संतोष देसाई का ब्लॉगः समय के साथ-साथ धन-संपत्ति के बदलते जा रहे हैं मायने
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 13, 2019 10:34 AM2019-10-13T10:34:17+5:302019-10-13T10:34:17+5:30
आज फिर से वस्तुओं का संग्रह करना निर्थक होता जा रहा है. डिजिटलाइजेशन पूरी दुनिया में व्याप्त हो गया है. इससे जरूरत और इसकी पूर्ति के बीच का अंतराल बहुत कम हो गया है. विपुलता की कल्पना अब बदल गई है. आज की पीढ़ी नए अनुभव लेने के लिए उत्सुक है. एक ही प्रकार की अनेक चीजों का संग्रह अब निर्थक लगता है, क्योंकि आज अनेक विकल्प उपलब्ध हैं.
संतोष देसाई
धन-संपदा के मायने आज बदलते जा रहे हैं. नई-नई तकनीकें आज उसका स्थान लेती जा रही हैं. जैसे गूगल की वजह से दुनिया में मौजूद लगभग सारी जानकारियों का दरवाजा हमारे लिए खुल गया है. इसी तरह ओयो, उबर जैसी सार्वजनिक सेवाओं ने उपभोग के स्वरूप को बदल दिया है और अब संपत्ति के वस्तुओं के रूप में संचय की आवश्यकता नहीं रह गई है.
अगर हमें अपनी मनमुताबिक चीजें इच्छानुसार आसानी से मिलती जाएं तो उनकी कीमत क्या रह जाएगी? हम दर्जनों गाड़ियां, अनेक घर और अलमारी भर कपड़े इसलिए रखते हैं कि जब जिस गाड़ी का चाहें इस्तेमाल कर सकें, जिस घर में चाहे रह सकें और जो कपड़े चाहे पहन सकें. लेकिन एक समय में हम एक ही पोशाक धारण कर सकते हैं, एक ही घर में रह सकते हैं, एक ही गाड़ी में घूम सकते हैं और कितने भी धनवान हों, पेट भर से ज्यादा भोजन नहीं कर सकते! आज के समय में इन वस्तुओं का संग्रह करके रखना निर्थक है, क्योंकि हमारी इच्छा बिना संग्रह के भी तत्काल पूर्ण हो सकती है.
यह कोई नई परिकल्पना नहीं है. आदिम युग में जब मनुष्य शिकार पर निर्भर था, तब संग्रह करके रखने की कल्पना अस्तित्व में नहीं थी, इसलिए स्वामित्व की भावना की भी कोई आवश्यकता नहीं थी. जब जरूरत पड़ती तब शिकार किया जाता था. जब मनुष्य ने संगठित रूप से बस्तियां बनाकर रहना शुरू किया तब संग्रह की जरूरत महसूस हुई, ताकि अभावों की पूर्ति की जा सके.
आज फिर से वस्तुओं का संग्रह करना निर्थक होता जा रहा है. डिजिटलाइजेशन पूरी दुनिया में व्याप्त हो गया है. इससे जरूरत और इसकी पूर्ति के बीच का अंतराल बहुत कम हो गया है. विपुलता की कल्पना अब बदल गई है. आज की पीढ़ी नए अनुभव लेने के लिए उत्सुक है. एक ही प्रकार की अनेक चीजों का संग्रह अब निर्थक लगता है, क्योंकि आज अनेक विकल्प उपलब्ध हैं. हम जिस भी चीज की कल्पना करें वह हमें उपलब्ध हो जाए तो ऐसे में संपत्ति सिर्फ काल्पनिक रह जाती है.
कल्पनाशीलता ही आज अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि रंग और कैनवास तो सबको उपलब्ध होते हैं लेकिन पिकासो कोई एक ही होता है. भविष्य में और भी बड़े बदलाव होंगे. नई कल्पनाशीलता के सामने आने पर पुरानी पीछे हो जाती है. उसका हम पर क्या असर पड़ेगा इसके बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन निश्चित रूप से हमें नई-नई संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए क्योंकि आज के समय में कल्पनाशीलता ही सबसे बड़ा धन है.