डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: पूरी दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाने वाले वैज्ञानिकों... तुम्हें सलाम...!

By विजय दर्डा | Published: August 28, 2023 08:04 AM2023-08-28T08:04:50+5:302023-08-28T08:11:43+5:30

चांद पर चंद्रयान-3 के उतरने का वक्त जैसे-जैसे करीब आ रहा था, हर भारतवासी की धड़कनें तेज हो रही थीं। उसी बीच जब यह खबर मिली कि अंतरिक्ष के जाने-माने खिलाड़ी रूस का लूना-25 चकनाचूर हो गया तो धड़कनें और बढ़ गईं लेकिन मेरा मन कह रहा था कि इस बार तो सफलता जरूर मिलेगी!

Blog of Dr. Vijay Darda: Salute to the scientists who raised the importance of the tricolor in the whole world...! | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: पूरी दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाने वाले वैज्ञानिकों... तुम्हें सलाम...!

फाइल फोटो

Highlightsचांद पर चंद्रयान-3 के उतरने का वक्त जैसे-जैसे करीब आ रहा था, सबकी धड़कनें तेज हो रही थींजब रूस का लूना-25 चकनाचूर हुआ तो धड़कनें और बढ़ गईं, लेकिन उम्मीद थी की सफलता मिलेगीइस भरोसे का कारण का एकमात्र कारण था इसरो के वैज्ञानिकों की निष्ठा, उनका समर्पण

चांद पर चंद्रयान-3 के उतरने का वक्त जैसे-जैसे करीब आ रहा था, हर भारतवासी की धड़कनें तेज हो रही थीं। उसी बीच जब यह खबर मिली कि अंतरिक्ष के जाने-माने खिलाड़ी रूस का लूना-25 चकनाचूर हो गया तो धड़कनें और बढ़ गईं लेकिन मेरा मन कह रहा था कि इस बार तो सफलता जरूर मिलेगी!

इस भरोसे का कारण यह था कि मुझे संसदीय समिति के सदस्य के रूप में कई बार इसरो और अन्य अंतरिक्ष संस्थानों में जाने का मौका मिला है। मैंने अपने वैज्ञानिकों की निष्ठा देखी है, उनका समर्पण देखा है। सीमित संसाधनों में कुछ कर गुजरने की तमन्ना देखी है। लूना-25 के क्रैश वाले दिन मेरे एक साथी ने मुझसे कहा कि दक्षिणी ध्रुव पर ही जाने की क्या जरूरत है। चांद पर लैंड करना ही है तो कहीं भी कर जाओ! नाम तो हो ही जाएगा ना!

मैंने अपने उस साथी से पूछा कि चांद पर सबसे पहले कौन उतरा था? उसने तपाक से कहा नील आर्मस्ट्रांग। मेरा अगला सवाल था, दूसरा कौन था? वह सोच में पड़ गया। उसे बज एल्ड्रिन का नाम याद नहीं था! मैंने अपने साथी से कहा कि चांद की सतह पर अब तक 12 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चहलकदमी कर चुके हैं। सबसे अंत में हैरिसन श्मिट ने चहलकदमी की थी।

चांद पर चहलकदमी करने वालों की सूची में इनके अलावा पेटे कोनराड, एलन बीन, एलन शेफर्ड, एडगर मिशेल, डेविड स्कॉट, जेम्स इरविन, जॉन यंग, चार्ल्स ड्यूक और यूजीन सेरनन शामिल हैं लेकिन नील आर्मस्ट्रांग के अलावा शायद ही किसी को और चंद्र यात्रियों का खयाल रहता होगा! जो पहला होता है, उसे दुनिया याद रखती है।

भारत यदि चांद के आसान से इलाके में अपना यान उतार लेता तो हमारा नंबर अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा होता! चौथे को कौन याद रखता है? ज्यादातर समय बिल्कुल अंधेरे में रहने वाले, अत्यंत कठिन और रहस्यमयी इलाके में चंद्रयान-3 उतार कर भारत नंबर एक हो गया है. इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है।

यह महान उपलब्धि है। महान इसलिए कि इसमें किसी और का कोई योगदान नहीं। पूरी तरह स्वदेशी! इतना किफायती कि पूरी दुनिया दंग रह गई है। चांद के दक्षिण ध्रुव पर नंबर एक की इसी होड़ में रूस लूना-25 के लिए 1600 करोड़ खर्च करके अंधाधुंध गति से निकला था हमारे वैज्ञानिकों ने तो इसका आधा भी खर्च नहीं किया!

चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने में इसरो ने हॉलीवुड की कई फिल्मों के निर्माण से भी कम खर्च किया है! आपको बता दें कि चांद का दक्षिणी ध्रुव लगभग ढाई हजार किमी चौड़ा है और इसके किनारे आठ किमी गहरा गड्ढा है। इसे सौरमंडल का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर माना जाता है। किसी बड़े उल्कापिंड से टक्कर के कारण यह क्रेटर बना होगा।

चंद्रयान-3 ने जो ताजा तस्वीरें भेजी हैं, उनमें भी गहरे गड्ढे और ऊबड़-खाबड़ जमीन दिखाई दे रही है। इन गड्ढों और बड़े पहाड़ों की छांव वाले हिस्से में तापमान शून्य से 200 डिग्री से भी नीचे चला जाता है। माना जा रहा है कि यहां बर्फ की परतें जमी हुई हैं। इस इलाके में पानी की संभावना को तलाशा जा रहा है।

चंद्रयान-1 ने वर्ष 2008 में संकेत दिया था कि चांद पर पानी हो सकता है। जाहिर है कि चांद पर अन्य तत्व भी तलाशे जाएंगे। यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है कि वहां क्या मिलेगा और धरती पर उसका क्या उपयोग हो सकता है या फिर क्या चांद पर मानव जाकर बस सकता है?

इस चंद्र अभियान से हमें क्या मिलेगा, कितना मिलेगा या कुछ भी नहीं मिलेगा, इस सबका जवाब वक्त देगा। भरोसा रखिए कि कुछ न कुछ तो मिलेगा ही! यदि मनुष्य ने अंतरिक्ष को न तलाशा होता तो क्या हमारा कम्युनिकेशन सिस्टम अत्याधुनिक होता? क्या हम दूरदराज के इलाकों में भी इंटरनेट की सवारी कर रहे होते? अभी तो उस चीज की बात करिए जो हमें ताजातरीन मिला है।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने के साथ हमारा मस्तक गर्व और गौरव से ऊंचा हो गया है। हमारा सीना चौड़ा हो गया है। भारत के प्रति दुनिया का विश्वास तेजी से पुख्ता हो रहा था, वह और मजबूत हो गया है। हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा का लोहा दुनिया की सभी वैज्ञानिक संस्थाओं ने मान लिया है। अब वह दिन दूर नहीं जब अंतरिक्ष में कोई भारतीय अपने देश के यान में बैठकर सैर करेगा।

चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद दुनिया यह मान रही है कि किसी दिन कोई भारतीय भी चांद पर जरूर उतरेगा। एक क्षेत्र में भरोसे से अन्य क्षेत्रों में भी प्रतिष्ठा बढ़ती है। दुनिया भर में तिरंगे का मान बढ़ाने वाले हमारे वैज्ञानिकों...तुम्हें सलाम!

खासतौर पर सलाम महिला वैज्ञानिकों को जिन्होंने पूरे देश की महिलाओं को नई प्रेरणा दी है। आज हमारी संसद में भले ही महिलाओं की संख्या कम है लेकिन इसरो में महिलाओं की संख्या और उनकी गौरव गाथा अद्वितीय है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कल्पना को हकीकत में बदल देने के लिए हमारा नेतृत्व वैज्ञानिकों के साथ अडिग खड़ा रहा है. पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी तक, हमारे नेतृत्वकर्ताओं का नजरिया व्यापक रहा है लेकिन जो शुरू करता है वह स्वप्नद्रष्टा होता है।

राजनीति से ऊपर उठ कर और जिंदादिल होकर बोलना पड़ेगा कि नेहरू ने बड़ा सपना देखा। हमारे नेतृत्व ने हमेशा ही वैज्ञानिकों को मान-सम्मान दिया है। चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव और अब्दुल कलाम को भारत रत्न मिलना इस बात का सबूत भी है।

लोरी से लेकर रोमांस तक के लिए मशहूर अपने चांद पर चंद्रयान के पहुंचने की सफलता के बाद दो बातें और कहना चाहूंगा। पहला तो यह कि हमारा अंतरिक्ष बजट बढ़ना चाहिए। अभी भारत के कुल बजट का केवल 0.34 प्रतिशत ही अंतरिक्ष पर खर्च किया जाता है। दूसरी बात यह कि स्कूल और कॉलेजों की विज्ञान प्रयोगशालाओं को रिसर्च के स्तर पर अत्याधुनिक, सुसज्जित और सशक्त बनाना चाहिए।

इसके लिए खासतौर पर अलग से बजट होना चाहिए. क्या पता भविष्य का कोई महान वैज्ञानिक भारत के किसी गांव में भविष्य की राह देख रहा हो!

चलिए, फिलहाल शैलेंद्र का  एक गीत गुनगुनाते हैं... ये चंदा रूस का/ना ये जापान का/ ना ये अमरीकन प्यारे/ ये तो है हिंदुस्तान का...!

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