कोरोना : आबादी घनत्व और सॉफ्ट स्टेट चिंता का विषय, पढ़ें एन. के. सिंह का ब्लॉग
By एनके सिंह | Updated: March 13, 2020 06:06 IST2020-03-13T06:06:04+5:302020-03-13T06:06:04+5:30
चीन में अगर सरकार के अदना से कर्मचारी ने ऐलान कर दिया कि कोई घर से नहीं निकलेगा तो भूख से तड़पने के बावजूद कोई इसके उल्लंघन की हिमाकत नहीं करेगा. पर भारत में संभव है कि ऐसे ऐलान को भी मोदी सरकार का ‘हिटलरशाही रवैया’ मान कर एक बड़ा वर्ग फिर से ‘धरने’ पर बैठ जाए और ह्यूमन राइट्स कार्यकर्ता इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ख) और (घ) - एकत्रित होने और देश में संचरण की स्वतंत्नता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन मानने लगें.

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चीन सरकार की तारीफ की कि उसने इतनी भयानक संक्रामक बीमारी पर अपेक्षाकृत कम जनहानि के साथ दो हफ्ते में काबू पा लिया और उसे वुहान के अलावा अन्य राज्यों में उसी शिद्दत से बढ़ने नहीं दिया. ठीक उसी समय दो अमेरिकी एजेंसियों ने, जो दुनिया के देशों में कोरोना से लड़ने की स्थिति का जायजा ले रही थीं, अमेरिकी संसदीय समिति को बताया कि भारत को लेकर विशेष चिंता करने की जरूरत है.
जो कारण इन एजेंसियों ने गिनाए उनमें प्रमुख था भारत का 435 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी आबादी घनत्व, जो चीन के मुकाबले तीन गुना है और ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड (चार), अमेरिका (36) के मुकाबले क्रमश: 110 और 13 गुना.
दूसरी समस्या है भारत के ‘सॉफ्ट-स्टेट होने’ की. चीन में अगर सरकार के अदना से कर्मचारी ने ऐलान कर दिया कि कोई घर से नहीं निकलेगा तो भूख से तड़पने के बावजूद कोई इसके उल्लंघन की हिमाकत नहीं करेगा. पर भारत में संभव है कि ऐसे ऐलान को भी मोदी सरकार का ‘हिटलरशाही रवैया’ मान कर एक बड़ा वर्ग फिर से ‘धरने’ पर बैठ जाए और ह्यूमन राइट्स कार्यकर्ता इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ख) और (घ) - एकत्रित होने और देश में संचरण की स्वतंत्नता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन मानने लगें.
सरकार के ‘सॉफ्ट स्टेट’ होने का मुजाहरा तब मिला जब देश के सबसे मकबूल नेता और प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने होली न मनाने का ऐलान किया और गृह मंत्नी ही नहीं पूरी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा ने भी यही रास्ता अपनाया. लेकिन मोदी ने यह अपील जनता से नहीं की क्योंकि इससे ‘पैनिक’ फैल जाने का खतरा था.
अमेरिकी एजेंसियों के अनुसार कोरोना वायरस का शिकार एक रोगी दो से तीन लोगों को प्रभावित करता है अगर वे मात्न चार फुट या इससे कम की दूरी में हैं. फिर भारतीय समाज आदतन ऐसी संक्रामक बीमारियों में भी दूरी नहीं बनाता.
ग्रामीण भारत में अशिक्षा-जनित उदासीनता जगजाहिर है. तीसरी समस्या उदारवादी शासन-व्यवस्था की है जिसमें राज्य यानी सरकार का सख्त कदम लोगों के गुस्से का कारण बनता है, लिहाजा सरकारें रोकथाम के लिए सख्त कदम उठाने से बचती हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार इसका घातक प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाएगा. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार भी कुछ शहरी क्षेत्नों तक ही सीमित है. लिहाजा गांवों में इस संकट से निपटने के विशेष प्रबंध करने होंगे. अमेरिका ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी देशों को मदद करने का खाका तैयार कर रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सघन आबादी वाले भारत में इस पर अंकुश के उपाय सरकार के लिए चुनौती हैं.