लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: हल होती जा रही हैं भाजपा की सारी समस्याएं

By अभय कुमार दुबे | Updated: February 13, 2024 11:04 IST

भाजपा और मोदी का बढ़ता प्रभाव कांग्रेस को लगातार कमजोर कर रहा है। स्थिति यह है कि जो नेता अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे, अब उनके भी भाजपा में जाने की चर्चा होने लगी है।

Open in App
ठळक मुद्देभाजपा और मोदी का बढ़ता प्रभाव कांग्रेस को लगातार कमजोर कर रहा हैचुनाव में जो नेता कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे, अब उनके भी भाजपा में जाने की चर्चा होने लगी हैकांग्रेस में दो तरह के नेता हैं, एक वे जो ऐसी चर्चाओं का खंडन नहीं करते, दूसरे वो जो पाला बदलने की जुगत में हैं

भाजपा और मोदी का बढ़ता प्रभाव कांग्रेस को लगातार कमजोर कर रहा है। स्थिति यह है कि जो नेता अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे, अब उनके भी भाजपा में जाने की चर्चा होने लगी है। ऐसे नेता दो तरह के हैं- एक वे जो इन चर्चाओं का खंडन नहीं कर रहे हैं और चुप बैठे हैं।

इनकी चुप्पी रणनीतिक किस्म की है। इनमें प्रमुख नाम कमलनाथ का है जिन्हें कांग्रेस ने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था, और जो अक्तूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री के रूप में पेश किए जा रहे थे।

आज स्थिति यह है कि या तो वे अपने बेटे के साथ भाजपा में चले जाएंगे, या केवल उनका बेटा जाएगा। दूसरे नेता वे हैं जिन्होंने खुलकर कांग्रेस छोड़ने की पेशबंदी की है। इनमें प्रमुख नाम आचार्य प्रमोद कृष्णम का है। वे राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के कार्यक्रम में न जाने के कांग्रेसी फैसले के बाद खुलकर मोदी की प्रशंसा करने लगे हैं। एक तरह से उन्होंने इस तरह की बातें करके खुद को कांग्रेस से निकलवा लिया।

कमलनाथ और प्रमोद कृष्णम जैसी स्थिति कुछ और कांग्रेसी नेताओं की भी हो सकती है। ऐसे भी कुछ नेता हैं जो स्वयं विपक्ष में रहते हैं, लेकिन अपने बेटे या परिवार के कुछ लोगों को भाजपा में रखते हैं। नीतीश कुमार के दाएं हाथ के.सी. त्यागी बहुचर्चित पालाबदल से पहले टीवी पर भाजपा को आड़े हाथों लिया करते थे।

वे जे.पी., लोहिया और समाजवाद की दुहाई देकर बड़े आकर्षक ढंग से अपनी बातें कहते थे लेकिन उन्होंने अपने बेटे अमरीश त्यागी को पहले से ही भाजपा में ‘पार्क’ कर रखा था। कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं के भाजपा के प्रति झुकने का यह सिलसिला अगले कुछ दिनों में और बढ़ सकता है।

एक जमाना था जब भाजपा दूसरी पार्टियों से आए नेताओं के लिए माकूल जगह नहीं मानी जाती थी। अब स्थिति बदल चुकी है। अपनी विस्तार करने की प्रक्रिया में भाजपा ने अपने दरवाजे किसी भी पार्टी के नेताओं के लिए खोल दिए हैं। कांग्रेस से आए नेताओं की तो भाजपा में बहुतायत होती जा रही है। उसकी उत्तर-पूर्व की राजनीति तो मोटे तौर पर उन्हीं पर टिकी हुई है। असम, त्रिपुरा और मणिपुर के तीनों मुख्यमंत्रियों की ज्यादातर जिंदगी कांग्रेस में ही गुजरी है।

रणनीतिक रूप से भाजपा में बहुत लचीलापन है। इसका लाभ उठा कर उसने कुछ नेताओं को विपक्ष से छीन लिया है (जैसे नीतीश कुमार और जयंत चौधरी), कुछ को विपक्ष में जाने से रोक दिया है (जैसे मायावती और चंद्रबाबू नायडू), कुछ पार्टियां जो तंग कर रही थीं, उन्हें तोड़ दिया गया है (जैसे शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस)।

पहले कभी सोचा भी नहीं गया था कि भारतरत्न का सर्वोच्च पुरस्कार अल्पकालीन और दीर्घकालीन राजनीति के दोहरे लक्ष्यों की पूर्ति का औजार भी बन सकता है। कर्पूरी ठाकुर, चरण सिंह और आडवाणी को यह पुरस्कार देकर हर बार फौरी लक्ष्यों को तो सिद्ध किया ही गया, कांग्रेस की राजनीति को आहत करने में इन शिखर-पुरुषों की भूमिका भी रेखांकित हुई।

भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर राजनीतिक प्रबंधन की उस्ताद साबित हुई है। मोदी जानते हैं कि लोकलुभावन योजनाएं या लाभार्थियों का संसार अपने आप वोटों में नहीं बदलता। उसके तीन स्तरों पर काम करना होता है। राज्यों के स्तर पर, जहां अपनी स्थिति लगातार मजबूत करना जरूरी होता है, नेताओं के स्तर पर, जो विभिन्न समुदायों की नुमाइंदगी करते हैं, और समुदायों के स्तर पर, जिन्हें लगातार पार्टी के साथ जोड़ने का अभियान चलाना पड़ता है।

2019 में मोदी इन तीनों स्तरों पर पर्याप्त काम नहीं कर पाए थे। तीन चुनाव हारने के बाद राज्यों में उनकी स्थिति भरोसेमंद नहीं थी। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठजोड़ बहुत बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा था।

करीब छह महीने पहले तकरीबन भाजपा इसी तरह की स्थिति से दो-चार हो रही थी। बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक उसकी कमजोर कड़ियां थीं लेकिन जैसे ही उन्होंने तीन राज्यों के चुनाव जीते, ऐसा लगा कि उनकी सारी समस्याएं हल हो गई हों। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यह उम्मीद भी है कि जो समुदाय उसे पहले वोट नहीं करते रहे हैं, उनका एक हिस्सा भी उसे समर्थन दे सकता है। इनमें उत्तरप्रदेश के जाटव समुदाय के वोटरों का उल्लेख करना जरूरी है।

पिछले विधानसभा चुनाव में इन वोटरों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कम होते हुए जाट वोटों की एक सीमा तक भरपाई की थी। इस बार भाजपा की कोशिश होगी कि पूरे प्रदेश के स्तर पर जाटव वोट उसकी तरफ आएं। मायावती ने उसका यह काम आसान भी कर दिया है।

अलग चुनाव लड़ कर और विपक्ष के गठबंधन से दूर रह कर उन्होंने अपने आधार-मतदाताओं के लिए वोटिंग प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करने की स्थितियां पैदा कर दी हैं। कुछ चैनलों पर प्रसारित हुए सर्वेक्षणों ने दिखाया है कि मायावती के हाथ लोकसभा चुनाव में कुछ नहीं लगने वाला है। जाहिर है कि इसका विशुद्ध लाभ भाजपा के खाते में ही जाएगा।

टॅग्स :BJPजेडीयूनरेंद्र मोदीअमित शाहAmit Shah
Open in App

संबंधित खबरें

भारत‘महाराष्ट्र में बीजेपी एक बार फिर नंबर 1’: महाराष्ट्र नगर निकाय चुनाव परिणाम को लेकर सीएम देवेंद्र फडणवीस ने वोटर्स को जताया अभार

भारतमहाराष्ट्र स्थानीय चुनाव परिणाम: नगर परिषद में 246 सीट, भाजपा 100, एनसीपी 33 और शिवसेना 45 सीट पर आगे?

भारतMaharashtra Civic Polls Results: महायुति प्रचंड जीत की ओर, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, BMC चुनाव के लिए भी मंच तैयार ?

भारतबिहार राज्यसभा चुनावः अप्रैल 2026 में 5 सीटें खाली?, उच्च सदन में दिखेंगे पवन सिंह और रीना पासवान?, देखिए विधानसभा में किसके पास कितने विधायक

भारतMaharashtra Local Body Election Result 2025: 286 नगर परिषद और नगर पंचायत पदों पर मतगणना जारी, देखिए महायुति 171 और MVA 46 सीट आगे

भारत अधिक खबरें

भारतराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने VB-G RAM G बिल को दी मंज़ूरी, जो लेगा MGNREGA की जगह

भारतमहाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव: नगर परिषद-नगर पंचायत में कुल सीट 288, महायुति 212 सीट पर आगे?, ब्रह्मपुरी नगर परिषद पर कांग्रेस का कब्जा, 23 में से 21 सीट पर जीत

भारतMaharashtra Civic Polls 2025: शिंदे गुट के ओम प्रकाश खुर्सादय की प्रचंड जीत, बोले- 'हमसे कई ज्यादा जनता की जीत'

भारतVIDEO: रामदेव ने मीडिया के मंच पर ही पत्रकार को कुश्ती के लिए किया चैलेंज, फिर दे डाली दी पटकनी, देखें

भारतलियोनेल मेस्सी को अपने इंडिया टूर के लिए कितने पैसे मिले? ऑर्गनाइज़र ने खर्च का दिया ब्यौरा