नेपाल में चीनी सक्रियता पर निगाह रखे भारत, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 29, 2020 04:55 PM2020-12-29T16:55:38+5:302020-12-29T16:58:06+5:30
चीन की महिला राजदूत हाओ यांकी काठमांडू में कितनी अधिक सक्रिय हैं. वे प्रचंड और ओली से दर्जनों बार मिल चुकी हैं. दोनों पार्टियों के छोटे-मोटे नेता तो यांकी से मिलने के लिए चीनी दूतावास में लाइन लगाए रखते हैं.
नेपाल भारत का परम पड़ोसी है. वहां जबर्दस्त उठापटक चल रही है. प्रतिनिधि सभा (लोकसभा) भंग कर दी गई है. कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचंड-खेमे और ओली खेमे में सत्ता की होड़ लगी हुई है लेकिन भारत चुप है और चीन अपनी बीन बजाए चला जा रहा है.
ऐसा नहीं है कि भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है. उसके सेनापति और विदेश सचिव अभी कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्नी के.पी. ओली से मिल आए थे. काठमांडू में उनका स्वागत गर्मजोशी से हुआ था और ओली के भारत-विरोधी रुख में कुछ नरमी भी दिखाई पड़ी थी.
हमारे राजदूत ने भी ओली से भेंट के बाद भारत आकर सरकार को सारी स्थिति से अवगत कराया था लेकिन हम जरा देखें कि चीन की महिला राजदूत हाओ यांकी काठमांडू में कितनी अधिक सक्रिय हैं. वे प्रचंड और ओली से दर्जनों बार मिल चुकी हैं. दोनों पार्टियों के छोटे-मोटे नेता तो यांकी से मिलने के लिए चीनी दूतावास में लाइन लगाए रखते हैं.
यांकी की हजारों कोशिशों के बावजूद अब जबकि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में दरार पड़ गई है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के उप-मंत्नी गुओ येचाऊ अब चार दिन के लिए काठमांडू पहुंचे गए हैं. उनकी कोशिश होगी कि वे दोनों खेमों में सुलह करवा दें लेकिन भंग हुई संसद को अब वे कैसे लौटा पाएंगे? क्या नेपाल का सर्वोच्च न्यायालय उसे पुनर्जीवित कर सकेगा? यदि संसद फिर से जीवित हो गई, तब भी दोनों खेमों के बीच झगड़ा कैसे खत्म होगा?
जो भी हो, हमारी चिंता का विषय यह है कि इस मामले में भारत की भूमिका नगण्य क्यों हो गई है. यह ठीक है कि चीन नेपाल को तिब्बत से जोड़ने के लिए रेल लाइन बिछा रहा है. रेशम महापथ के लिए वह 2.5 बिलियन डॉलर भी दे रहा है और आठ करोड़ डॉलर की फौजी सहायता भी नेपाल को दी जाएगी. चीनी और नेपाली सेनाएं पिछले दो-तीन साल से संयुक्त सैन्य-अभ्यास भी कर रही हैं.
चीन नेपाल को अपने तीन बंदरगाहों के इस्तेमाल की सुविधा भी दे रहा है ताकि भारत पर उसकी निर्भरता कम हो जाए. भारत की भाजपा सरकार बेबस मालूम पड़ रही है. उसके पास ऐसे अनुभवी लोग नहीं हैं, जो बिना प्रचार के नेपाली कम्युनिस्ट नेताओं से मिल सकें और भारत की भूमिका को मजबूत कर सकें. हमारी भाजपा सरकार अपने नौकरशाहों पर निर्भर है. नौकरशाहों और राजनयिकों की अपनी सीमाएं हैं. वे ज्यादा सक्रिय दिखेंगे तो उसे आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप माना जाएगा.