Delhi Chunav Parinam 2025: राजधानी दिल्ली के मतदाताओं ने इस बार आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया है. भारी बहुमत के साथ जीत हुई है भाजपा की. जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता ने चुनाव पूर्व मतदाताओं को दी गई गारंटियों को पूरा करने का आश्वासन दुहराया है. चुनाव पूर्व किए गए वादे पूरे होने भी चाहिए. ऐसे में चुनाव जीतने वाले नेताओं का कर्तव्य बनता है कि वह अपने मतदाता को आश्वस्त करें. ऐसी ही एक आश्वस्ति मुस्तफाबाद चुनाव-क्षेत्र के विजयी भाजपा उम्मीदवार ने बड़े जोर-शोर से दुहराई है.
उन्होंने वादा किया था यदि वे चुनाव जीत गए तो इलाके का नाम मुस्तफाबाद नहीं रहने देंगे. उनका कहना है कि वह हर कीमत पर अपना वादा पूरा करेंगे-यानी अपने चुनाव-क्षेत्र का नाम बदलवाएंगे. उन्होंने मुस्तफाबाद का नया नाम भी बता दिया है- शिवपुरी या शिवविहार. इलाके को शिव से जुड़ा नाम देने की कोई वजह तो उन्होंने नहीं बताई, पर यह जरूर कहा है कि “यदि इलाके के हिंदुओं की संख्या इतनी ज्यादा है तो नाम मुस्तफाबाद यानी मुसलमान के नाम पर क्यों है?” बताया जा रहा है कि मुस्तफाबाद में मुसलमान 42 प्रतिशत हैं और हिंदू 58 प्रतिशत!
इसके साथ ही विजयी उम्मीदवार ने यह कहना भी जरूरी समझा है कि इलाके का यह नाम “बहुसंख्यकों को डराता है” उनका कहना यह भी है कि इलाके के कुछ हिस्सों में जाते हुए लोग (पढ़िए हिंदू) डरते हैं. उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि मुसलमानी नाम होने के कारण क्षेत्र का अपेक्षित विकास भी नहीं हो पा रहा! नवनिर्वाचित नेताजी का यह तर्क परेशान करने वाला है.
पता नहीं यह नाम क्यों रखा गया था, पर अब नाम बदलने के लिए जो तर्क दिया जा रहा है वह परेशान करने वाला है. तर्क दिया जा रहा है कि इस नाम के कारण यहां आने-रहने में लोग डरते हैं. डर के मारे बच्चियां यहां के कुछ रास्तों से स्कूल नहीं जातीं. लोग व्यापार-व्यवसाय के लिए भी इस नाम के कारण बिदकते हैं. ‘मुसलमानी नाम’ से यह शिकायत समझ नहीं आती.
यह सही है कि हिंदुओं और मुसलमानों के नाम में अंतर होता है, पर जगहों के नाम धर्म विशेष के आधार पर रखे जाएं या धर्म के आधार पर रहवासियों की अच्छाई-बुराई का निर्धारण हो, यह स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. मुस्तफाबाद का नाम बदलने का विधायकजी का वादा शायद कल पूरा भी हो जाए. बहुसंख्यकों के तर्क का सहारा लेकर इस बदलाव का औचित्य भी सिद्ध किया जा सकता है, पर यह सवाल तो अपनी जगह है ही कि संविधान और कानून के आधार पर चलने वाले हमारे बहुधर्मी देश में धर्म के आधार पर किसी को अच्छा या बुरा कैसे समझा रहा है?
हमारा संविधान सब धर्मों की समानता की बात करता है. हर एक को अधिकार है कि वह अपने धर्म का पालन करे, उसके अनुरूप आचरण करे, उसके विस्तार का प्रयास करे, पर किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह दूसरे के धर्म को ‘घटिया’ या ‘छोटा’ दिखाने-बताने की कोशिश करे. धर्म के आधार पर कोई अच्छा या बुरा नहीं होता. अच्छा या बुरा व्यक्ति अपने आचरण से बनता है. आवश्यकता आचरण की शुद्धि की है. शुद्ध आचरण का अर्थ है अपने सोच और व्यवहार को मानवोचित रखना.