ब्लॉग: पंडित नेहरू ने किया था संसदीय गरिमा का संवर्धन
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 14, 2023 10:52 AM2023-11-14T10:52:32+5:302023-11-14T11:05:29+5:30
जवाहरलाल नेहरू भारत के आधुनिक लोकतंत्र के संस्थापक और भारत ही नहीं तीसरी दुनिया के एकछत्र नायक थे।
जवाहरलाल नेहरूभारत के आधुनिक लोकतंत्र के संस्थापक और भारत ही नहीं तीसरी दुनिया के एकछत्र नायक थे। स्वाधीनता संग्राम में लंबी लड़ाई लड़ी थी। वे अस्थायी संसद यानी 1950 से 1952 और फिर पहली से तीसरी लोकसभा यानी 1952 से 1964 में अपने निधन तक प्रधानमंत्री और लोकसभा में नेता सदन रहे।
नेहरू के शासनकाल में विपक्ष शक्तिविहीन और प्रतीकात्मक था। नेहरूजी चाहते तो पूरी मनमानी से सत्ता चलाकर एक नई परंपरा का आरंभ कर सकते थे, लेकिन लोकतंत्र उनके स्वभाव का हिस्सा था। वे सार्वजनिक तौर पर कहते थे, ‘‘मैं नहीं चाहता कि भारत ऐसा देश बने जहां लाखों लोग एक व्यक्ति की हां में हां मिलाएं, मैं मजबूत विपक्ष चाहता हूं।’’
विपक्ष की सलाह पर सरकार ने तमाम फैसलों को बदला। जनसंघ के नेता डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी उनके मुखर आलोचक थे, पर वे उनका बहुत आदर करते थे। साल 1953 में लोकसभा में उन्होंने कहा था, ‘‘सरकार के लिए निर्भीक आलोचकों और विपक्ष का होना जरूरी है। आलोचना के बिना लोग अपने में संतुष्ट अनुभव करने लगते हैं। सरकार आत्मसंतुष्ट हो जाती है। यह ठीक नहीं है क्योंकि सारी संसदीय व्यवस्था आलोचना पर आधारित है।’’
नेहरूजी के शासनकाल में संसद, बहुदलीय प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका और प्रेस जैसे संस्थानों को मजबूती मिली। वैज्ञानिक प्रगति के लिए संस्थाओं का जाल खड़ा हुआ। गरीबी, अंधविश्वास, पिछड़ेपन और छुआछूत से मुक्ति के लिए रास्ता बना। 1962 में चीन से मात खाने के बाद नेहरूजी की घोर आलोचना भी हुई पर संसद और पूरा देश उनके साथ खड़ा रहा। स्वदेशीकरण के साथ उसी दौर में जैसी रक्षा तैयारियां आरंभ हुईं, उसी का असर था कि आगे के युद्धों में भारत अजेय रहा।
नेहरूजी का विराट व्यक्तित्व था। देश में सबसे बेहतरीन कामकाज उनके ही नेता सदन रहने के दौरान पहली लोकसभा में 1952 से 1957 के बीच हुआ, जब 677 बैठकों में 319 विधेयक पारित हुए। अस्थाई संसद 1951 में 150 दिन चली, जबकि 1956 में संसद की अधिकतम बैठक 151 दिन तक हुई। उनके पूरे कालखंड में संसद की अलग आभा थी।
पहले लोकसभा चुनाव के दौरान 1951-52 में नेहरूजी ने देशभर में घूम कर लोगों को मताधिकार के महत्व और जिम्मेदारी से आगाह किया। तब तीन चौथाई लोग निरक्षर थे और बहुत से लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में लोकतंत्र विफल हो कर रहेगा। छह महीनों की चुनाव प्रक्रिया के बाद जितनी बड़ी संख्या में लोगों ने चुनाव में भाग लिया और उस चुनाव में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखे जाने पर दुनिया हैरान थी। उसी नींव पर हम आज इतना लंबा रास्ता तय कर सके हैं।