ब्लॉग: सांप्रदायिकता भड़काने को माना जाना चाहिए कठोर अपराध

By विश्वनाथ सचदेव | Published: December 29, 2021 12:01 PM2021-12-29T12:01:14+5:302021-12-29T12:05:24+5:30

लगभग एक सदी पहले अमेरिका में ऐसी एक धर्म-संसद का आयोजन हुआ था. उसमें दुनिया भर के धर्मो के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. स्वामी विवेकानंद ने वहां हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था. और ‘मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों’ के संबोधन के साथ जब उन्होंने अपनी बात कहनी शुरू की तो तालियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

communalism hate speech haridwar dharm sansad crime | ब्लॉग: सांप्रदायिकता भड़काने को माना जाना चाहिए कठोर अपराध

ब्लॉग: सांप्रदायिकता भड़काने को माना जाना चाहिए कठोर अपराध

Highlightsलगभग एक सदी पहले अमेरिका में ऐसी एक धर्म-संसद का आयोजन हुआ था.उस धर्म-संसद में स्वामी विवेकानंद का सर्वधर्म का संदेश एक जादुई प्रभाव छोड़ गया था.हरिद्वार धर्म संसद में एक ‘पराया’ माने जाने वाले धर्म को मानने वालों के खिलाफ जहर उगला गया.

सामान्यत: जब कोई धर्म-संसद की बात करता है तो उसका यही अर्थ लिया जा सकता है कि ऐसी किसी सभा में धार्मिक विषयों को लेकर चिंतन होगा. सामान्यत: ऐसे आयोजनों में धर्मगुरु ही भाग लेते हैं और माना जाता है कि उनका आध्यात्मिक संदेश किसी भी समाज को जीवन को बेहतर बनाने में मददगार होगा. 

लगभग एक सदी पहले अमेरिका में ऐसी एक धर्म-संसद का आयोजन हुआ था. उसमें दुनिया भर के धर्मो के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. स्वामी विवेकानंद ने वहां हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था. और ‘मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों’ के संबोधन के साथ जब उन्होंने अपनी बात कहनी शुरू की तो तालियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

अपने उस उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘मुझे एक ऐसे धर्म से संबंधित होने का गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाई हैं.’ 

उनका यह संदेश कि ‘हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मो को सत्य मानते हैं,’ उस धर्म-संसद में एक जादुई प्रभाव छोड़ गया था. आज भी इस बात के लिए अमेरिका की उस धर्म-संसद को याद किया जाता है.

हाल ही में भारत की पुण्यनगरी हरिद्वार में भी एक ‘धर्म-संसद’ आयोजित हुई थी. उसमें विभिन्न धर्मो के तो नहीं, हिंदू धर्म के अनेक धर्माचार्य, महामंडलेश्वर आदि एकत्र हुए थे. 

आज देश में इस कथित धर्म-संसद की भी चर्चा हो रही है. इसका कारण कोई आध्यात्मिक संदेश नहीं है, इसे उन कुछ कथित प्रलाप के लिए याद किया जा रहा है, जिसमें एक ‘पराया’ माने जाने वाले धर्म को मानने वालों के खिलाफ जहर उगला गया था.

हरिद्वार में आयोजित इस ‘धर्म-संसद’ के बाद छत्तीसगढ़ में भी एक धर्म-संसद का आयोजन हुआ. वहां भी कुछ वक्ताओं ने मुसलमानों के खिलाफ अभियान छेड़ने और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अभद्र भाषा बोलने के उदाहरण प्रस्तुत किए. 

रायपुर वाली इस धर्म-संसद में कम से कम एक धर्मगुरु ने इस अभद्र प्रदर्शन का विरोध करने का साहस किया था. निश्चित रूप से वे प्रशंसा के पात्र हैं. पर मंच से अभद्र भाषा बोलने वाले धर्मगुरु के लिए क्या कहा जाएगा? और हरिद्वार व रायपुर में होने वाले ऐसे आयोजनों को किस बात के लिए याद रखा जाएगा?

इस प्रश्न का एक ही उत्तर हो सकता है- इस तरह के आयोजन न केवल हमारे संविधान का अपमान हैं, बल्कि सनातन धर्म के मूल्यों और आदर्शो का भी नकार हैं. इन आयोजनों के कुछ वक्ता जिस भाषा और तेवर में बात कह रहे थे उसकी सिर्फ भर्त्सना ही की जा सकती है. उनका यह कृत्य किसी जघन्य अपराध से कम नहीं है. 
स्पष्ट रूप से वे देश में धार्मिक सौहाद्र के वातावरण को खराब करने का काम कर रहे थे. सच तो यह है कि वे एक धर्म-विशेष के खिलाफ जहर उगल कर हिंसा को बढ़ावा देने की बात कर रहे थे. पता नहीं हमारी दंड संहिता की कौन-कौन सी धाराओं में उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, पर इतना तो स्पष्ट है कि उनकी यह सोच राष्ट्रीय-हित के प्रतिकूल है, और इसलिए इसे राष्ट्र-विरोधी ही समझा जाना चाहिए. 

यदि हमारे देश में सांप्रदायिकता फैलाने की आशंका में, और हमारे कुछ नेताओं के खिलाफ बोलने के आरोप में यूएपीए अर्थात अवैध गतिविधि निरोधक कानून के अंतर्गत कार्रवाई हो सकती है तो फिर सांप्रदायिकता की आग भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए?

सच तो यह है कि देश में सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश सिर्फ राष्ट्र-द्रोह ही कहला सकती है. जब कॉलेज के विद्यार्थियों के खिलाफ, हंसी-मजाक के कार्यक्रम करने वालों के खिलाफ, नेताओं के खिलाफ कुछ बोलने को राष्ट्र-द्रोह माना जा सकता है तो देश में सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश राष्ट्र-दोह क्यों न मानी जाए?

हैरानी की बात यह भी है कि हमारे बड़े नेताओं को सांप्रदायिकता फैलाने वालों के खिलाफ बोलने में संकोच क्यों होता है? किसी धर्म के मानने वालों के खिलाफ मरने-मारने की बात करना या देश के राष्ट्रपिता के खिलाफ अपशब्द कहना हर राजनीतिक दल को बुरा लगना चाहिए. 

हर राजनीतिक दल को यह समझना जरूरी है कि देश में सांप्रदायिकता भड़काना या सार्वजनिक जीवन में कटुता फैलाने की कोशिश करना कुल मिलाकर राष्ट्र के खिलाफ अपराध है.

Web Title: communalism hate speech haridwar dharm sansad crime

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