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राज कुमार सिंह का ब्लॉग: सत्ता-स्वार्थ के चलते बनते-बिगड़ते राजनीतिक रिश्ते

By राजकुमार सिंह | Updated: September 2, 2024 09:58 IST

राजनीति में रिश्ते बदलते देर नहीं लगती. 'कोल्हान के टाइगर' कहे जाने वाले चंपई सोरेन तीन जुलाई तक झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सरकार के मुख्यमंत्री थे, फिर वापस मंत्री रह गए और अगस्त समाप्त होते-होते भाजपाई बन गए.

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ठळक मुद्देकभी जिनके हाथों में धुनष-बाण होता था, अब कमल होगा. चंपई पुराने संघर्षशील नेता हैं, पर साल 2024 के आठ महीनों में झारखंड ही नहीं, देश ने उनके कई राजनीतिक रंग देख लिए.व्यक्ति केंद्रित क्षेत्रीय दलों में परिवार से बाहर किसी की ताजपोशी की कल्पना नहीं की जाती.

राजनीति में रिश्ते बदलते देर नहीं लगती. 'कोल्हान के टाइगर' कहे जाने वाले चंपई सोरेन तीन जुलाई तक झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सरकार के मुख्यमंत्री थे, फिर वापस मंत्री रह गए और अगस्त समाप्त होते-होते भाजपाई बन गए. कभी जिनके हाथों में धुनष-बाण होता था, अब कमल होगा. 

चंपई के साथ आ जाने से भी झारखंड में कमल खिल पाएगा या नहीं, यह तो 2024 के आखिर में होनेवाले विधानसभा चुनावों के नतीजे ही बताएंगे, लेकिन फिर साबित हो गया कि नेताओं के लिए अपना स्वार्थ और सत्ता ही सर्वोपरि होती है. चंपई पुराने संघर्षशील नेता हैं, पर साल 2024 के आठ महीनों में झारखंड ही नहीं, देश ने उनके कई राजनीतिक रंग देख लिए.

व्यक्ति केंद्रित क्षेत्रीय दलों में परिवार से बाहर किसी की ताजपोशी की कल्पना नहीं की जाती. फिर भी झामुमो के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन ने इसी साल जनवरी के आखिरी दिन मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर चंपई सोरेन को झारखंड का नया मुख्यमंत्री बनवाया. 

उनके शपथ ग्रहण के लिए दो दिन तक राजभवन की हीला-हवाली के लिए तब जिस केंद्र सरकार और भाजपा पर उंगली उठी थी, चंपई ने अब उन्हीं का दामन थाम लिया. इस्तीफा देना शायद हेमंत की मजबूरी थी, लेकिन चंपई को मुख्यमंत्री बनाना राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ उदारता भी थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मनी लांड्रिंग केस में गिरफ्तारी के चलते हेमंत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. 

बेशक वह अरविंद केजरीवाल की तरह जेल से सरकार चलाने की जिद कर सकते थे या फिर पड़ोसी राज्य बिहार में दशकों पुराने लालू-राबड़ी यादव प्रकरण से प्रेरणा लेकर अपनी पत्नी कल्पना को मुख्यमंत्री बना सकते थे. लेकिन विरोधियों को लोकसभा चुनाव में उनके विरुद्ध परिवारवाद का मुद्दा मिल जाता. शायद इसलिए भी उन्होंने वरिष्ठ आदिवासी नेता चंपई सोरेन को उत्तराधिकारी बनाया.  

चंपई को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो उसे हेमंत का  'ट्रंप कार्ड' माना गया. झारखंड के संघर्षशील आदिवासी नेताओं में शुमार चंपई की ताजपोशी का झामुमो को अप्रैल से जून के बीच हुए 18 वीं लोकसभा के चुनावों में लाभ भी मिला. 2019 के लोकसभा चुनाव में 14 में से 11 सीटें जीतनेवाली भाजपा इस बार आठ सीटों पर सिमट गई, जबकि आदिवासी बहुल पांचों सीटें विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' ने जीत लीं. 

तीन सीटें झामुमो ने जीतीं, जबकि दो कांग्रेस ने. हेमंत का राजनीतिक दांव चुनावी बिसात पर भी 'ट्रंप कार्ड' साबित हो रहा था, लेकिन हाई कोर्ट से जमानत मिलते ही उन्होंने वापस मुख्यमंत्री बनने की जो जल्दबाजी दिखाई, उससे इसी साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनावों में बाजी पलट भी सकती है.  अगर चंपई को ही मुख्यमंत्री रखते हुए हेमंत आक्रामक चुनाव प्रचार का नेतृत्व करते तो परिणाम एकतरफा भी हो सकते थे.  

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