पड़ोसी देशों के साथ सक्रियता बढ़ाना जरूरी, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 2, 2020 15:06 IST2020-12-02T15:04:39+5:302020-12-02T15:06:24+5:30
चीन को टक्कर देने के इरादे से ही अब अमेरिकी विदेश मंत्नी माइक पोंपिओ श्रीलंका और मालदीव-जैसे छोटे-छोटे देशों की यात्ना करने में भी संकोच नहीं करते.

भारत किसी भी राष्ट्र का पिछलग्गू नहीं बन सकता. चीन और अमेरिका आपस में लड़ रहे हैं तो जरूर लड़ें. (file photo)
पिछले एक हफ्ते में हमारे विदेश मंत्रालय ने काफी सक्रियता दिखाई है. विदेश मंत्री जयशंकर, सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला एक के बाद एक हमारे पड़ोसी देशों की यात्ना कर रहे हैं.
ये यात्नाएं इसलिए भी जरूरी थीं कि एक तो अमेरिका में सरकार बदल रही है, दूसरा पड़ोसी देशों में इधर चीन असाधारण सक्रियता दिखा रहा है और तीसरा, नेपाल, श्रीलंका और सेशल्स जैसे देशों में ऐसे नेताओं ने सरकार बना ली है, जो भारत के प्रति आवश्यक मैत्नीपूर्ण रवैये के लिए नहीं जाने जाते.
पिछले कुछ वर्षों से चीन ने भारत के पड़ोसी देशों को उसी तरह अपने घेरे में ले लेने की कोशिश की है, जैसा कि उसने पाकिस्तान के साथ किया है. यह ठीक है कि अन्य सभी पड़ोसी देशों का भारत के प्रति वैसा शत्नुतापूर्ण रवैया नहीं है, जैसा कि पाकिस्तान का है लेकिन ये सभी छोटे-छोटे देश भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता का लाभ उठाने से बाज नहीं आते.
चीन की रेशम महापथ की योजना को किस देश ने स्वीकार नहीं किया है? चीन उन्हें मोटे-मोटे कर्ज दे रहा है. उनकी सड़कें, हवाई पट्टियां और बंदरगाह बनाने की चूसनियां लटका रहा है. उनके साथ फौजी सहकार के समझौते भी कर रहा है. चीन के राष्ट्रपति, विदेश मंत्नी और बड़े नेता, जो इन देशों के नाम से कभी वाकिफ नहीं होते थे, वे अब उनकी परिक्रमा करने से नहीं चूकते.
चीन को टक्कर देने के इरादे से ही अब अमेरिकी विदेश मंत्नी माइक पोंपिओ श्रीलंका और मालदीव-जैसे छोटे-छोटे देशों की यात्ना करने में भी संकोच नहीं करते. उन्होंने अभी-अभी सऊदी अरब जाकर इजराइली प्रधानमंत्नी बेंजामिन नेतन्याहू से भी भेंट की और इजराइल से संयुक्त अरब अमीरात आदि के कूटनीतिक संबंध भी जुड़वाए.
यदि भारत उन्हीं के चरण-चिह्नें पर चलकर अपने प्रतिनिधियों को इन्हीं देशों में भेज रहा है तो भारत को अपने कदम फूंक-फूंककर रखने होंगे. भारत किसी भी राष्ट्र का पिछलग्गू नहीं बन सकता. चीन और अमेरिका आपस में लड़ रहे हैं तो जरूर लड़ें लेकिन उसमें भारत को उसका मोहरा कदापि नहीं बनना चाहिए. चीन से द्विपक्षीय स्तर पर कैसे निपटें, यह भारत अच्छी तरह जानता है.
यदि ट्रम्प-प्रशासन ईरान को अपना शिकार बनाना चाहता है और अफगानिस्तान में अपनी जगह भारत को उलझाना चाहता है तो भारतीय विदेश मंत्नालय को बाइडेन-प्रशासन के आने का इंतजार करना चाहिए. उसे ट्रम्प के इशारे पर थिरकने की जरूरत नहीं है.