….लेकिन डाटा का उपयोग कितना और कहां हो रहा है?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: October 10, 2025 07:27 IST2025-10-10T07:27:13+5:302025-10-10T07:27:13+5:30

भारत में जिस डाटा के खपत की बात हम कर रहे हैं, वह कहां खर्च हो रहा है? सोशल मीडिया और खासकर रील्स की ऐसी लत लगी है कि क्या युवा और अधेड़, क्या लड़के और क्या लड़कियां...सब रील्स में डूबे हैं. 

….but how much and where is the data being used? | ….लेकिन डाटा का उपयोग कितना और कहां हो रहा है?

….लेकिन डाटा का उपयोग कितना और कहां हो रहा है?

इंडिया मोबाइल कांग्रेस 2025 के नौवें संस्करण के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जानकारी दी है कि भारत में एक जीबी यानी गीगा बाइट डाटा की कीमत एक कप चाय से भी कम है. जो देश कभी 2जी संचार तंत्र का भी ठीक से उपयोग नहीं कर पा रहा था, वहां आज हर इलाके में 5 जी की सुविधा है. पिछले बीस वर्षों में मोबाइल का निर्माण 28 गुना और मोबाइल एक्सपोर्ट 127 गुना बढ़ा है. भारत के पास दूसरा सबसे बड़ा संचार बाजार और दूसरा सबसे बड़ा 5जी बाजार है. 

ये आंकड़े निश्चित रूप से भारत का सीना गर्व से ऊंचा करते हैं. यह इस मामले में भी उल्लेखनीय है क्योंकि दुनिया के दूसरे विकसित या विकासशील देशों की तुलना में इस क्षेत्र में हमने थोड़ी देर से कदम रखा. यह बाजार अभी बढ़ते ही जाना है और अब तो हम सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भी बड़ी छलांग लगाने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं. आज के दौर में विकास के हर क्षेत्र में इंटरनेट की उपयोगिता सबसे ज्यादा है. 

जाहिर सी बात है कि डाटा जितना सस्ता होगा, उतने ही ज्यादा लोगों तक इसकी पहुंच होगी और इसका लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचेगा. लेकिन इस वक्त एक गंभीर सवाल भी पैदा हो गया है कि भारत में जिस डाटा के खपत की बात हम कर रहे हैं, वह कहां खर्च हो रहा है? सोशल मीडिया और खासकर रील्स की ऐसी लत लगी है कि क्या युवा और अधेड़, क्या लड़के और क्या लड़कियां...सब रील्स में डूबे हैं. 

ज्यादा डाटा की उपलब्धता और उसकी खपत पर हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं लेकिन वक्त का तकाजा यह है कि हमें इस बात पर गौर करना पड़ेगा कि हमारे लोग रील्स पर कितना समय खर्च कर रहे हैं. निश्चित रूप से कुछ रील्स वीडियो बड़े काम के होते हैं. जानकारियां मिलती हैं. ढेर सारे पॉडकास्ट या यूट्यूब वीडियो भी हमें जानकारियों से लैस करते हैं. लेकिन रील्स का क्या? 

अब चूंकि रील्स बनाने के भी पैसे मिलने लगे हैं इसलिए ऐसे-ऐसे विषयों पर भी रील्स बनने लगे हैं कि आप दंग रह जाएंगे. यहां तक कि गाली-गलौज वाले रील्स भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं. अपने देश के युवा वर्ग को संभालना है तो सोशल मीडिया पर नजर रखना जरूरी है कि हमारे  युवाओं के सामने परोसा क्या जा रहा है?

कहने को सरकारी तंत्र है लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसे रील्स बनाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती. सरकार को अब कुछ कदम उठाना चाहिए वर्ना पानी सिर से गुजर जाएगा और इसका खामियाजा हम सबको भुगतना पड़ेगा.

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