ब्लॉग: भारत की घेराबंदी का एक और कुचक्र कामयाब
By राजेश बादल | Updated: September 25, 2024 09:29 IST2024-09-25T09:29:39+5:302024-09-25T09:29:42+5:30
उन्होंने कहा- भारत भरोसेमंद दोस्त है। उसने भयावह संकट के दौरान हमारी रक्षा की। अगर भारत न होता तो देश में एक बार फिर खून-खराबे का माहौल बन जाता।

ब्लॉग: भारत की घेराबंदी का एक और कुचक्र कामयाब
पचपन साला अनुरा दिसानायके के नेतृत्व में भारत का पड़ोसी सिंहल द्वीप-देश श्रीलंका अपनी नई पारी के लिए तैयार है। पिछले चुनाव में सिर्फ तीन फीसदी वोट हासिल करने वाले अनुरा इस बार तैंतालीस प्रतिशत मत प्राप्त कर राष्ट्रपति बने हैं। वैसे तो मतों का यह आंकड़ा बहुमत से काफी नीचे है और वाम रुझान वाले अनुरा को हुकूमत का वैध लाइसेंस नहीं देता क्योंकि बावन फीसदी मत उनके खिलाफ पड़े थे। मगर, वे विभाजित थे।
दूसरी बात यह कि वे पहली वरीयता वाले मतों से नहीं जीते थे। दूसरी वरीयता के मतों को गिना गया, तब कहीं बमुश्किल जीत पाए। लेकिन उनकी जीत इस मायने में चमत्कारिक है कि उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और वहां की राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में रहे राजपक्षे परिवार का सफाया कर दिया। बड़े प्रतिद्वंद्वी राजघराने अब मुल्क से बाहर अपनी जड़ें जमाने के लिए जा चुके हैं और अनुरा के सामने श्रीलंका का चक्रवर्ती राष्ट्रपति बनने की अनंत संभावनाएं हैं।
हालांकि हिंदुस्तान के नजरिये से यह कोई शुभ संकेत नहीं लगता, क्योंकि इस बार अनुरा के पीछे चीन ने पानी की तरह पैसा बहाया है। इसी तरीके से उसने महिंदा राजपक्षे को भी राष्ट्रपति पद का चुनाव जिताया था।
भारत की चिंताओं को समझने से पहले एक बार अनुरा दिसानायके की सियासी काबिलियत समझना आवश्यक है। दरअसल वे भारत विरोधी आंदोलन की कोख से निकले नेता हैं, जब लिट्टे का खौफ था और श्रीलंका की सहायता के लिए शांति सेना भेजी गई थी।
इसके बाद वहां तमिल बहुल इलाकों में भारत का विरोध प्रारंभ हो गया था। तब जेवीपी (जनता विमुक्ति पेरामुना) भारत-श्रीलंका समझौते के खिलाफ थी। उसने प्रतिपक्षी दलों के अनेक लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्या करा दी थी। विज्ञान से ग्रेजुएट अनुरा इसी हिंसक पार्टी जेवीपी में शामिल हुए और 2014 आते-आते पार्टी सुप्रीमो बन बैठे। जेवीपी के संस्थापक रोहाना विजयवीरा भारत के सख्त विरोधी थे। इसके बाद अनुरा ने 2019 में दल का नया नामकरण किया। इसे नाम दिया - नेशनल पीपल्स पावर। जल्द ही यह पार्टी नौजवानों में लोकप्रिय हो गई।
भविष्य की संभावनाएं परखते हुए चीन ने अनुरा की पीठ पर हाथ रख दिया। हालांकि अनुरा जानते थे कि तमिल मतों के बिना जीत संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने प्रचार के दरम्यान भारत के प्रति नरम रवैया अपनाया। चुनाव के मद्देनजर वे फरवरी में भारत आए थे। वे विदेश मंत्री जयशंकर और सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी मिले थे।
भारत उनके हालिया बयानों पर चाहे तो संतोष कर सकता है। अनुरा ने कहा था कि वे श्रीलंका की धरती से भारत विरोधी किसी भी कदम के खिलाफ हैं। फिर भी यह तो कहना होगा कि भारत ने अपनी वैकल्पिक रणनीति पर काम नहीं किया, क्योंकि वह वर्तमान राष्ट्रपति और छह बार देश के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे की जीत के प्रति आश्वस्त था। यह विक्रमसिंघे ही थे, जिन्होंने भारत की सहायता से दिवालिया होने की कगार पर खड़े मुल्क को बचा लिया। पर, भारत चाहता तो वह प्रेमदासा पर दांव लगा सकता था। प्रेमदासा ने चुनाव में करीब 33 प्रतिशत मत हासिल किए. वे दूसरे स्थान पर रहे. इसे भारत की कूटनीति और विदेश नीति के लिए एक चुनौती माना जा सकता है।
अनुरा दिसानायके के सामने अनेक गंभीर चुनौतियां हैं। अभी तक वे विपक्षी नेता के रूप में रानिल विक्रमसिंघे और उससे पहले गोताबाया राजपक्षे की सत्ताओं के घनघोर और निर्मम आलोचक थे। वे अवाम को पसंद आने वाली बातें करते थे और उन्हें सपने दिखाते थे। लोग उनके वादों पर मुग्ध हो जाते थे। उन्हें लगता था कि राजपक्षे और विक्रमसिंघे ने मिलकर उन्हें ठगा है। श्रीलंका में चीन के बढ़ते दखल से भी वे परेशान थे।
जब महिंदा राजपक्षे ने हंबनटोटा बंदरगाह चीन को लीज पर दिया तो बड़ा विरोध हुआ था। उसके बाद ही राजपक्षे को हकीकत का अहसास हुआ और उन्होंने 2020 में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि हंबनटोटा बंदरगाह चीन को सौंपना बड़ी भूल थी। इसके बाद राजपक्षे ने चीन से दूरी बना ली। जब श्रीलंका में जनविद्रोह हुआ तो राजपक्षे परिवार को भागना पड़ा और चीन को अहसास हुआ कि उसने राजपक्षे पर दांव लगा कर अच्छा नहीं किया। इसके बाद ही उसने अनुरा दिसानायके को लुभाना शुरू किया।
यह भी सच है कि जब आर्थिक मोर्चे पर श्रीलंका बदहाली का शिकार था और उसके दिवालिया होने की नौबत आ गई थी, तब चीन की चुप्पी रहस्यमय थी।
उसने श्रीलंका की हालत बिगड़ने दी। इसके बाद जब रानिल विक्रमसिंघे ने मदद का अनुरोध किया तो भारत ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए मदद के द्वार खोल दिए। इस सहायता के लिए श्रीलंका की संसद के स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्दना ने खुलकर भारत का आभार माना। उन्होंने कहा- भारत भरोसेमंद दोस्त है। उसने भयावह संकट के दौरान हमारी रक्षा की। अगर भारत न होता तो देश में एक बार फिर खून-खराबे का माहौल बन जाता। अभयवर्दना ने कहा था कि भारत हमारे ऋण को 12 साल के लिए बढ़ाने को तैयार है। हमें कभी इसकी उम्मीद नहीं थी।
आज तक किसी भी देश ने हमारी इतनी मदद नहीं की। इसी तरह राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने ऐलान किया कि श्रीलंका का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होगा। किसी को शक नहीं होना चाहिए कि हम चीन से कभी सैनिक अनुबंध नहीं करेंगे। बता दूं कि भारत ने श्रीलंका की 4 बिलियन डॉलर से अधिक की मदद की थी। श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा था कि भारत की मदद से ही श्रीलंका थोड़ा-बहुत वित्तीय संतुलन हासिल कर पाया था।
खास बात यह है कि हिंदुस्तान की सहायता के बाद क्या नए राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके भी उपकृत महसूस करते हैं ? क्या उन्हें अहसास है कि चीन की गोद में बैठने के कितने घातक परिणाम हो सकते हैं? वैसे तो उन्हें प्रशासन का अनुभव नहीं है और आर्थिक मामलों में उनकी समझ कमजोर है। वे विज्ञान के छात्र रहे हैं. सियासत के गलियारों में अब उन्हीं पर नजरें टिकी हैं।