Delhi Assembly Elections 2025: बहुकोणीय बनते दिल्ली विधानसभा चुनाव?, मुस्लिम मतदाता बंटे तो अरविंद केजरीवाल की मुश्किल, जानें समीकरण

By अवधेश कुमार | Updated: January 10, 2025 05:32 IST2025-01-10T05:32:02+5:302025-01-10T05:32:02+5:30

Delhi Assembly Elections 2025: 1998 से वह सत्ता से बाहर है और कुल 70 क्षेत्रों में उसे 2015 और 2020 के चुनावों में 10 भी प्राप्त नहीं हुई.

Delhi Assembly Elections 2025 live updates polls chunav becoming multi-cornered Arvind Kejriwal face trouble if Muslim voters divided equation blog Avadhesh Kumar | Delhi Assembly Elections 2025: बहुकोणीय बनते दिल्ली विधानसभा चुनाव?, मुस्लिम मतदाता बंटे तो अरविंद केजरीवाल की मुश्किल, जानें समीकरण

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Highlightsविधानसभा में उसके लिए सम्मान बचाना संभव नहीं हुआ. कांग्रेस दिल्ली की मुख्यधारा में वापसी की कोशिश में है.संदीप दीक्षित लगातार हमलावर तेवर अपनाए हुए हैं.

Delhi Assembly Elections 2025: चुनाव आयोग द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित हो चुकी है. 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 फरवरी को परिणाम आएगा. इस चुनाव के बीच ऐसे मुद्दे उठ रहे हैं जिन पर पूरा देश वैचारिक रूप से विभाजित है. 2014 के बाद दिल्ली की राजनीति आम आदमी पार्टी बनाम भारतीय जनता पार्टी के बीच दो ध्रुवीय हो गई थी. इसके पूर्व यहां भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य पार्टियां थीं. 2013 से कांग्रेस का पतन आरंभ हुआ और पिछले दो विधानसभा चुनाव से वह शून्य पर है. 2014 से लोकसभा चुनाव में भाजपा को एकतरफा सभी सीटों पर लगातार विजय मिली लेकिन विधानसभा में उसके लिए सम्मान बचाना संभव नहीं हुआ. 1998 से वह सत्ता से बाहर है और कुल 70 क्षेत्रों में उसे 2015 और 2020 के चुनावों में 10 भी प्राप्त नहीं हुई.

इस बार भाजपा अगर सत्ता में आना चाहती है तो कांग्रेस दिल्ली की मुख्यधारा में वापसी की कोशिश में है. कांग्रेस के कोषाध्यक्ष और दिल्ली के प्रमुख नेता अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल पर हमला करते हुए उन्हें देशद्रोही तक कहा तथा उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री स्व. शीला दीक्षित के पुत्र एवं पूर्व सांसद संदीप दीक्षित लगातार हमलावर तेवर अपनाए हुए हैं.

प्रश्न है क्या इस बार पिछले दो विधानसभा चुनावों से अलग परिणाम आएगा? क्या सत्ता परिवर्तित होगी? क्या दिल्ली की राजनीति तीन ध्रुवीय होगी? पिछले चुनाव तक कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की नीति किसी तरह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना था. इसके लिए वह हर तरह का समझौता कर रही थी. लोकसभा चुनाव में आप के साथ सीटों पर समझौता भी हुआ.

कांग्रेस ने रणनीति बदली और वाकई दिल्ली में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है. इसके बावजूद कुछ समय पूर्व ऐसा लगता था कि आप तीसरी बार एकपक्षीय जीत प्राप्त कर सकती है. चुनाव या किसी संघर्ष में प्रतिद्वंद्वी को पराजित करने का सबसे बड़ा सूत्र आक्रामक होना है. यानी आप आक्रामक होकर प्रतिद्वंद्वी को उत्तर देने तक सीमित रख दीजिए.

अरविंद केजरीवाल ने लगातार ऐसी घोषणाएं कीं और प्रहार किया जिसमें भाजपा के सामने उत्तर देने का ही विकल्प दिखता था. भाजपा और कांग्रेस दोनों केजरीवाल की घोषणाओं का तथ्यात्मक खंडन करती रहीं, उनकी विश्वसनीयता को भी अतीत के आधार पर प्रश्नों के घेरे में लाती रहीं लेकिन ऐसा नहीं था कि एजेंडा भाजपा तय कर रही हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव मैदान में उतरने तथा उम्मीदवारों की सूची जारी होने के साथ स्थिति बदलती दिख रही है. अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत मुफ्त की घोषणाएं रही हैं. इस बार उनका सबसे बड़ा दांव मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18 हजार रुपया मासिक वेतन की घोषणा है.

इसके पहले महिला सम्मान योजना 2100 तथा बुजुर्गों के लिए निजी एवं सार्वजनिक अस्पतालों में नि:शुल्क उपचार की संजीवनी योजना घोषित की. इस समय मुस्लिम मतदाताओं की राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का समर्थन करने की प्रवृत्ति उभरी है.

कांग्रेस की आक्रामकता देखकर आप को लग रहा है कि दिल्ली के 11 से 12 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता उसके पास गए तो समस्या बढ़ जाएगी. दूसरे, केजरीवाल को समझ आ गया है कि देश में हिंदुत्व राजनीति का एक मुख्य निर्धारक विचारधारा के रूप में बना रहेगा. इसका ध्यान रखते हुए उन्होंने पुजारियों और ग्रंथियों के वेतन की घोषणा कर दी.

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