राजेश बादल का ब्लॉगः गलतियों से भी भाजपा ने नहीं सीखा सबक
By राजेश बादल | Published: February 12, 2020 06:09 PM2020-02-12T18:09:00+5:302020-02-12T18:09:00+5:30
Delhi Elections Result: आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाने की हैट्रिक लगाई है. अरविंद केजरीवाल ने शुरू के ढाई साल तक जिस अंदाज में दिल्ली सरकार संचालित की उसने इस जुगनू जैसे दल के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए थे. मगर पिछले दो साल में केजरीवाल ने अपने आप को जिस तरह बदला, वह काबिले तारीफ है.
देश पर राज करने वाले देश के दिल की हालत से बेखबर थे. दिल्ली विधानसभा के नतीजों से यह साबित हो गया. भले ही इसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं हासिल है लेकिन इस चुनाव पर सारे मुल्क की निगाहें लगी थीं. किसी पूर्ण राज्य से कहीं अधिक रोमांचक, अराजक चुनाव भारत के इतिहास में संभवत: आज तक नहीं हुआ होगा. बीते 42 साल का तो मैं गवाह हूं. चुनाव जैसे लोकतांत्रिक अनुष्ठान में इतनी गंदगी घोलने का काम बेहद तकलीफदेह है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड में सरकारें खोने की खीज दिल्ली की सल्तनत के लिए इतना बेकाबू कर देगी- किसी ने सोचा न था.
आखिरी दौर में आक्रामक नकारात्मक अभियान ने पार्टी के परंपरागत वोटों में भी सेंध लगा दी. मुद्दों को लेकर भी भाजपा अनेक चुनावों से भ्रम में है. वह प्रादेशिक चुनाव में भी राज्य के हितों पर बात नहीं करती. राष्ट्रीय मसले इन निर्वाचनों में काम नहीं आते यह उसे समझना होगा. एक के बाद एक प्रदेशों में लगातार हार का यह बड़ा कारण है. दूसरी वजह पार्टी नेताओं का बड़बोलापन है. उनके बयानों ने भाजपा नेताओं के अपने घरों में ही उनका मखौल बना दिया था.
तीसरा पार्टी में दिल्ली का कोई दमदार चेहरा नहीं होना था. इस बार अरु ण जेटली और सुषमा स्वराज भी नहीं थे. हर्षवर्धन और किरण बेदी को मुख्यमंत्री के तौर पर पिछले दो चुनावों में मतदाता नकार चुके हैं. बाहरी प्रदेशों से आए नेता संसद के चुनाव में तो यहां चल जाते हैं, लेकिन दिल्ली प्रदेश में उन पर यकीन कम होता है. पार्टी की दूसरी पंक्ति के नेताओं को मोदी - शाह के बिना चुनाव लड़ना और जीतना सीखना होगा. सिर्फ दो चेहरों पर निर्भरता विश्व के सबसे बड़े दल के लिए सेहतमंद नहीं है. नए नवेले राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए तो यह चुनाव सिर मुंडाते ही ओले पड़े जैसे हैं.
आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाने की हैट्रिक लगाई है. अरविंद केजरीवाल ने शुरू के ढाई साल तक जिस अंदाज में दिल्ली सरकार संचालित की उसने इस जुगनू जैसे दल के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए थे. मगर पिछले दो साल में केजरीवाल ने अपने आप को जिस तरह बदला, वह काबिले तारीफ है. उन्होंने सकारात्मक राजनीति की. इसका फायदा उन्हें मिला. उम्मीद की जानी चाहिए कि अरविंद की परिपक्वता उन्हें भविष्य में प्रतिपक्ष के चेहरे का संकट दूर करने में सहायता करेगी. उनके दल की जीत का यह अर्थ नहीं है कि वे अपने पंख अब राष्ट्रीय स्तर पर फैला सकते हैं. उस नजरिए से उन्हें संगठन और अपने आप में बहुत सुधार की जरूरत है.
कांग्रेस इससे बेहतर कुछ नहीं कर सकती थी. पार्टी ने देख लिया था कि जिस तरह उत्तर प्रदेश में उसका जनाधार समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ने चुरा लिया था, वही काम केजरीवाल ने दिल्ली में किया था. एक वयोवृद्ध राष्ट्रीय पार्टी के लिए भाजपा को सत्ता से बाहर रखना जरूरी था तो उसे मुल्क की राजधानी का चुनाव इस अंदाज में ही लड़ना था.
अगर उसने पूरी ताकत से यह लड़ाई लड़ी होती तो अपना और आम आदमी पार्टी दोनों का नुकसान कर बैठती. भाजपा इसका लाभ उठाती. इसलिए कांग्रेस को अब अगले पांच साल अपना दिल्ली का घर ठीक करने में लगाने चाहिए. बहरहाल! दिल्ली चुनाव अपने कलंकित अभियान के कारण भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में लंबे समय तक याद रहेंगे.