लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: एंड्रयूज : भारत से प्रेम ने जिनको दीनबंधु बनाया

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: February 12, 2024 9:35 AM

एंड्रयूज को स्वतंत्रता और समाज सुधार के कामों व आंदोलनों में भारतीयों के कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तो जाना ही जाता है, फिजी में अत्यंत दारुण परिस्थितियों में काम करने को अभिशप्त भारतीय गिरमिटिया मजदूरों की मुक्ति के प्रयत्नों में बहुविध भागीदारी के लिए भी याद किया जाता है।

Open in App
ठळक मुद्देसीएफ (चार्ल्स फ्रीयर) एंड्रयूज सर्वाधिक कृतज्ञता के पात्र हैंब्रिटेन के न्यू कैसल में 12 फरवरी, 1871 को पैदा हुए एंड्रयूज आंदोलनों में भारतीयों के कंधे से कंधा मिलाकर चले

अत्याचारी ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लंबे स्वतंत्रता संघर्ष में भारत ने जिन थोड़े से मानवताप्रेमी अंग्रेजों का मुखर समर्थन और सहभागिता पाई, उनमें  सीएफ (चार्ल्स फ्रीयर) एंड्रयूज न सिर्फ अग्रगण्य बल्कि सर्वाधिक कृतज्ञता के पात्र हैं। इसलिए कि एक बार इस नतीजे पर पहुंच जाने के बाद कि उनके देश के हुक्मरान बेबस भारतीयों को दासता की बेड़ियों में जकड़े रखने के लिए जो कर रहे हैं, उनकी कोई माफी नहीं हो सकती, उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1919 में 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन निर्दयी जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण सभा में  उपस्थित निर्दोष लोगों पर बर्बरतापूर्वक पुलिस फायरिंग कराकर अनेक लाशें बिछा दीं तो भी एंड्रयूज ने दूसरे गोरे महानुभावों की तरह मौन नहीं साधा। दोटूक शब्दों में उसे जानबूझकर किया गया जघन्य कृत्य करार दिया और उसके लिए न सिर्फ जनरल डायर बल्कि समूचे ब्रिटिश साम्राज्य को दोषी करार दिया।

ब्रिटेन के न्यू कैसल में 12 फरवरी, 1871 को पैदा हुए एंड्रयूज ने यों तो इंग्लैंड के चर्च मंत्रालय के कर्मचारी, एक कालेज  के पादरी व व्याख्याता, कैंब्रिज ब्रदरहुड के मिशनरी और समाज सुधारक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की थी, लेकिन मार्च, 1904 में शिक्षक बनकर दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज क्या आए, अपनी धारा ही बदल ली। पहले पहल वे स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक व सुधारक के रूप में संघर्षरत गोपालकृष्ण गोखले के संपर्क में आकर उनके मित्र बने, फिर महात्मा गांधी, बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर, दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपत राय, टी. बी. सप्रू, बनारसीदास चतुर्वेदी और रवींद्रनाथ टैगोर वगैरह के निकटवर्ती बने. अनंतर, वे भारत और भारतवासियों के ही होकर रह गए। यहां तक कि भारतीय के रूप में ही अपना परिचय देने लगे। फिर 1940 में 5 अप्रैल को भारत में ही अंतिम सांस भी ली।

एंड्रयूज को स्वतंत्रता और समाज सुधार के कामों  व आंदोलनों में भारतीयों के कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तो जाना ही जाता है, फिजी में अत्यंत दारुण परिस्थितियों में काम करने को अभिशप्त भारतीय गिरमिटिया मजदूरों की मुक्ति के प्रयत्नों में बहुविध भागीदारी के लिए भी याद  किया जाता है। कम ही लोग जानते हैं कि वे फिजी में उक्त मजदूरों के शुभचिंतक बनकर ही ‘दीनबंधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए थे। भले ही बाद में महात्मा गांधी से उनकी निकटता के आधार पर बहुत से लोगों ने अनुमान लगा लिया कि महात्मा ने ही उनको यह उपाधि दी। एक अनुमान यह भी है कि उनके काॅलेज के छात्रों ने ही सबसे पहले उन्हें दीनबंधु कहकर पुकारा। जिसने भी पुकारा हो, लब्बोलुआब कुल मिलाकर यह है कि भारत और भारतवासियों के प्रेम में डूबकर वे दीनबंधु बन गए।

टॅग्स :ब्रिटेनस्वतंत्रता दिवसभारतमहात्मा गाँधी
Open in App

संबंधित खबरें

कारोबारIndeed Layoffs: लोगों को नौकरी ढूंढने में मदद करने वाली करियर साइट इनडीड में होगी छंटनी, 1,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की योजना

विश्वव्हाइट हाउस में बजाया गया 'सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां...', मेहमानों के लिए परोसे गए गोल गप्पा और समोसा

कारोबारललित गर्ग का ब्लॉग: प्रवासी कामगारों से मजबूत होती अर्थव्यवस्था

भारतब्लॉग: पाक अधिकृत कश्मीर में फैलता आक्रोश

महाराष्ट्रMumbai Rains: मुंबई में आई धूल भरी आंधी, अटल सेतु ब्रिज पर लोगों को दिखना हुआ कम, सामने आया वीडियो

भारत अधिक खबरें

भारतSwati Maliwal Case: स्वाति मालीवाल की जान को खतरा, AAP सांसद के पूर्व पति का सनसनीखेज दावा

भारतसंदेशखली 'स्टिंग वीडियो' की एसआईटी जांच की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत

भारतLok Sabha Elections 2024: कंगना रनौत के पास 90 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति, आठ आपराधिक मामले

भारत'लोकसभा में कांग्रेस 40 का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगी, यूपी में सफाया', पीएम ने की बड़ी भविष्यवाणी

भारतLok Sabha Polls 2024: पीएम मोदी के पास न घर है, न कार, हैं तो केवल 52,000 रुपये कैश, पढ़ें उनकी संपत्ति का संपूर्ण ब्यौरा