Congress Bihar Election Committee: कांग्रेस ने बिहार के लिए जो प्रदेश चुनाव समिति का गठन किया है, उसमें कन्हैया कुमार को जगह न मिलना कई बड़े सवाल खड़े कर रहा है. सितंबर 2021 में जब कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थामा तो यह माना गया था कि कांग्रेस बिहार में अब नए चेहरे के साथ दांव खेलना चाह रही है. मगर कुछ ही दिनों में स्पष्ट हो गया कि जिस राष्ट्रीय जनता दल के साथ कांग्रेस गठबंधन में दिख रही है, उसके नेता तेजस्वी यादव को कन्हैया कुमार फूटी आंख भी नहीं सुहाते. इसका कारण स्पष्ट है कि कन्हैया कुमार बिहार में काफी प्रचलित हो चुके हैं.
वे कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए हर तरह से हाथ-पैर मार रहे हैं. यदि कांग्रेस मजबूत हो गई तो निश्चय ही इसका खामियाजा आरजेडी को भुगतना पड़ेगा. कन्हैया के खाते में तेजस्वी के हिस्से के वोट ही जाएंगे. स्वाभाविक है कि आरजेडी कभी नहीं चाहेगा कि कांग्रेस को मजबूत होने का मौका मिले.
इधर कांग्रेस की हालत ऐसी है कि इस चुनाव में तो अपने बलबूते कुछ कर पाने की हालत में पार्टी है नहीं. हालांकि राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की है. कई रैलियां निकाली हैं और कन्हैया कुमार जैसे नेता उन्हें भरोसा दिलाने की कोशिश करते रहे हैं कि कांग्रेस यदि अपने बलबूते पर चुनाव लड़े तो भले ही सरकार न बना पाए लेकिन विधायकों की अच्छी संख्या उसके पास जरूर हो सकती है.
मगर राहुल गांधी को संभवत: ऐसा लगता है कि यदि राजद के साथ चुनाव लड़े तो ज्यादा फायदा होगा. फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि सीटों का बंटवारा कैसे होगा. कांग्रेस 100 सीटेें चाहती है और आरजेडी शायद ही 50 सीट भी देना चाहे. इस बीच गठबंधन में आरजेडी के सामने कांग्रेस स्पष्ट रूप से दबाव में नजर आ रही है.
इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कन्हैया कुमार को चुनाव समिति से बाहर रखना. राहुल गांधी की पिछली यात्रा में यह स्पष्ट भी हो गया था कि तेजस्वी यादव को किसी भी सूरत में राहुल गांधी नाराज नहीं करना चाहते हैं. बिहार में यात्रा के दौरान राहुल और तेजस्वी यादव के वाहन पर कन्हैया कुमार भी चढ़ना चाहते थे लेकिन बड़ी जिल्लत के साथ उन्हें उतार दिया गया.
यह स्थिति तब हुई जब उसके पहले ही कन्हैया कुमार गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में तेजस्वी यादव को अपनी स्वीकृति दे चुके हैं. मगर तेजस्वी यादव को ऐसा कोई चेहरा चाहिए ही नहीं जो भविष्य में उनके लिए चुनौती बन सके. 2019 में कन्हैया ने जब सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ा था तब आरजेडी ने तनवीर हसन को मैदान में उतार दिया था.
ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कन्हैया कुमार न जीतें. 2023 में पटना में एक कार्यक्रम में तेजस्वी को मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना था लेकिन अंतिम समय में उन्हें पता चला कि उस कार्यक्रम में कन्हैया को भी आमंत्रित किया गया है तो तेजस्वी शामिल ही नहीं हुए. तेजस्वी की बात तो समझ में आती है कि वे कन्हैया को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते लेकिन कांग्रेस ने उन्हें समिति में शामिल नहीं किया.
इसका मतलब यह है कि कांग्रेस बिहार में फिलहाल आरजेडी की पिछलग्गू पार्टी ही बने रहना चाहती है. क्या कांग्रेस को यह बात समझ में नहीं आती है कि बिहार में उसकी नैया लालू यादव ने डुबोई है. 2020 के चुनाव में कांग्रेस को केवल 19 सीटें मिली थीं. उसके पहले सीटों की संख्या 27 थी.
इस बार कांग्रेस ने तीन कंपनियों को यह दायित्व सौंपा कि वो कंपनियां विधानसभा वार सर्वे करें और पार्टी की स्थिति का ब्यौरा कांग्रेस को दें. तीनों कंपनियों ने सर्वे के बाद कहा कि कांग्रेस को बिहार की 100 सीटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, वहां पार्टी को यदि निचले स्तर से मजबूत किया जाए तो इसका जबर्दस्त लाभ मिल सकता है लेकिन कांग्रेस ने शायद उस रिपोर्ट को भी दरकिनार कर दिया है.
अन्यथा कन्हैया कुमार को इस तरह से किनारे नहीं बैठाया जाता. राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कांग्रेस के लंगड़े घोड़ों, बारात के घोड़ों और रेस के घोड़ों की चर्चा की थी लेकिन बिहार में कांग्रेस का जो रवैया दिख रहा है, उससे तो यही आशंका होती है कि रेस के घोड़ों को भी लंगड़ा घोड़ा बनाने से पार्टी को कोई परहेज नहीं है. कन्हैया कुमार अब उड़ नहीं पाएंगे. ऐसे में बिहार में सवाल पूछा जाना लाजिमी है कि कन्हैया कुमार के पंख आखिर कौन नोच रहा है? राजद या फिर कांग्रेस?