पवन के. वर्मा का ब्लॉगः लोकतंत्र का जरूरी अंग है असहमति का अधिकार

By पवन के वर्मा | Published: August 26, 2019 10:35 AM2019-08-26T10:35:17+5:302019-08-26T10:35:17+5:30

जम्मू-कश्मीर के लोग आहत, गुस्से में और अलग-थलग हैं. बड़े पैमाने पर सशस्त्र बलों की तैनाती कर सरकार अपनी ओर से इसे दबाने की कोशिश कर रही है. लैंडलाइन को कथित तौर पर आंशिक रूप से चालू किया गया है, लेकिन मोबाइल फोन, ब्राडबैंड, इंटरनेट और केबल टीवी पूरी तरह से बंद हैं.

Article 370: The right to disagreement is an essential part of democracy | पवन के. वर्मा का ब्लॉगः लोकतंत्र का जरूरी अंग है असहमति का अधिकार

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Highlightsअनुच्छेद 370 अब प्रभावी नहीं है. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो चुका है. यहां तक कि अब वह पूर्ण राज्य भी नहीं है. उसे अब केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया है, जहां केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त उपराज्यपाल के पास प्रभावी शक्तियां होंगी.

अनुच्छेद 370 अब प्रभावी नहीं है. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो चुका है. यहां तक कि अब वह पूर्ण राज्य भी नहीं है. उसे अब केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया है, जहां केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त उपराज्यपाल के पास प्रभावी शक्तियां होंगी. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर को विभाजित भी कर दिया गया है, लद्दाख को उससे अलग किया जा चुका है. यह सब कुछ जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ बिना किसी विचार-विमर्श के किया गया है, क्योंकि राज्य विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है और वहां राज्यपाल शासन लागू है. इस तरह के परिवर्तनों के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों की राय लेने की पूर्व शर्त संविधान में होने के बावजूद, संसद में यह कानून पारित किया गया. लेकिन  ंअसली चुनौती तो अब शुरू होती है.

जम्मू-कश्मीर के लोग आहत, गुस्से में और अलग-थलग हैं. बड़े पैमाने पर सशस्त्र बलों की तैनाती कर सरकार अपनी ओर से इसे दबाने की कोशिश कर रही है. लैंडलाइन को कथित तौर पर आंशिक रूप से चालू किया गया है, लेकिन मोबाइल फोन, ब्राडबैंड, इंटरनेट और केबल टीवी पूरी तरह से बंद हैं.

हालांकि वहां के हालात के बारे में हमारे पास आधिकारिक बयान और आधिकारिक विज्ञप्तियां हैं, लेकिन वे अनपेक्षित ढंग से एक ऐसी तस्वीर चित्रित करना चाहते हैं कि सब कुछ ठीक-ठाक है, कोई विरोध नहीं किया गया है और घाटी में तेजी से स्थिति सामान्य हो रही है. लेकिन वास्तव में सच क्या है? 

समाज में एक वर्ग ऐसा है जो मानता है कि सरकार जो कह रही है उसे निर्विवाद रूप से मान लेना ही देशभक्ति है. खेद है कि मीडिया का एक वर्ग भी ऐसा ही मानता है. मीडिया के दूसरे वर्ग के लोग और कुछ उत्साही नागरिक, जो सरकार से सवाल-जवाब करना चाहते हैं, उन पर तीन तरह से मार पड़ रही है. सर्वप्रथम, यह कहा जाता है कि वे राष्ट्र विरोधी हैं, क्योंकि सरकारी बयानों पर सवाल उठाना देशद्रोह के बराबर है. 

दूसरा, उन पर पाकिस्तान की मदद करने का आरोप लगाया जाता है. बहस तथा असहमति प्रकट करना लोकतंत्र की ताकत है. क्या हम इसलिए असहमति प्रकट नहीं कर सकते कि पाकिस्तान उसका हमारे खिलाफ प्रचार में उपयोग कर सकता है? इस डर से हम अपने लोकतंत्र की जीवंतता को खत्म नहीं कर सकते. तीसरा, सरकार के प्रतिकूल जाने वाली कटु आलोचना को ‘फेक न्यूज’ कह दिया जाता है. 

इसके पीछे धारणा यह है कि सरकारी विज्ञप्तियां ही निर्विवाद हैं. दुर्भावनापूर्ण और साजिशन फैलाए जाने वाले फर्जी समाचार निंदनीय हैं, लेकिन सरकार के अनुकूल नहीं जाने वाली सारी खबरों को इस श्रेणी में नहीं डाला जा सकता. हम सभी को भारत को केवल संख्यात्मक रूप से ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाए रखने का प्रयास नहीं करना है, बल्कि उसकी आत्मा को भी बचाए रखना है. 

Web Title: Article 370: The right to disagreement is an essential part of democracy

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