कार्तिकेय चौहान के नाम पर कर दिया गया है. 

बुधनी शिवराज सिंह चौहान की विधानसभा सीट है. मानो यह पर्याप्त नहीं था, बुधनी के ही एक अन्य पार्क का नाम बदल कर शिवराज सिंह चौहान के छोटे बेटे कुणाल के नाम पर कर दिया गया. भाजपा नेता इस निर्णय का यह कहकर बचाव कर रहे हैं कि ऐसा स्थानीय लोगों की इच्छा के मद्देनजर किया गया है और इसके पीछे कोई अन्य उद्देश्य नहीं है.

भाजपा की दोहरी समस्या

आंध्रप्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और पंजाब में अकाली दल (बादल) के साथ हाथ मिलाना भाजपा के लिए एक कठिन कार्य बनता जा रहा है. भाजपा राज्यसभा में वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन चाहती है ताकि दिल्ली सरकार के संबंध में जारी अध्यादेश को सुचारु रूप से पारित कराया जा सके. यदि संसद में समान नागरिक संहिता विधेयक (यूसीसी) पेश किया जाता है तो उसे पारित कराने के लिए भी भाजपा को उसके समर्थन की आवश्यकता होगी. 

भाजपा अगर एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी से हाथ मिलाती है तो वाईएसआर कांग्रेस भाजपा का समर्थन नहीं करेगी. इसी प्रकार, भाजपा गहरी दुविधा में है कि अकाली दल (बादल) को एनडीए में लाया जाए या नहीं. राज्य का भाजपा नेतृत्व बादल के साथ किसी भी गठबंधन के सख्त विरोध में है. विरोध करने वालों में प्रमुख भाजपा नेता, सांसद और मंत्री भी शामिल हैं. उनका कहना है कि भाजपा के लिए यह बादल की बैसाखी पर निर्भर रहने के बजाय राज्य में अपने बल पर आगे बढ़ने का मौका है. प्रधानमंत्री मोदी ने अभी इन मुद्दों पर अंतिम फैसला नहीं लिया है.

Web Title: Denial of Prime Minister's Office, Ministers did not get summer vacation

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