Assam CM Himanta Biswa Sarma: भाजपा में हिमंत बिस्वा सरमा का महत्व!, हिंदुत्व के नए पुरोधा?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 7, 2024 10:51 IST2024-09-07T10:49:16+5:302024-09-07T10:51:13+5:30
Assam CM Himanta Biswa Sarma: असमिया युवाओं द्वारा ‘मामा’ कहे जाने वाले सरमा का भगवा अवतार उन्हें पूर्वोत्तर के राजनीतिक क्षेत्र का बेताज बादशाह बनाता है.

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प्रभु चावलाः
असम के 15वें मुख्यमंत्री 55 वर्षीय हिमंत बिस्वा सरमा हिंदुत्व के नए पुरोधा बन गए हैं. उनकी जड़ें कांग्रेस में हैं, जो धर्मनिरपेक्षता की ऐतिहासिक अगुआ रही है. लेकिन उनकी राष्ट्रीय प्रसिद्धि का श्रेय भाजपा को जाता है, जिसने उन्हें अपने पाले में ले लिया. इससे पहले, सरमा एक दशक से ज्यादा समय तक धर्मनिरपेक्षता के संघ विरोधी प्रचारक रहे. विडंबना यह है कि असम में भाजपा से मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी पहली यात्रा गुवाहाटी में आरएसएस मुख्यालय की थी. 2015 में जिस दिन से वे पार्टी में शामिल हुए, सरमा की वैचारिक पहचान की भगवा गहराई किसी भी लंबे समय से कार्यरत संघ कार्यकर्ता की मान्यताओं से ज्यादा गहरी हो गई. सरमा अपनी सरकार की उपलब्धियों के बजाय मंदिरों, मुसलमानों, मौलवियों और मदरसों के बारे में ज्यादा बात करते हैं.
अपने लचीलेपन, मिलनसारिता और सुलभता के कारण वे 2021 में अपनी पार्टी को दूसरा कार्यकाल दिलाने के लिए सभी को साथ ला पाए. असमिया युवाओं द्वारा ‘मामा’ कहे जाने वाले सरमा का भगवा अवतार उन्हें पूर्वोत्तर के राजनीतिक क्षेत्र का बेताज बादशाह बनाता है. सरमा की पुराने हिंदुत्व की अतिशयोक्ति से संकेत मिलता है कि उन्होंने कांग्रेस की संस्कृति से जो कुछ सीखा था, उसे भूल गए हैं.
अपनी चतुर विधायी और प्रशासनिक रणनीति के तहत हाल ही में उन्होंने विधानसभा में अत्यधिक विवादास्पद असम निरसन विधेयक और असम अनिवार्य मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण विधेयक 2024 पारित करवाया, जिसका उद्देश्य असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त और प्रतिस्थापित करना है.
नए कानूनों के माध्यम से, सरमा एक तरह से क्षेत्रीय समान नागरिक संहिता का अपना खाका पेश करने का प्रयास कर रहे हैं. हाल ही में उन्होंने विधानसभा में अल्पसंख्यकों के बारे में टिप्पणी करके विपक्ष का मुकाबला किया: ‘मैं पक्ष लूंगा. आप इसमें क्या कर सकते हैं? मिया मुसलमानों को असम पर कब्जा नहीं करने देंगे.’
उन्होंने यह भी दावा किया, ‘जनसांख्यिकी में बदलाव मेरे लिए बड़ा मुद्दा है. असम में मुस्लिम आबादी आज 40 प्रतिशत तक पहुंच गई है. 1951 में यह 12 फीसदी थी. हमने कई जिले खो दिए हैं.’ जैसा कि अनुमान था, कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने सांप्रदायिक संघर्ष भड़काने के लिए उन पर निशाना साधा.
असम कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा के शब्दों में : ‘असम में 18 विपक्षी दल हैं जिन्होंने संयुक्त रूप से मुख्यमंत्री के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से, असम के मुख्यमंत्री सांप्रदायिक दंगे भड़काने की कोशिश कर रहे हैं और विधानसभा के अंदर भी संवेदनशील बयान दे रहे हैं. हम राष्ट्रपति को भी पत्र लिखेंगे.’
अगले दिन, विपक्षी दलों ने राज्यपाल से मुलाकात की और सरमा के इस्तीफे की मांग की. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने गुस्से में कहा : ‘असम के मुख्यमंत्री ने जो कहा वह अस्वीकार्य और निंदनीय है. बीमार दिमाग और बड़बोलापन एक जहरीला मिश्रण है.’ सरमा ने पलटवार करते हुए कहा : ‘उनको (विपक्ष को) अल्पसंख्यक वोटों के लिए प्रतिस्पर्धा करने दें. मैं प्रतिस्पर्धा में नहीं हूं.’
वह अपने हिंदू धर्म पर जोर देने और राजनीतिक विरोधियों को किनारे लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते. पिछले साल भी उन्होंने असम की मुस्लिम आबादी में वृद्धि पर सवाल उठाते हुए दावा किया था कि यह प्रति दशक 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जबकि हिंदुओं के लिए यह दर 16 प्रतिशत है. सरमा उन मुस्लिम संस्थानों को निशाना बना रहे हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे कट्टरपंथ को बढ़ावा देते हैं.
सरमा ऐसे आक्रामक युद्धों का स्वागत करते हैं जो उनके हिंदुत्व की साख को बढ़ाते हैं. वे विपक्षी दलों द्वारा किसी भी तरह के प्रतिरोध को अपने एजेंडे को और आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. कांग्रेसी होने के नाते, उन्होंने पार्टियों को तोड़ने, सरकारों को गिराकर दलबदलुओं को अपने पक्ष में करने और प्रतिद्वंद्वियों को ध्वस्त करने की कला सीखी थी.
उनकी तेजी से सीखने की कला ने उन्हें सक्षम बनाया है. उन्होंने संघ परिवार के राष्ट्रवाद की भाषा के व्याकरण और छंद में महारत हासिल कर ली है. अमित शाह के पसंदीदा सरमा ने अपने गुरु के सामने अपनी योग्यता साबित की है. 2021 में उन्होंने ‘अमित शाह एंड द मार्च ऑफ बीजेपी’ किताब का असमिया में अनुवाद किया. सरमा का नरेंद्र मोदी और आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व के साथ भी अच्छा तालमेल है.
उनके आलोचक उनकी शेखी बघारने की आदत से चिढ़ते हैं, जबकि उनके प्रशंसक कट्टर हिंदुत्व के प्रति उनके झुकाव को पसंद करते हैं. यह जादू सरमा की विभिन्न राजनीतिक मिशनों में रणनीतिक चतुराई में परिलक्षित होता है, जिससे उन्होंने अधिकांश पूर्वोत्तर राज्यों से भाजपा विरोधी, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों को हटा दिया. वे भाजपा की त्रिपुरा जीत के लिए जिम्मेदार थे.
वे तख्तापलट के मास्टर और चतुर गठबंधन निर्माता हैं. उन्होंने मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में भाजपा का विस्तार किया. ओडिशा में उन्होंने कार्यकर्ताओं को जुटाया और हिंदू कार्ड का भरपूर इस्तेमाल किया. उन्हें आगामी झारखंड चुनावों के लिए सह-प्रभारी बनाया गया है. उनका पहला कदम पूर्व सीएम चंपई सोरेन को अपने पाले में लेकर सत्तारूढ़ झामुमो को तोड़ना था.
उन्होंने राज्य में ध्रुवीकरण का एजेंडा पहले ही तय कर दिया था. उन्होंने 16 मई को रांची में मीडिया से कहा, ‘हिंदुओं को ठंडा मत करो. हिंदू अभी गरम हुआ है, गरम रहने दो. ‘जय श्री राम’ बोलना शुरू किया है बहुत सालों बाद. ये धर्मनिरपेक्ष लोग हमें ठंडा करने की कोशिश करेंगे और हमें जय श्री राम नहीं बोलने देंगे. क्या वे नमाज बंद करवा सकते हैं?’
स्वाभाविक रूप से सरमा मोदी-शाह के सबसे भरोसेमंद और परखे हुए अनुयायी के रूप में उभरे हैं. उद्धव ठाकरे की सरकार को तोड़ने के दौरान, मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे सहित शिवसेना के सभी बागियों को भगवा सरकार के सत्ता में आने तक असम में सुरक्षित रखा गया था. सरमा की प्रतिभा उनकी कठोर विचारधारा, लचीली शासन कला और व्यावहारिक राजनीति के दुर्लभ संयोजन में निहित है.
उनके प्रवर्तकों द्वारा उन्हें भविष्य के हिंदू ‘हृदय सम्राट’ के रूप में देखा जाता है क्योंकि सूरज पूर्व में उगता है. सरमा का सितारा मोदी के राज में भी बढ़ रहा है. जूरी अभी भी इस बात पर विचार कर रही है कि वह सुपरस्टार हैं या सिर्फ संघर्ष का धूमकेतु.