खेल मैदान के बिना बीमार बचपन...!, वीडियो गेम से दिमाग तेज हो सकता है लेकिन...

By विकास मिश्रा | Updated: May 6, 2025 05:24 IST2025-05-06T05:23:10+5:302025-05-06T05:24:00+5:30

एम्स की एक रिसर्च खौफ पैदा करती है कि देश में करीब 35 प्रतिशत बच्चे नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर के शिकार हो रहे हैं.

Childhood sick without playground...! Video games may sharpen brain but playground is needed to shed sweat blog vikash mishra | खेल मैदान के बिना बीमार बचपन...!, वीडियो गेम से दिमाग तेज हो सकता है लेकिन...

सांकेतिक फोटो

Highlightsसवाल यह है कि मोटापे के लिए क्या अकेले तेल जिम्मेदार है?हर तरह का खाना मिलना चाहिए लेकिन यह बहुत जरूरी है कि वह सेहतमंद भी हो. हर गांव-मोहल्ले में ऐसी खाली जगह होती थी जहां बच्चे खेलते थे.

खेल के सिकुड़ते मैदान बच्चों की सेहत को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहे हैं. स्वास्थ्य खतरे में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह आह्वान बड़ी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है कि भारत को स्वस्थ रखना है तो खाने के तेल में दस प्रतिशत की कमी कर दें. डॉक्टर भी यही बात दोहरा रहे हैं लेकिन यह कहना अभी मुश्किल है कि कितने प्रतिशत घरों में तेल की मात्रा कम की गई है. तेल को लेकर यह चिंता इसलिए उभरी है कि बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है. एम्स की एक रिसर्च खौफ पैदा करती है कि देश में करीब 35 प्रतिशत बच्चे नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर के शिकार हो रहे हैं.

सवाल यह है कि मोटापे के लिए क्या अकेले तेल जिम्मेदार है? बच्चे जिन खेल मैदानों में अपनी चर्बी जलाया करते थे, वो खेल मैदान अब कितने स्कूलों में हैं? अभी हाल ही में मैं कुछ डॉक्टर्स से देश में स्वास्थ्य को लेकर बातचीत कर रहा था. एक युवा डॉक्टर ने कहा कि अभी हमारे युवा तेजी से डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं लेकिन आने वाले दिनों में डायबिटीज पीछे रह जाएगा और फैटी लीवर की जानलेवा समस्या से पूरा देश ग्रस्त हो जाएगा. उस डॉक्टर ने इसके दो प्रमुख कारण बताए, एक तो खाने की शैली में तेजी से बदलाव और दूसरा व्यायाम और खेल का अभाव.

बच्चों का टिफिन तैयार करते वक्त माताएं बच्चों के स्वाद का ज्यादा खयाल करती हैं, इस बात पर ध्यान कम ही देती हैं कि जो खाना वो बच्चों को दे रही हैं, वह सेहत पर क्या असर डाल रहा है. इसके अलावा घर से बाहर खाने का चलन भी तेजी से बढ़ा है. बल्कि यह स्टेटस सिंबल बन गया है कि महीने में कितने दिन आप होटल में खाते हैं. यह स्वाभाविक है कि रूखा-सूखा खाना कोई भी बच्चा नहीं खाएगा,

उसे स्वाद चाहिए लेकिन यह जरूरी नहीं है कि तेल-घी से भरपूर खाने में ही स्वाद हो! हमारे भारत में तो खाने की इतनी विविधता है कि कम तेल मसाले में भी आप बेहतर स्वाद प्राप्त कर सकते हैं. आजकल तो एयर फ्रायर भी आ गया है जो नगण्य तेल में बेहतरीन खाना तैयार कर देता है. मैं इस बात को समझता हूं कि बच्चे को हर तरह का खाना मिलना चाहिए लेकिन यह बहुत जरूरी है कि वह सेहतमंद भी हो.

और सबसे बड़ी बात कि आप इस बात का तो ध्यान रखेंगे न कि आपके बच्चे ने जितना खाया है, उतना खर्च भी करे! समस्या यहीं पैदा होती है! बच्चे खेलें तो कहां खेलें? शारीरिक गतिविधियां ही व्यक्ति को स्वस्थ रखती हैं. पहले के दौरन में माता-पिता ध्यान रखते थे कि उनके बच्चे शाम के समय खेलने जाएं. हर गांव-मोहल्ले में ऐसी खाली जगह होती थी जहां बच्चे खेलते थे.

स्कूल में भी खेल के लिए अलग से कक्षाएं होती  थीं. मास्टर साहब खुद ध्यान रखते थे कि बच्चे खेल रहे हैं या नहीं? लेकिन अब तो सारा माहौल ही बदल गया है. खेल के मैदान खत्म हो रहे हैं और बच्चे घरों में कम्प्यूटर और मोबाइल के पास सिमट गए हैं. जब किसी स्कूल के बारे में हम सोचते हैं तो स्कूल भवन के साथ पहला खयाल आता है स्कूल मैदान का!

लेकिन आप जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि देश में मौजूद करीब 14 लाख 80 हजार स्कूलों में से करीब साढ़े तीन लाख स्कूलों में खेल मैदान हैं ही नहीं! पहाड़ी इलाकों में तो खेल मैदान के लिए समतल भूमि की कमी समझ में आती है लेकिन मैदानी इलाकों में भी स्कूलों में खेल मैदान न हों तो यह निश्चित रूप से खेल मैदानों की उपलब्धता के प्रति जागरूकता का अभाव है.

अपने महाराष्ट्र का मामला ही देखें तो यहां करीब 66 प्रतिशत स्कूलों में ही खेल मैदान हैं. सबसे अधिक आबादी वाले  राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 2.58 लाख स्कूल हैं लेकिन 34 प्रतिशत स्कूलों में खेल मैदान नहीं हैं.  वैसे हम आप तारीफ कर सकते हैं केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव की, जहां 99.8 प्रतिशत स्कूलों में खेल मैदान हैं.

पंजाब में 97.5 प्रतिशत, दिल्ली में 96.5 और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 96.2 प्रतिशत स्कूलों में खेल मैदान हैं. सवाल यह उठता है कि जब इन राज्यों में इतनी बेहतर स्थिति है तो दूसरे राज्यों में क्यों नहीं हो सकती? नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में इस बात का प्रावधान था कि स्कूल के लिए खेल मैदान आवश्यक है लेकिन इसका कड़ाई से पालन नहीं किया गया.

इसका नतीजा है कि स्कूल खोलने के लिए अनुमति तो मिल गई लेकिन यह नहीं देखा गया कि बच्चे खेलेंगे कहां? सच कहें तो खेल के प्रति पूरा रवैया ही उदासीनता से भरपूर रहा है. तकनीक में आए बदलाव ने इस उदासीनता का फायदा उठाया और बच्चों का रुझान खेल के मैदान से हटकर कम्प्यूटर और मोबाइल की ओर मुड़ गया. आज लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारा बच्चा तो इतना छोटा है,

फिर भी मोबाइल पर गेम खेलना जानता है. निश्चत रुप से  तकनीक अच्छी चीज है, हमारी जिंदगी को तकनीक ने सुगम बनाया है लेकिन हमें यह भी तो सोचना पड़ेगा कि खेल के मैदान में बहाए, जाने वाले पसीने का विकल्प कोई वीडियो गेम नहीं हो सकता! वीडियो गेम खेलने से दिमाग तेज हो सकता हैै लेकिन पसीना तो खेल के मैदान में ही बहेगा.

यह एक गंभीर मसला है और इसके लिए न केवल सरकार बल्कि निजी स्तर पर भी ध्यान देने की जरूरत है. यदि कहीं कोई बसाहट आकार ले रही है तो यह जरूर ध्यान रखें कि वहां खेल मैदान हैं कि नहीं! और हां, गली-मोहल्ले के खेल को भी हमें जिंदगी मेंं वापस लाना होगा ताकि हमारे बच्चे स्वस्थ रह सकें. स्वस्थ बच्चे ही स्वस्थ राष्ट्र की नींव होते हैं. नींव कमजोर हो गई तो इमारत कैसे मजबूत रहेगी?  

Web Title: Childhood sick without playground...! Video games may sharpen brain but playground is needed to shed sweat blog vikash mishra

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे