हेमधर शर्मा ब्लॉग: महाविनाश जल्दी लाने की प्रकृति और इंसानों के बीच लगती होड़

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 30, 2024 06:58 IST2024-10-30T06:58:10+5:302024-10-30T06:58:27+5:30

लेकिन उस महान तलवारबाज ने बिना क्रोधित हुए पूरी शालीनता से कहा था कि जितनी आसानी से मैं तुम्हारे इस थूक को पोंछ सकता हूं,

competition between nature and humans to bring about cataclysm quickly | हेमधर शर्मा ब्लॉग: महाविनाश जल्दी लाने की प्रकृति और इंसानों के बीच लगती होड़

हेमधर शर्मा ब्लॉग: महाविनाश जल्दी लाने की प्रकृति और इंसानों के बीच लगती होड़

संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि दुनिया 3.1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है. रिपोर्ट के अनुसार अगर सभी देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपने मौजूदा वादों को पूरा करें तो दुनिया में तापमान वृद्धि 1.8 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो सकती है. हालांकि यह वृद्धि भी भयंकर गर्मी, तूफान और सूखे जैसे गंभीर प्रभावों को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन 3.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी में तो हम इंसानों का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा!

जिस तबाही की आशंका जताई जा रही है, वह निकट भविष्य के गर्भ में ही है; परंतु इंसानी अस्तित्व को बचाने की चिंता किसे है? कुछ साल पहले कोरोना महामारी ने भी मानव जाति को दहला दिया था. तब कुछ महीनों के लॉकडाउन से ही प्रदूषित हो चुकी प्रकृति में अपूर्व निखार आ गया था. अगर वह महामारी प्रकृति की चेतावनी थी हम इंसानों के लिए कि अभी भी वक्त है, सुधर जाएं; तो शायद हमने इसकी बुरी तरह से अनदेखी की है.

होड़ तो अब इसकी लगी है कि हम मनुष्यों का खात्मा प्राकृतिक आपदाएं करेंगी या उसके पहले हम खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार कर खत्म हो जाएंगे! दुनिया में एक जगह युद्ध की आग बुझने नहीं पाती कि दूसरी जगह भड़क उठती है. अपने तुच्छ अहंकारों की तुष्टि के लिए हम मनुष्य एक-दूसरे से बढ़कर विनाशलीला रचाने की होड़ में लगे हैं.

कहते हैं एक बार किसी महान तलवारबाज को किसी युवा योद्धा ने तलवारबाजी के लिए ललकारा था, लेकिन उसने लड़ने से मना कर दिया. तब युवा योद्धा ने उपहास करते हुए उसपर थूक दिया था. लेकिन उस महान तलवारबाज ने बिना क्रोधित हुए पूरी शालीनता से कहा था कि जितनी आसानी से मैं तुम्हारे इस थूक को पोंछ सकता हूं, उतनी ही आसानी से तुम्हारे कटे हुए सिर से खून भी पोंछ पाता तो जरूर लड़ता.

अपने झूठे अहंकारों के लिए लड़ने वाले देश क्या जानते हैं कि दुनिया को वे विनाश के जिस गर्त में ले जाने में मददगार बन रहे हैं, वहां से लौट पाना मानव जाति के लिए करीब-करीब असंभव हो जाएगा? पुराने जमाने में जब कोई गुरु अपने शिष्य को कोई ऐसी विद्या प्रदान करता था, जिससे समाज में किसी का नुकसान होने की भी आशंका हो तो पहले वह अपने शिष्य से प्रतिज्ञा करवा लेता था कि वह कभी उस विद्या का दुरुपयोग नहीं करेगा.

क्या हमारे भविष्यद्रष्टा ऋषियों ने इसीलिए भौतिक आविष्कारों के चक्कर में पड़ने से परहेज किया था कि कभी बंदर के हाथ में उस्तरा न लग जाए! आध्यात्मिक ज्ञान की जो विरासत वे छोड़ जाते थे, उसके लिए भी नियम बना जाते थे कि यम-नियमों का पालन करने वाला ही वह ज्ञान पाने का अधिकारी बन सकता है, ताकि फिर किसी रावण जैसे विद्वान राक्षस का उद्‌भव न हो सके.

बहरहाल, सुदूर भविष्य में अगर हमसे कोई उच्च सभ्यता पनपी तो अपनी पुरातात्विक खोजों के जरिये शायद यह जान सके कि अपने ही हाथों अपने विनाश को आमंत्रित करने वाले उसके पूर्वजों ने भौतिक तरक्की तो खूब कर ली थी, लेकिन खुद को एक अच्छा इंसान नहीं बना पाए थे और इसीलिए भस्मासुर बन गए थे!

Web Title: competition between nature and humans to bring about cataclysm quickly

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