वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः मजदूरों को और दो-तीन महीने प्रदान करें राहत
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 8, 2020 05:57 IST2020-07-08T05:57:07+5:302020-07-08T05:57:07+5:30
कोरोना और उसका डर इतना फैला हुआ है कि मजदूर लोग अभी शहरों में लौटना नहीं चाहते. ऐसी स्थिति में सरकार को तुरंत कोई रास्ता निकालना चाहिए. वह चाहे तो एक ही परिवार के दो लोगों को रोजगार देने का प्रावधान कर सकती है.

कोरोना के डर की वजह से मजदूर लोग अभी शहरों में लौटना नहीं चाहते. (फाइल फोटो)
तालाबंदी के दौरान जो करोड़ों मजदूर अपने गांवों में लौट गए थे, उन्हें रोजगार देने के लिए सरकार ने महात्मा गांधी रोजगार योजना (मनरेगा) में जान डाल दी थी. सरकार ने लगभग साढ़े चार करोड़ परिवारों की दाल-रोटी का इंतजाम कर दिया था. लेकिन इस योजना की तीन बड़ी सीमाएं हैं. एक तो यह कि इसमें दिन भर की मजदूरी लगभग 200 रुपए है. दूसरा, किसी भी परिवार में सिर्फ एक व्यक्ति को ही मजदूरी मिलेगी. तीसरा, पूरे साल में 100 दिन से ज्यादा काम नहीं मिलेगा. यानी 365 दिनों में से 265 दिन उस मजदूर या उस परिवार को कोई अन्य काम ढूंढ़ना पड़ेगा.
सरकार ने तालाबंदी के बाद मनरेगा की कुल राशि में मोटी वृद्धि तो की ही, उसके साथ-साथ करोड़ों लोगों को मुफ्त अनाज बांटने की घोषणा भी की. इससे भारत के करोड़ों नागरिकों को राहत तो जरूर मिली है लेकिन अब कई समस्याएं एक साथ खड़ी हो गई हैं. पहली तो यह कि सवा लाख परिवारों के 100 दिन पूरे हो गए हैं. 7 लाख परिवारों के 80 दिन और 23 लाख परिवारों के 60 दिन भी पूरे हो गए. शेष चार करोड़ परिवारों के भी 100 दिन कुछ हफ्तों में पूरे हो जाएंगे. फिर इन्हें काम नहीं मिलेगा. ये बेरोजगार हो जाएंगे. अभी बरसात और बोवनी के मौसम में गैर-सरकारी काम भी गांवों में काफी हैं लेकिन कुछ समय बाद शहरों से गए ये मजदूर क्या करेंगे? इनका पेट भरने का जरिया क्या होगा?
कोरोना और उसका डर इतना फैला हुआ है कि मजदूर लोग अभी शहरों में लौटना नहीं चाहते. ऐसी स्थिति में सरकार को तुरंत कोई रास्ता निकालना चाहिए. वह चाहे तो एक ही परिवार के दो लोगों को रोजगार देने का प्रावधान कर सकती है. 202 रुपए रोज देने की बजाय 250 रुपए रोज दे सकती है और 100 दिन की सीमा को 200 दिन तक बढ़ा सकती है ताकि अगले दो-तीन माह, जब तक कोरोना का खतरा है, मजदूर लोग और उनके परिवार के बुजुर्ग और बच्चे भूखे नहीं मरें. जब कोरोना का खतरा खत्म हो जाएगा तो ये करोड़ों मजदूर खुशी-खुशी काम पर लौटना चाहेंगे और सरकार का सिरदर्द अपने आप ठीक हो जाएगा.
उधर गलवान घाटी का तनाव घट रहा है तो सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह अब अपना पूरा ध्यान कोरोना से लड़ने में लगाएगी. चीन के मामले में मैं 16 जून से यही कह रहा था और चाहता था कि दोनों देशों के शीर्ष नेता सीधे बात करें तो सारा मामला हल हो सकता है. अच्छा हुआ कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने पहल की. परिणाम अच्छे हैं. डोभाल को अभी मंत्नी का ओहदा तो मिला ही है, अब उनकी राजनीतिक हैसियत इस ओहदे से भी ऊपर हो जाएगी. अब उन्हें सीमा-विवाद के स्थायी हल की पहल भी करनी चाहिए.