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ब्लॉग: रोहिंग्याओं की समस्या का हल निकालने के लिए बांग्लादेश का भारत से आह्वान, आखिर क्या है रास्ता?

By प्रमोद भार्गव | Published: September 08, 2022 12:19 PM

म्यांमार में दमन के बाद करीब एक दशक में रोहिंग्या भारत, नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड, इंडोनेशिया, पाकिस्तान समेत 18 देशों में पहुंच गए हैं. भारत में इनको लेकर कई तरह की दिक्कतें पेश आ रही हैं.

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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीनारोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे के समाधान के लिए भारत की ओर ताक रही हैं. उन्होंने कहा कि इस समस्या के हल के लिए भारत एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. बांग्लादेश में रह रहे 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी देश के लिए भारी बोझ के साथ एक चुनौती के रूप में भी पेश आ रहे हैं. 

भारत के साथ मिलकर शेख हसीना इस समस्या का समाधान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बात करके इनके मूल देश म्यांमार में वापसी की राह में खोज रही हैं. लेकिन यहां सोचने की बात है कि जो भारत देश में घुसे 40 हजार रोहिंग्याओं की समस्या का निदान नहीं कर पा रहा है, वह बांग्लादेश के 10.10 लाख रोहिंग्याओं का हल कैसे निकाले? अब जो संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय विवादों के हल के लिए बड़ी संस्थाएं थीं, वह भी पिछले एक दशक से अप्रासंगिक नजर आ रही हैं. 

इस संस्था के पास सलाह देने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा है. इसीलिए संयुक्त राष्ट्र का चाहे रूस और यूक्रेन के युद्ध से जुड़ा विवाद हो अथवा चीन का हिंद महासागर में बेजा दखल हो, कोई हस्तक्षेप अब तक दिखाई नहीं दिया है.

म्यांमार में दमन के बाद करीब एक दशक में रोहिंग्या भारत, नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड, इंडोनेशिया, पाकिस्तान समेत 18 देशों में पहुंचे हैं. एशिया में जिन देशों में इनकी घुसपैठ हुई है, उनमें से छह देशाों की सरकारों के लिए ये परेशानी का सबब बने हुए हैं. भारत में इनको लेकर कई दिक्कतें पेश आ रही हैं. देश में इनकी मौजूदगी से एक तो आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं, दूसरे इनके तार आतंकियों से भी जुड़े पाए गए हैं. 

नतीजतन देश में कानून व्यवस्था की चुनौती खड़ी हो रही है. रोहिंग्याओं ने कमोबेश यही स्थिति बांग्लादेश में बनाई हुई है. ये स्थानीय संसाधनों पर लगातार काबिज होते जा रहे हैं.  

संसद में दी गई जानकारी के अनुसार सभी राज्यों को रोहिंग्या सहित सभी अवैध शरणार्थियों को वापस भेजने का निर्देश दिया गया है. सुरक्षा खतरों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है. आशंका जताई गई है कि जम्मू के बाद सबसे ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैदराबाद में रहते हैं. केंद्र और राज्य सरकारें जम्मू-कश्मीर में रह रहे म्यांमार के करीब 15000 रोहिंग्या की पहचान करके उन्हें अपने देश वापस भेजने के तरीके तलाश रही हैं. 

रोहिंग्या ज्यादातर जम्मू और साम्बा जिलों में रह रहे हैं. इसी तरह आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में 3800 रोहिंग्याओं के रहने की पहचान हुई है. ये लोग म्यांमार से भारत-बांग्लादेश सीमा, भारत-म्यांमार सीमा या फिर बंगाल की खाड़ी पार करके अवैध तरीके से भारत आए हैं. आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर लगभग 40000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर देश का ऐसा प्रांत है, जहां इन रोहिंग्या को वैध नागरिक बनाने के उपाय तत्कालीन महबूबा मुफ्ती सरकार द्वारा किए गए थे.  केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत शपथ-पत्र में साफ कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत देश में कहीं भी आने-जाने, बसने जैसे मूलभूत अधिकार नहीं दिए जा सकते. ये अधिकार सिर्फ देश के नागरिकों को ही प्राप्त हैं. 

इन अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर रोहिंग्या सुप्रीम कोर्ट में गुहार भी नहीं लगा सकते, क्योंकि वे इसके दायरे में नहीं आते हैं. जो व्यक्ति देश का नागरिक नहीं है, वह या उसके हिमायती देश की अदालत से शरण कैसे मांग सकते हैं? बावजूद देश में इनकी आमद बढ़ती जा रही है. अतएव शेख हसीना भारत से इस समाधान का हल ढूंढ़ने के लिए कह रही हैं तो इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने के साथ स्थानीय स्तर पर भी इनकी वापसी के ऐसे उपाय किए जाएं, जिससे वे अपने मूल देश म्यांमार का रास्ता पकड़ लें.

टॅग्स :रोहिंग्या मुसलमानबांग्लादेशशेख हसीना
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