कोविड-19: मदद से सरकार नहीं कर सकती इनकार, कपिल सिब्बल का ब्लॉग

By कपील सिब्बल | Published: June 30, 2021 02:33 PM2021-06-30T14:33:38+5:302021-06-30T14:35:36+5:30

गृह मंत्रलय ने 8 अप्रैल 2015 को आपदा की स्थिति में राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) दोनों के तहत उपलब्ध सहायता के मानदंडों का निरूपण किया था.

covid-19 cornavirus flood ndrf doctor Government cannot deny help Kapil Sibal's blog | कोविड-19: मदद से सरकार नहीं कर सकती इनकार, कपिल सिब्बल का ब्लॉग

14 मार्च 2020 को सरकार ने महामारी को अधिसूचित आपदा घोषित किया.

Highlightsनागरिकों को यह महसूस कराने के लिए कि उनका ध्यान रखा जा रहा है, सरकार को कदम उठाना होता है. 2015 से 2020 की अवधि में लागू थे, जिसके दौरान कोविड-19 महामारी ने कहर बरपाया.आपदा से मृत व्यक्ति के परिवार को 4 लाख की अनुग्रह राशि के भुगतान का प्रावधान है.

धरती पर रहने वाले लोग प्राकृतिक आपदाओं से बच नहीं सकते. वे बिना किसी सूचना के, बिना किसी चेतावनी के कहर ढाती हैं.

हमने कस्बों और शहरों को धराशायी होते देखा है, जिंदगियां खत्म हुई हैं और बस्तियां साफ हो गई हैं. ऐसी है प्रकृति की शक्ति. हम केवल उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो प्रकृति के प्रकोप से बचे हैं - जिन्होंने अपनी आजीविका खो दी है, अनाथ हो गए हैं और महसूस करते हैं कि अपने प्रियजनों को खोने के बाद उनके पास जीने के लिए कुछ भी नहीं बचा है.

ऐसे समय में नागरिकों को यह महसूस कराने के लिए कि उनका ध्यान रखा जा रहा है, सरकार को कदम उठाना होता है. गृह मंत्रलय ने 8 अप्रैल 2015 को आपदा की स्थिति में राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) दोनों के तहत उपलब्ध सहायता के मानदंडों का निरूपण किया था.

ये मानदंड 2015 से 2020 की अवधि में लागू थे, जिसके दौरान कोविड-19 महामारी ने कहर बरपाया. उक्त मानदंडों के तहत राहत कार्यों और तैयारियों की गतिविधियों में शामिल लोगों सहित आपदा से मृत व्यक्ति के परिवार को 4 लाख की अनुग्रह राशि के भुगतान का प्रावधान है. तर्कसंगत रूप से ऐसी व्यवस्था उन सभी लोगों के लिए उपलब्ध होनी चाहिए जो कोविड-19 महामारी से निपट रहे हैं- डॉक्टर, फ्रंटलाइन वर्कर और वे लोग जिन्हें अपने व्यवसाय के आधार पर संक्रमित लोगों को बचाने की कोशिश करते हुए खुद को वायरस से संक्रमित होने के जोखिम में डालने की आवश्यकता थी.

ऐसे अन्य लोग भी हैं जिन्होंने अत्यावश्यक सेवाओं को जारी रखने के लिए आवश्यक नागरिक कार्यों को किया. दूसरों की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इन बहादुर नागरिकों के प्रति हम सिर्फ कृतज्ञता जता कर दायित्वमुक्त नहीं हो सकते. इसलिए यह बहुत चिंता का विषय है कि भारत सरकार ने 2015 के आदेश के तहत मानदंडों को हमारे अग्रिम पंक्ति के ‘सैनिकों’ पर लागू करने से इंकार कर दिया है, जिन्होंने हमें कोविड-19 महामारी से बचाने का प्रयास करते हुए अपनी जान गंवाई. 14 मार्च 2020 को सरकार ने महामारी को अधिसूचित आपदा घोषित किया.

लेकिन कुछ ही घंटों के भीतर, आदेश को संशोधित कर दिया गया. नए आदेश में सहायता के मानदंडों की सूची में मृतक के परिवारों को अनुग्रह राशि का भुगतान करने की बात नहीं कही गई है. यह अमानवीय आचरण की सीमा है. सरकार का तर्क यह है कि इन मानदंडों द्वारा परिकल्पित आपदा एक बार की घटना है; जबकि कोविड-19 कोई ऐसी आपदा नहीं है, क्योंकि यह एक उभरती हुई वैश्विक महामारी है.

यह एक ऐसी घटना है जिसकी तीव्रता अलग-अलग है और जो लहरों के माध्यम से म्यूटेट कर रही है, जिससे यह वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन गई है. वास्तव में, सरकार के अनुसार इसके पहले वित्त आयोगों ने 12 चिन्हित आपदाओं- चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, पाला और शीत लहर के लिए ही मानदंडों के अनुसार वित्तीय राहत प्रदान करने के लिए अनुग्रह राशि दिए जाने की सिफारिश की है. सरकार ने तय किया है कि ज्ञात आपदाओं पर लागू होने वाले मानदंड कोविड-19 के पीड़ितों पर नहीं लागू होते हैं.

उसका तर्क यह है कि वायरस से संक्रमित होने से पहले लोगों को इस महामारी के बारे में पता नहीं था. हालांकि, नए वायरस की प्रकृति का पता तब तक नहीं चलता जब तक वे मानव शरीर पर हमला नहीं कर देते. कोविड-19 एक ऐसा ही वायरस है. दुनियाभर में लाखों लोगों की इस वायरस से जान जा चुकी है.

अकेले भारत में ही आधिकारिक आंकड़ों को मानें तो लगभग चार लाख लोग इस वायरस से अपनी जान गंवा चुके हैं. संख्या निस्संदेह बहुत अधिक है. सीधे शब्दों में कहें तो सरकार के अनुसार, एक अज्ञात आपदा एक पहचानी गई आपदा के समान नहीं है, जिसके लिए मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने की आवश्यकता होती है. ऐसी व्याख्या तर्क की अवहेलना करती है.

सरकार अपने ही तर्क से इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि कोविड-19 एक आपदा है. यह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत आती है, जिसमें प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने का प्रावधान है. वायरस की बदलती प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इसके लिए एक बहुआयामी प्रक्रिया को अपनाए जाने की जरूरत है.

जब ऐसी आपदा जीवन और आजीविका को नष्ट कर देती है तो राज्य अपने नागरिकों की रक्षा करने के लिए बाध्य है. ऐसे समय में दी गई कोई भी राहत दया या उदारता नहीं बल्कि यह राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है. आपदा की प्रकृति में फर्क के कारण दूसरों को दिए गए मुआवजे से अन्य परिवारों को वंचित करना भेदभावपूर्ण है.

चाहे आपदा एक बार की घटना हो या निरंतर त्रसदी, अपने प्रियजनों को खोने वालों के परिवारों को मुआवजा देने का कर्तव्य अलग नहीं है और यह इस बात पर निर्भर नहीं कर सकता है कि सरकार द्वारा आपदा को अधिसूचित किया गया है या नहीं. अधिसूचना मुआवजे की प्रकृति को नहीं बदल सकती है. सरकार का निर्णय त्रसदी की स्थिति को नहीं बदल सकता.

कारोबारी माहौल को बढ़ावा देने के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र को बड़े पैमाने पर आर्थिक पैकेज और कर लाभ मिलते हैं. दिवाला प्रक्रिया में बैंक हजारों करोड़ रुपए लेते हैं. इसके लिए जनता के पैसे की कुर्बानी दी जा सकती है, लेकिन आपदा में जान गंवाने वालों के लिए नहीं? यह राजकोष पर बोझ है!

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