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वैक्सीन प्राइस वॉर की अब होगी शुरुआत! हरीश गुप्ता का ब्लॉग

By हरीश गुप्ता | Updated: April 15, 2021 14:48 IST

जॉनसन एंड जॉनसन भी लंबा समय लेने वाली है. यह इस सबके बावजूद है कि मोदी सरकार ने सभी को सिर्फ एक हफ्ते के लिए मात्र सौ लोगों के ट्रायल की शर्त पर भारत आने की अनुमति दे दी है.

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ठळक मुद्देनई वैक्सीनों के ट्रायल को लेकर कठोर नियम-कानूनों में ढील दे दी गई है.फाइजर ने अपना आवेदन वापस ले लिया है जबकि मॉडर्ना ने आवेदन ही नहीं किया है.शायद ही कोई अंतरराष्ट्रीय ब्रांड निकट भविष्य में भारत आने वाला है.

कोरोना के टीकों को लेकर बढ़ते शोर और इसकी कमी को लेकर राजनीतिक संकट पैदा होने से प्रधानमंत्री पर भी दबाव बढ़ने लगा है.

नई वैक्सीनों के ट्रायल को लेकर कठोर नियम-कानूनों में ढील दे दी गई है और विदेशी वैक्सीनों के लिए दरवाजे पूरी तरह से खोल दिए गए हैं. लेकिन न तो फाइजर और न ही मॉडर्ना के जल्दी भारत आने की संभावना दिखाई दे रही है. हतोत्साहित फाइजर ने अपना आवेदन वापस ले लिया है जबकि मॉडर्ना ने आवेदन ही नहीं किया है.

जॉनसन एंड जॉनसन भी लंबा समय लेने वाली है. यह इस सबके बावजूद है कि मोदी सरकार ने सभी को सिर्फ एक हफ्ते के लिए मात्र सौ लोगों के ट्रायल की शर्त पर भारत आने की अनुमति दे दी है. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि स्पुतनिक के अलावा शायद ही कोई अंतरराष्ट्रीय ब्रांड निकट भविष्य में भारत आने वाला है.

कारण यह है कि यह कंपनियां जिन देशों से करोड़ों डॉलर एडवांस में ले कर करार कर चुकी हैं, पहले उन्हें वैक्सीन की आपूर्ति करेंगी. दूसरा, ये कंपनियां वैक्सीन की हर खुराक के लिए दस से तीस डॉलर वसूल रही हैं, जबकि सरकारी खरीद के लिए मोदी कीमत को ज्यादा से ज्यादा कम कराए बिना नहीं मानेंगे.

यहां तक कि स्पुतनिक के लिए भी अपने टीकों को वर्तमान कीमत 750 रु. से कम करना कठिन हो रहा है और साठ देशों में स्पुतनिक को 750 रु. प्रति खुराक की दर पर बेचा गया है. कड़ी सौदेबाजी चल रही है. सीरम पहले ही कोविशील्ड की कीमत को बढ़ाए जाने की मांग कर रहा है और कोवैक्सीन की भी आर्थिक मदद की मांग है.

स्पुतनिक वी को अनुमति भले ही मिल गई है लेकिन रूस कीमत कम करने का इच्छुक नहीं है और मोदी स्पुतनिक को 200-250 रु. प्रति डोज से अधिक राशि अदा करने के लिए राजी नहीं होंगे. भारत में वैक्सीन के लिए होने वाले प्राइस वॉर को दुनिया बहुत ध्यान से देख रही है. एक अन्य विकल्प यह है कि सीरम और भारत बायोटेक के लिए बेस प्राइस बढ़ाए बिना निजी कंपनियों को खुले बाजार में अपनी वैक्सीन बेचने की अनुमति दी जाए. निश्चित रूप से यह एक कठिन परिस्थिति है.

महाराष्ट्र की शक्तिशाली पत्नियां

अगर आपको लगता है कि राज्यों में केवल शीर्ष पदों पर काबिज पुलिस अधिकारी ही शक्तिशाली हैं तो आपकी धारणा पूरी तरह से गलत साबित हो सकती है. अनिल देशमुख-परमबीर सिंह विवाद को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रलय को महाराष्ट्र में कुछ चौंकाने वाली जानकारियां मिली हैं. पता चला है कि महाराष्ट्र में कुछ शीर्ष पुलिस अधिकारियों की पत्नियां कुछ बड़ी निजी कंपनियों में प्रमुख पदों पर काबिज हैं.

बताया जा रहा है कि अमित शाह सीधे मामले की निगरानी कर रहे हैं और सीबीआई, एनआईए, ईडी तथा आयकर विभाग को जांच के लिए मुस्तैद कर दिया गया है. पता चला है कि एक शीर्ष पुलिस अधिकारी की पत्नी, जो इन दिनों खबरों में है, कई कंपनियों में निदेशक है. चार अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की पत्नियां भी विभिन्न कंपनियों में निदेशक हैं. लेकिन यह पूरी तरह से कानूनी है. तो क्या हुआ अगर गृह मंत्रलय डोजियर मांग रहा है!

पश्चिम बंगाल बनेगा वॉटरलू!

प. बंगाल के चुनाव भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक साबित होने जा रहे हैं. भगवा पार्टी के आलोचकों ने पहले ही यह कहना शुरू कर दिया है कि ममता बनर्जी की पराजय ‘हिंदू राष्ट्र’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी. भाजपा हर राज्य में चुनाव के पहले माहौल बनाना जानती है और राज्यों के चुनाव जीतने के लिए अपने तरकश के हर हथियार का उपयोग करती है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा के लिए 2016 में असम और 2017 में यूपी की जीत गेम-चेंजर थी. लेकिन उसे एक के बाद एक कई झटके भी लगे. दिल्ली और बिहार (2015), झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब और 2020 में अरविंद केजरीवाल की पार्टी से मिली हार इसमें शामिल है. यह अलग बात है कि कई राज्यों में अपनी हार को उसने जीत में भी बदल दिया, जैसे मध्य प्रदेश, गोवा, मणिपुर और हरियाणा में. इन राज्यों में अपनी सरकार बनाने के लिए उसने हर हथकंडे अपनाए.

भाजपा के अंदरूनी लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि पार्टी लोकसभा चुनाव भले ही जीत ले लेकिन बात जब राज्यों के चुनाव की आती है तो उसने 2014 से 2019 के बीच अपने लोकप्रिय वोटों का दस प्रतिशत और 2019 से 2021 के बीच 12 प्रतिशत गंवाया है. इसलिए एक जीत या हार से ‘हिंदू राष्ट्र’ की खतरे की घंटी नहीं बज जाएगी, जैसा कि विपक्ष के लोग कह रहे हैं.

विपक्षी दलों को लगता है कि ममता प. बंगाल के बाहर मोदी के खिलाफ उनका समर्थन नहीं करेंगी. इसलिए वे ममता के नए शब्दाडंबर को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. ममता द्वारा एक विशेष समुदाय के सदस्यों को अपने लिए वोट करने को एकजुट करने में विफल रहने के बाद यह कोलाहल पैदा हुआ है.

‘सांप्रदायिक भाजपा’ के खिलाफ एकजुट लड़ाई के लिए 14 राजनीतिक दलों के नेताओं को लिखा उनका पत्र संकेत देता है कि टीएमसी बहुत चिंतित है. प्रधानमंत्री द्वारा रैलियों में ममता पर किए जाने वाले आक्षेप भाजपा की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हैं, जिसे अमित शाह और जे. पी. नड्डा ने राज्य के नेताओं के साथ एक बंद कमरे की बैठक में अंजाम दिया था. प. बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से  ममता बनर्जी और भाजपा के लिए वॉटरलू हैं.

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