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बिहार में सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी को नीतीश कुमार की जरूरत है, नीतीश कुमार को बीजेपी की नहीं?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: November 16, 2020 20:56 IST

सुशील मोदी को सियासी तौर पर किनारे करना इतना आसान नहीं है. उल्लेखनीय है कि बिहार में सीएम नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री के रूप में सुशील कुमार मोदी की जोड़ी सबसे सफल और लोकप्रिय रही है.

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ठळक मुद्देपहली बार वर्ष 2000 में जब नीतीश कुमार सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय सुशील कुमार मोदी संसदीय कार्य मंत्री बने थे.वर्ष 2005 में एनडीए सरकार सत्ता में आई तब वे पहली बार उप-मुख्यमंत्री बने और वे इस पद पर जून 2013 तक बने रहे.वर्ष 2017 में जब फिर से बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो वे फिर से उप-मुख्यमंत्री बने.

करीब तीन दशक से अधिक समय से बिहार बीजेपी के प्रमुख चेहरे के रूप में चर्चित सुशील कुमार मोदी पहली बार बिहार सरकार में शामिल नहीं होंगे. हालांकि, उप-मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के पार्टी नेतृत्व के फैसले से वे थोड़े असहज नजर आए और इसीलिए अपने ट्वीट में उन्होंने एक ओर तो आभार जताया जबकि दूसरी ओर यह भी कहा कि पद रहें या न रहें, कार्यकर्ता का पद कोई नहीं छीन सकता?

दरअसल, तेजस्वी यादव के आक्रामक सियासी तेवर से हताश बीजेपी का बिहार में नेतृत्व परिवर्तन का यह प्रयोग कितना सफल होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन सुशील मोदी को सियासी तौर पर किनारे करना इतना आसान नहीं है. उल्लेखनीय है कि बिहार में सीएम नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री के रूप में सुशील कुमार मोदी की जोड़ी सबसे सफल और लोकप्रिय रही है.

सुशील मोदी वर्ष 1990 में पहली बार पटना मध्य से विधायक बने थे और पहली बार वर्ष 2000 में जब नीतीश कुमार सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय सुशील कुमार मोदी संसदीय कार्य मंत्री बने थे. वर्ष 2005 में एनडीए सरकार सत्ता में आई तब वे पहली बार उप-मुख्यमंत्री बने और वे इस पद पर जून 2013 तक बने रहे. वर्ष 2017 में जब फिर से बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो वे फिर से उप-मुख्यमंत्री बने. लेकिन, इस बार बीजेपी ने बड़ा बदलाव किया है और सुशील मोदी सहित कई प्रमुख नेताओं को नजरअंदाज करते हुए सत्ता का नया समीकरण तैयार किया है.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सुशील मोदी को हटाना जल्दीबाजी का निर्णय नहीं है, बल्कि लंबे समय से इंतजार हो रहा था. वजह? ऐसे कई मौके आए जब सुशील मोदी, पीएम मोदी टीम के बजाए नीतीश कुमार के साथ नजर आए थे.वर्ष 2014, जब पीएम पद के लिए नरेन्द्र मोदी के नाम को आगे बढ़ाया जा रहा था, तब भी सुशील मोदी, नीतीश कुमार के साथ खड़े थे और उन्होंने एक इंटरव्यू में तो नीतीश कुमार को पीएम मटीरियल करार दिया था.

यही नहीं, वर्ष 2018 में भागलपुर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान भी सुशील कुमार मोदी, बीजेपी के बजाए नीतीश कुमार के करीब दिखाई दिए.ताजा, पीएम मोदी जैसे बड़े नेताओं को छोड़ दें तो बीजेपी के ही कई नेता-कार्यकर्ता बीजेपी के सीएम की चर्चा करके नीतीश कुमार पर नैतिक दबाव बना रहे थे, वहीं सुशील मोदी का साफ कहना था कि सीएम तो नीतीश कुमार ही होंगे.

अब, जबकि नीतीश कुमार पहली बार कमजोर हुए हैं, तो सुशील मोदी भी उप-मुख्यमंत्री नहीं रहे हैं, लेकिन यह सारा सत्ता का समीकरण अस्थाई है, राज्य सरकार पर फिर से पकड़ मजबूत बनते ही और चुनाव परिणामों की सियासी चर्चाएं ठंडी होने के साथ ही नीतीश कुमार अपना राजनीतिक अंदाज बदल सकते हैं, क्योंकि बिहार में सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी को नीतीश कुमार की जरूरत है, नीतीश कुमार को बीजेपी की नहीं?

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