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ब्लॉग: आम आदमी को मुफ्त अनाज की सौगात

By प्रमोद भार्गव | Updated: November 7, 2023 12:34 IST

आखिरकार केंद्र सरकार ने एक बड़ा दांव चलते हुए चुनावी मौसम में मुफ्त अनाज की योजना पांच साल के लिए और बढ़ा दी। इसी नवंबर माह में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का मतदान होना है और फिर अगले साल मई में लोकसभा के चुनाव होने हैं।

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ठळक मुद्देकेंद्र सरकार ने चुनावी मौसम में बड़ा दांव चलते हुए मुफ्त अनाज योजना को पांच साल के लिए बढ़ा दिया नवंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल मई में लोकसभा के चुनाव होने हैंइस अन्न-वर्षा को दीपावली का उपहार कहा जा सकता है, जिसकी काट विपक्षी के पास नहीं है

आखिरकार केंद्र सरकार ने एक बड़ा दांव चलते हुए चुनावी मौसम में मुफ्त अनाज की योजना पांच साल के लिए और बढ़ा दी। इसी नवंबर माह में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का मतदान होना है और फिर अगले साल मई में लोकसभा के चुनाव होने हैं। इस अन्न-वर्षा को दीपावली का उपहार भी कहा जा सकता है। इस दांव की काट किसी भी विपक्षी दल के पास नहीं है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। यह अवधि फिलहाल 31 दिसंबर 2023 तक थी, जिसे पांच साल बढ़ाकर पेट की भूख से जूझ रहे लोगों को बड़ी राहत दी गई है। इन उपभोक्ताओं को राशन की दुकान से प्रति माह प्रति व्यक्ति पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल मुफ्त मिलेंगे।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सभी गरीबों को मुफ्त अनाज योजना कोरोना महामारी के दौरान आरंभ हुई थी और बाद में इसे अनेक बार बढ़ाया गया। गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे सामान्य परिवारों को प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज हर महीने नि:शुल्क दिया जाता है। जबकि अंत्योदय वर्ग के उपभोक्ताओं को अनाज की यह मात्रा सात किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। मसलन प्रत्येक सामान्य परिवार को 25 किलो और अंत्योदय परिवार को 35 किलो अनाज हर महीने दिया जा रहा है।

कुल मिलाकर 81.35 करोड़ लोगों को रियायती दरों पर अनाज दिया जा रहा है। इस सुविधा पर 5.91 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। अन्य की इस आपूर्ति के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपए का वार्षिक बजट प्रावधान निर्धारित है। सरकार के भंडारों में अनाज की पर्याप्त उपलब्धता के चलते इस योजना की पूर्ति सुचारु रूप से चल रही है।

सरकार के पास प्रत्येक वर्ष की पहली जनवरी को 138 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 76 लाख मीट्रिक टन चावल का भंडारण जरूरी होता है। यह भंडारण जरूरी आवश्यकता की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है। केंद्रीय भंडार गृहों में 15 दिसंबर 2022 तक लगभग 180 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 111 लाख मीट्रिक टन चावल उपलब्ध था, नतीजतन सरकार का आत्मविश्वास बढ़ा और उसने दृढ़ता के साथ गरीबों को मुफ्त में अनाज देने की योजना आरंभ कर दी और अब इसे आने वाले पांच सालों के लिए भी बढ़ा दिया गया है। इस योजना को चुनावी तुरुप का पत्ता माना जा रहा है।

कोरोना महामारी के दौरान जब काम-धंधे पूरी तरह बंद हो गए थे, तब रोज कुआं खोदकर प्यास बुझाने वाले लोगों के लिए भोजन का संकट गहरा गया था। अतएव भारत सरकार ने गरीबों को राहत पहुंचाने की दृष्टि से पूर्व से मिल रहे सस्ते अनाज के अतिरिक्ति पांच किलो मुफ्त अनाज देने की व्यवस्था तीन महीने के लिए शुरू की थी।

उम्मीद थी कि तीन माह बाद कोरोना का प्रकोप खत्म हो जाएगा लेकिन इसका सुरसा-मुख लंबे समय तक खुला रहा। इसलिए इस अवधि को क्रमशः बढ़ाया जाता रहा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने और अनिश्चित आय वालों के लिए इस अन्न योजना ने संजीवनी का काम किया है। इससे गरीबों की भूख की समस्या नहीं रही। इस योजना का लाभ गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों के साथ-साथ किसानों और दिव्यांगों को भी मिला है।

खाद्य सुरक्षा के तहत 67 फीसदी आबादी अर्थात करीब 80 करोड़ लोगों को रियायती दर पर अनाज दिया जा रहा है। इसके दायरे में शहरों में रहने वाले 50 प्रतिशत और गांवों में रहने वाले 75 फीसदी लोग हैं। इस कल्याणकारी योजना का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए पीडीएस की 1,61,854 दुकानों पर ईपीओएस मशीनें लगाई गई हैं, जिससे अनाज की तौल सही हो। सही लोगों को इसका लाभ मिले, इस हेतु राशन कार्डों को आधार नंबर से भी जोड़ा गया है।

इस योजना के अमल में सरकार को सबसे बड़ी चुनौती अनाज की खरीद और उसके उचित भंडारण की रहती है। अनाज ज्यादा खरीदा जाएगा तो उसके भंडारण की अतिरिक्त व्यवस्था को अंजाम देना होता है, जो नहीं हो पा रहा है। उचित व्यवस्था की कमी के चलते गोदामों में लाखों टन अनाज हर साल खराब हो जाता है।

यह अनाज इतनी बड़ी मात्रा में होता है कि एक साल तक 2 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन कराया जा सकता है। अनाज की यह बर्बादी भंडारों की कमी की बजाय अनाज भंडारण में बरती जा रही लापरवाहियों के चलते कहीं ज्यादा होती है। देश में किसानों की मेहनत और जैविक व पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने के उपायों के चलते कृषि पैदावार लगातार बढ़ रही है।

अब तक हरियाणा और पंजाब ही गेहूं उत्पादन में अग्रणी प्रदेश माने जाते थे, लेकिन अब मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी गेहूं की रिकार्ड पैदावार हो रही है। इसमें धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, दालें और मोटे अनाज व तिलहन शामिल हैं। 2022-23 में करीब 3235.54 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ है, जो 2021-22 की तुलना में ज्यादा है।

साठ के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही अनाज भंडारण की समस्या सुरसा-मुख सी बनी हुई है। एक स्थान पर बड़ी मात्रा में भंडारण और फिर उसका संरक्षण अपने आप में एक चुनौती भरा और बड़ी धनराशि से हासिल होने वाले लक्ष्य है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की पूरे देश में एक साथ खरीद, भंडारण और फिर राज्यवार मांग के अनुसार वितरण का दायित्व भारतीय खाद्य निगम के पास है। जबकि भंडारों के निर्माण का काम केंद्रीय भंडार निगम संभालता है। इसी तर्ज पर राज्य सरकारों के भी भंडार निगम हैं।

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आजादी के 75 साल बाद भी बढ़ते उत्पादन के अनुपात में केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर अनाज भंडारण के मुकम्मल प्रबंध नहीं हो सके हैं।

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