भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: निवेश बढ़ाने के पहले मंदी के कारण खोजें
By भरत झुनझुनवाला | Updated: January 4, 2020 05:53 IST2020-01-04T05:53:32+5:302020-01-04T05:53:32+5:30
बीमार अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ने से समस्या बढ़ेगी. पहले परीक्षण करना चाहिए कि मंदी का कारण क्या है और तब उसके अनुकूल दवा पर विचार करना चाहिए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)
प्रमुख अर्थशास्त्नी के. सुब्रमण्यम ने कहा है कि देश में निवेश को बढ़ाना पड़ेगा जिससे कि नए उद्योग लगाने में मांग उत्पन्न हो. सीमेंट और स्टील की मांग उत्पन्न हो और श्रमिकों को रोजगार मिले और वर्तमान मंदी टूटे. लेकिन यह नुस्खा बीमार आदमी को घी पिलाने जैसा है. बीमार अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ने से समस्या बढ़ेगी. पहले परीक्षण करना चाहिए कि मंदी का कारण क्या है और तब उसके अनुकूल दवा पर विचार करना चाहिए.
निवेश और खपत का सुचक्र दो तरीकों से स्थापित हो सकता है. प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है. मान लीजिये किसी उद्यमी ने कपड़ा मिल लगाने में निवेश किया उससे उत्पादन में वृद्धि हुई. कपड़े का उत्पादन बढ़ने से कपड़े की दुकान में माल की उपलब्धि बढ़ी और साथ-साथ श्रमिकों को वेतन मिला. श्रमिकों ने इस वेतन से यदि दुकान में उपलब्ध कपड़े को खरीद लिया और दुकान से कपड़े की बिक्री हो गई तो दुकानदार कपड़ा मिल को दुबारा कपड़े की डिमांड देगा और मिल द्वारा पुन: उत्पादन किया जाएगा अथवा कपड़े की सप्लाई करने के लिए बढ़-चढ़ कर नया उद्योग लगाया जाएगा, निवेश किया जाएगा.
इसी चक्र को हम दूसरी तरह भी समझ सकते हैं. यदि इस चक्र को हम खरीद से शुरू करें तो मान लें कि दुकान में कपड़ा रखा है. उपभोक्ता ने कपड़े को खरीद लिया, दुकानदार ने कपड़ा मिल को नया ऑर्डर भेजा और कपड़ा मिल ने बढ़ा चढ़ाकर नई फैक्ट्री लगाई जिसमें उसने और श्रमिकों को रोजगार दिया. श्रमिकों को वेतन मिला और इस वेतन से पुन: इन्होंने और कपड़ा खरीदा. इस प्रकार हम देखते हैं कि निवेश और खपत के सुचक्र को हम निवेश से भी शुरू कर सकते हैं अथवा खरीद से. यानी यह अंडा और मुर्गी जैसी कहानी है. कौन पहले आया यह प्रश्न समझने का हो जाता है.
हमारे मुख्य अर्थशास्त्नी का कहना है कि इस सुचक्र की कड़ी निवेश में है. मैं समझता हूं इस पर पुन: विचार करने की जरूरत है. मान लीजिये किसी उद्यमी ने कपड़ा मिल में निवेश किया, कपड़े का उत्पादन बढ़ा और उन्होंने श्रमिक को वेतन दिया. अब दुकान में कपड़ा रखा है और श्रमिक के हाथ में वेतन है. प्रश्न यह है कि श्रमिक अपने हाथ में आई रकम से दुकान से कपड़े को खरीदेगा अथवा उस रकम को फिक्स डिपॉजिट में जमा करा देगा अथवा उस रकम से सोना खरीदेगा. दोनों का प्रभाव बिल्कुल अलग-अलग पड़ता है.
इसलिए निवेश बढ़ाने की गुहार लगाने के स्थान पर पहले इस बात की पड़ताल करनी चाहिए कि बाजार में माल खरीदा क्यों नहीं जा रहा है. श्रमिक अपने वेतन का उपयोग खपत के लिए क्यों नहीं कर रहा? वह क्यों डरा हुआ है? वह अपनी रकम को फिक्स डिपॉजिट या सोने की खरीद में क्यों लगा रहा है?