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रंगनाथ सिंह का ब्लॉग: अखिलेश यादव की केशव प्रसाद मौर्य से तूतड़ाक का राजनीतिक सन्देश क्या है?

By रंगनाथ सिंह | Published: May 26, 2022 11:46 AM

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव बुधवार को दो खबरों के कारण सोशलमीडिया पर चर्चा में रहे। कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजने और यूपी विधानसभा में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के संग तूतड़ाक करने के लिए। इन घटनाओं के मद्देनजर रंगनाथ सिंह का ब्लॉग।

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ठळक मुद्देअखिलेश यादव ने कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके कपिल सिब्बल को राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाने की घोषणा की।यूपी विधानसभा के बजट सत्र में अखिलेश यादव और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच तीखी बहस हो गई।अखिलेश यादव से जुड़े इन दोनों मुद्दों पर बुधवार को सोशलमीडिया पर उनके पक्ष-विपक्ष में बहस होती रही।

यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने जैसे सेंस ऑफ ह्यूमर और हाजिरजवाबी का परिचय दिया था उससे उनके चाहने वालों की संख्या बढ़ी थी। जो लोग उन्हें वोट नहीं देते वो भी उन्हें नापसन्द नहीं करते। कल अखिलेश जी दो कारणों से सोशलमीडिया पर चर्चा में रहे। कल कुछ सोशलमीडिया इन्फ्लुएंसर इस बात से नाराज थे कि सपा ने कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेज दिया। यही वर्ग पहले इस बात से नाराज था कि तेजस्वी यादव ने मनोज कुमार झा को राज्यसभा भेज दिया था।

सोशलमीडिया इन्फ्लुएंसर यह कभी नहीं सोचते कि उनकी कोर स्किल क्या है? पढ़ने के वक्त उन्होंने पढ़ाई की नहीं। विद्वान पत्रकार वाली छवि उनकी कभी रही नहीं। बाकी मीडिया में आदमी तमाशा लगाना सीख जाता है। तमाशा लगाने के हुनर में माहिर ज्यादातर मीडिया महारथी सोशलमीडिया पर भी अच्छा तमाशा लगा लेते हैं लेकिन राज्यसभा में तमाशा नहीं लगाना होता! इन्फ्लुएंसर ट्वीट और फेसबुक पोस्ट करने के लिए उच्च सदन में क्यों जाना चाहते हैं! समझ से परे है। मनोज झा और कपिल सिब्बल की विद्या उन्हें वहाँ तक ले गयी है। राकेश सिन्हा जैसे राज्यसभा में इसलिए नामित हुए क्योंकि एंटी-बीजपी ईकोसिस्टम में दसियों साल तक वो स्वेच्छा से आरएसएस-भाजपा को डिफेंड करते रहे थे। जाति जनगणना तो नगरपालिका के साधारण कर्मचारी भी कर सकते हैं।

टीवी स्क्रीन पर किसी पैनल में कितने पाण्डेय हैं, कितने मिश्रा, कितने दुबे, चौबे, छब्बे या सिंह, श्रीवास्तव, अग्रवाल, यादव, पटेल, जाटव हैं यह गिनने के लिए बहुत ज्यादा आईक्यू की जरूरत नहीं होती। सोशलमीडिया के बच्चे-बच्चे इतना गिन ले रहे हैं। अब तो सावन में पैदा होने वाले भी भादो में महज अनुमान के आधार पर दूसरों की जात का अन्दाजा लगाकर सिद्धान्त बघार रहे हैं। इतने से काम के लिए राज्यसभा नहीं भेजा जा सकता। इसके लिए तो पार्टी आईटी सेल में प्लेसमेंट देना काफी होता है। राज्यसभा लोलुप वर्ग भूल चुका है कि ऑनलाइन भीड़ जुटाने और हल्लागुल्ला करने की ताकत विद्या-ज्ञान-अध्ययन को हर जगह रिप्लेस नहीं कर सकती। वो इन्फ्लुएंसर दया के पात्र हैं जो सोचते हैं कि उन्हें राजनेताओं से ज्यादा व्यावहारिक राजनीति आती है।

इधर एक वर्ग सिब्बल को राज्यसभा भेजने को लेकर अखिलेश जी पर अटैक कर रहा था तो एक अन्य वर्ग उनके द्वारा विधानसभा में केशव प्रसाद मौर्य को तुम, आपके पिता, चल हट, चल हट....किए जाने को डिफेंड कर रहा था। यह वर्ग यह दिखाना चाह रहा था कि 'सैफई की जमीन बेचकर सड़क बनवाए थे' वाला बयान इस लायक ही था कि ये सब किया जाए! कई लोग खुश हैं कि अखिलेश यादव ने केशव प्रसाद मौर्य को 'औकात' दिखा दी। ऐसे लोग संसदीय और असंसदीय शब्दावली में फर्क भूल चुके हैं। भूल जाएँ, उनकी मर्जी है। लेकिन इस बयान को जो मैसेज गया है वह अखिलेश यादव को 2017 और 2022 के बाद भी भारी पड़ेगा।

यूपी-बिहार की यादव बनाम कुर्मी-कोइरी पॉवर पॉलिटिक्स में इस बयान का असर न हो, मुश्किल है। लोग दबी जबान में पूछ रहे हैं कि अखिलेश यादव ने जिस तरह केशव प्रसाद मौर्य को तुम, आपके पिता, चल हट, चल हट....कह दिया क्या वही तेवर और जबान कभी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ट्राई करेंगे। आदित्यनाथ नहीं सही, ब्रजेश पाठक पर ही ट्राई करेंगे? मैं मानता हूँ कि माहौल की गर्मी में अखिलेश के मुँह से वैसा निकल गया होगा। हमसे भी हो जाता है लेकिन सोशलमीडिया में ऐसे लोगों की भीड़ बढ़ चुकी है जो असावधान पलों में मुँह से निकली अवाँछित बात को डिफेंड करने के लिए सारा हठयोग कर डालते हैं।

अखिलेश जी बिल्कुल भूल चुके हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव का एक ग्राउण्ड नरेटिव यह भी था कि सपा सत्ता में आई तो 'गुण्डई' बढ़ जाएगी। सपा-विरोधियों की इस नरेटिव का सबसे बड़ा एंटीडोट अखिलेश यादव की सौम्य सभ्य प्रसन्नचित्त छवि थी जिसे कल तगड़ा धक्का लगा। इस धक्के से वो सारे संवाद याद आ गए जिनमें कहा गया था कि अगर 'अहीर सत्ता में आ गए तो....।' आज खुद अखिलेश उस तेवर को अपनाते नजर आ गए। देखना यह है कि अखिलेश यादव अपना नया तेवर बरकरार रखते हैं या यह केवल क्षणिक उत्तेजना का प्रतिफल साबित होता है। जो भी हो, उन्हें बस इतना याद रखना चाहिए कि चुनाव का दौरान भाजपा का एक नरेटिव यह भी था कि - ....इसीलिए योगी जी की जरूरत है!

साल 2014, 2017, 2019 और 2022 के बाद भाजपा ने निर्णायक रूप से साबित कर दिया है कि यूपी की सत्ता MY को पूरी तरह दरकिनार करके भी हासिल की जा सकती है। 2022 में तो MY की अभूतपूर्व लामबन्दी थी फिर भी भाजपा दो-तिहाई सीट लाने में कामयाब रही। सपा समर्थक इधर राज्यसभा और तूतड़ाक में उलझे हुए हैं दूसरी तरफ भाजपा ने चुनावी अखाड़े में नया जुमला उतार दिया है। कांग्रेस शासित राजस्थान के जयपुर में भाजपा ने MYY (महिला, युवा और योजना) को चार राज्यों के हालिया चुनावों में अपनी जीत का श्रेय दिया।

अब सब मान चुके हैं कि चुनावी राजनीति में भाजपा कच्ची गोटियाँ नहीं खेलती। राजनीतिक चिन्तकों को सोचना चाहिए कि यह महिला और युवा कौन हैं जिनके वोट के बल पर भाजपा जीतने का दम भर रही है! उनकी जाति और धर्म क्या है? योजना का नरेटिव तो साफ है। यूपी विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ और अमित शाह जैसे नेताओं ने दावा किया कि जिन पाँच करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिला है उनमें करीब दो करोड़ मुसलमान हैं। योगी जी ने दावा किया कि यूपी में जिन लोगों को सरकारी आवास मिला उनमें 30 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान हैं जबकि उनकी जनसंख्या करीब 19 प्रतिशत है। सन्देश साफ है कि योजना में भाजपा भेदभाव नहीं करती।

योजना में भेदभाव नहीं होता के नरेटिव का सफेद-स्याह क्या है, देश को अब शायद नीतीश कुमार बताएँ क्योंकि जो माहौल बन रहा है उससे यही लग रहा है कि कुछ दल राहुल गांधी या अखिलेश यादव से ज्यादा नीतीश कुमार पर भरोसा करने की तरफ बढ़ रहे हैं। शायद यही कारण है कि नीतीश जी खुद सगुन के तौर पर जाति जनगणना की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं। गिनती गिन-गिन थक चुके इन्फ्लुएंसरों की बात उन्होंने सुन ली है। हालाँकि राज्यसभा भेजने के मामले में वो अखिलेश और तेजस्वी से थोड़े ही अलग हैं। उन्होंने लम्बे समय तक निस्वार्थ भाव से पार्टी की सेवा करने वाले अनिल हेगड़े को उच्च सदन में भेजा है। पता नहीं अनिल हेगड़े सोशलमीडिया पर एक्टिव हैं भी नहीं!

खैर, मुद्दा यह है कि यदि नीतीश कुमार के पीछे लामबन्दी होनी है तो भी, अखिलेश यादव को याद रखना होगा कि फिर केशव प्रसाद मौर्य को तुम, आपके पिता, चल हट, चल हट....करना भूलना होगा।

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