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ब्लॉग: मुसलमानों के प्रति भाजपा का बदलता रुख

By अभय कुमार दुबे | Published: January 16, 2024 11:11 AM

भाजपा का मुसलमानों के प्रति बदलते रुख की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के उस कथन से हुई थी, जिसमें उन्होने कहा था कि ‘अगर देश में मुसलमान नहीं रहेंगे तो ये हिंदुत्व नहीं होगा।’

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ठळक मुद्देभाजपा का मुसलमानों के प्रति बदलता रूख संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से समझा जा सकता हैसंघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था ‘अगर देश में मुसलमान नहीं रहेंगे तो ये हिंदुत्व नहीं होगा’बीते दिनों केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी मुसलमानों के सबसे बड़े और पवित्रतम तीर्थस्थल मदीना गईं

हाल ही में छपी कुछ खबरें और तस्वीरें बताती हैं कि भारतीय जनता पार्टी एक साथ कितने बड़े-बड़े मोर्चों को साधने में लगी रहती है। एक तरफ अयोध्या में रामलला के मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा को अभूतपूर्व पैमाने पर आयोजित करने का उद्यम चल रहा है, तो दूसरी तरफ मदीना-यात्रा और चिश्तिया सिलसिले की दरगाह के जरिये मुसलमानों को साधने की कोशिश हो रही है।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी मुसलमानों के सबसे बड़े और पवित्रतम तीर्थस्थल मदीना गईं। ईरानी ने सऊदी अरब के सरकारी पक्ष के साथ 2024 के हज के लिए एक आपसी समझौते पर भी दस्तखत किए, और साथ में भारत से 107525 हाजियों का कोटा भी सुनिश्चित कर लिया। आम तौर पर मुसलमान विरोधी समझी जाने वाली भाजपा की सरकार द्वारा की जाने वाली ऐसी पहलकदमी किसी खास तरह के रुझान या किसी राजनीतिक रणनीति की तरफ इशारा कर रही थी। जब यह खबर आई, उसी के आसपास एक और खबर दिखी जिसके साथ एक तस्वीर और थी।

इसमें स्मृति ईरानी कई और लोगों के साथ एक विशाल चादर के कोनों को पकड़े हुए खड़ी थीं। खबर यह थी कि यह चादर दरअसल अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चढ़ाई जाएगी। बताया यह गया कि यह चादर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से चढ़ाई जाएगी, और इसे मोदीजी ने ही उन्हें इस मकसद से दिया है। यह पूरा प्रकरण बताता है कि मुसलमानों के प्रति मोदी और भाजपा के रुख में कुछ न कुछ परिवर्तन तो आया ही है।

यह याद करना आसान है कि अभी साल-छह महीने पहले उन्होंने पसमांदा मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में करने के लिए बाकायदा कार्यकर्ताओं से अपील की थी। भाजपा को मुसलमान इलाकों में स्नेह-यात्राएं निकालने का कार्यक्रम लेना था।

भाजपा की इस नीति की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के इस कथन से हुई थी कि ‘अगर देश में मुसलमान नहीं रहेंगे तो ये हिंदुत्व नहीं होगा।’ उनकी बात सही थी। हिंदुत्व की विचारधारा मुसलमानों को भारत से बाहर नहीं निकालना चाहती। सावरकर द्वारा दी गई हिंदुत्व की परिभाषा के अनुसार भारतीय मुसलमानों की पितृभूमि भारत ही है, इसलिए वे भारत में रह सकते हैं।

संघ जानता है कि पंद्रह-सोलह करोड़ मुसलमानों को इस देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता है, न ही संविधान के तहत उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक घोषित किया जा सकता है लेकिन उन्हें अघोषित रूप से एक ऐसी स्थिति में जरूर पहुंचाया जा सकता है जिसमें उनकी राजनीतिक क्षमता पूरी तरह से शून्य हो जाए।

उत्तर प्रदेश की मिसाल बताती है कि 40-45 फीसदी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होते ही मुसलमान वोट अपनी अहमियत खो देते हैं। ऐसा होते ही सभी दल हिंदू वोटों के सौदागर बनने की कोशिश करने लगते हैं। पार्टियां रामभक्त, शिवभक्त और विष्णुभक्त में बंट जाती हैं। मुसलमानों के पक्ष में बोलना या उन्हें अपनी रणनीति का मुख्य अंग बनाना नुकसानदेह मान लिया जाता है। देश की राजनीति बहुसंख्यवाद की प्रतियोगिता बन गई है।

बहरहाल, यह मानना मुश्किल है कि भाजपा की इन कोशिशों से उसे मिलने वाले मुसलमान वोटों में कोई बड़ी बढ़ोत्तरी होगी लेकिन यह जरूर है कि चुनाव से ठीक पहले की इस पहलकदमी से अगर कुछ मुसलमानों को लोकसभा का भाजपा का टिकट दिया जाता है तो इसके भाजपा के लिए कुछ सकारात्मक परिणाम निकल सकते हैं।

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