अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: हमारा आधुनिक राज्य और धर्म यानी हिंदू राष्ट्र?

By अभय कुमार दुबे | Updated: March 25, 2020 06:35 IST2020-03-25T06:35:13+5:302020-03-25T06:35:13+5:30

अगर 2004 में भाजपा बहुत थोड़े अंतर से चुनाव न हार जाती और वाजपेयीजी दोबारा प्रधानमंत्री बन गए होते तो हो सकता है कि उस आयोग के गर्भ से एक ऐसा संविधान निकलता जो हिंदुत्ववादी योजनाओं के मुताबिक होता. लेकिन उसके बाद दस साल तक कांग्रेस का शासन चला. 2014 में जब भाजपा का शासन दोबारा आया तो पहले ही दिन संसद में कदम रखते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की समीक्षा करने के भाजपाई प्रोजेक्ट को यह कह कर हमेशा-हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि संविधान ही उनका सबसे बड़ा धर्मग्रंथ है.

Abhay Kumar Dubey blog: Our modern state and religion i.e. Hindu nation? | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: हमारा आधुनिक राज्य और धर्म यानी हिंदू राष्ट्र?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

कभी-कभी पहले से जाने जा चुके तथ्यों को दोबारा जानने और उनके नए अर्थ ग्रहण करने पर अजीब तरह का आश्चर्य होता है. अभी हाल ही में विधिशास्त्र के विद्वान फैजान मुस्तफा ने सेक्युलरवाद बनाम हिंदू राष्ट्र की बहस के हवाले से चर्चा करते हुए जो जानकारियां दी हैं- उनसे ऐसा ही एहसास हुआ है.

मसलन, हम लोग पहले से जानते हैं कि इंग्लैंड, आयरलैंड, यूनान, इजराइल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के संविधान किसी न किसी धर्म (प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक ईसाइयत, यहूदी धर्म, इस्लाम और बौद्ध धर्म) को राज्य के प्रमुख धर्म की तरह स्वीकार करते हैं. लेकिन, जब प्रोफेसर मुस्तफा की चर्चा ने इस हकीकत पर रोशनी डाली कि किसी न किसी धर्म को अपना प्रमुख धर्म घोषित करने के बावजूद इन देशों में अन्य धर्मो के लिए स्वतंत्रताओं के प्रावधान हैं, कई तरह के मानवाधिकार भी इन देशों में प्रदान किए गए हैं, समानता का अधिकार और भेदभाव न करने का वायदा भी इन देशों का संविधान प्रदान करता है- तो बात नए सिरे से खुलती नजर आई.

अर्थात कोई जरूरी नहीं है कि किसी आधुनिक देश का संविधान घोषित रूप से स्वयं को सेक्युलर विचार का वाहक करार दे. बिना ऐसा किए हुए भी वह काफी बड़ी सीमा तक विभिन्न धर्मो के सहअस्तित्व की गारंटी देते हुए मानवाधिकारों की कसौटी पर खरा उतर सकता है.

मुस्तफा साहब के मुताबिक पाकिस्तान जैसे धर्मतंत्रीय देश के कानून में भी इस तरह के प्रावधान और गुंजाइशें हैं. जाहिर है कि वे कानून के स्कॉलर हैं और उनकी चर्चा में संवैधानिक प्रावधानों को धरती पर पूरी तरह लागू करने, आधे-अधूरे ढंग से या कतई लागू न करने से पैदा होने वाली स्थितियों का जिक्र नहीं है. कहना न होगा कि इंग्लैंड और पाकिस्तान या श्रीलंका जैसे देशों की जमीनी स्थितियां एक-दूसरे से अलग हैं. संविधान की किताब में जो लिखा है, उसे कई देशों में व्यवहार में नहीं उतारा जाता. लेकिन, इस विश्लेषण से यह तो पता लगता ही है कि आधुनिक राज्य का धर्म से कितना गहरा ताल्लुक है, और राज्य का एक धर्म होते हुए भी वह चाहे तो सेक्युलर राज्य की तरह आचरण कर सकता है. इस संदर्भ में मुस्तफा साहब ने यह भी कहा है कि अगर पंद्रह जजों की एक सुप्रीम कोर्ट बेंच संसद को संविधान का बुनियादी ढांचा बदलने का अधिकार दे दे तो संविधान की किताब में भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने का संसदीय उद्यम किया जा सकता है.

क्या ऐसा हो सकता है, या मौजूदा सरकार ऐसा करने की कोशिश कर सकती है? इस प्रश्न पर विचार करना दिलचस्प होगा. मुझे याद पड़ता है कि आशीष नंदी के साथ नब्बे के दशक में भारतीय जनता पार्टी के एक कट्टरपंथी सांसद ने बातचीत करते हुए दावा किया था कि भारत तो पहले से ही हिंदू राष्ट्र है. बस इस बात को लाल किले की प्राचीर से घोषित करने की जरूरत भर है. यह वाचाल सांसद रामजन्मभूमि आंदोलन के जिन दिनों में सक्रिय थे, उस अवधि में संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के दिमाग में भारतीय संविधान के प्रावधानों में रैडिकल किस्म के संशोधन करने की योजना पक रही थी.

इसी के परिणामस्वरूप अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान की समीक्षा करने के लिए एक आयोग बनाया था जिसके कारण भारत पर एक अलग तरह का संविधान थोपे जाने के अंदेशे पैदा हो गए थे. अगर 2004 में भाजपा बहुत थोड़े अंतर से चुनाव न हार जाती और वाजपेयीजी दोबारा प्रधानमंत्री बन गए होते तो हो सकता है कि उस आयोग के गर्भ से एक ऐसा संविधान निकलता जो हिंदुत्ववादी योजनाओं के मुताबिक होता. लेकिन उसके बाद दस साल तक कांग्रेस का शासन चला. 2014 में जब भाजपा का शासन दोबारा आया तो पहले ही दिन संसद में कदम रखते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की समीक्षा करने के भाजपाई प्रोजेक्ट को यह कह कर हमेशा-हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि संविधान ही उनका सबसे बड़ा धर्मग्रंथ है.

आज भाजपा के उस सांसद जैसी भाषा कोई नहीं बोलता. कोई यह दावा नहीं करता कि भारत को लाल किले की प्राचीर से हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए. दरअसल, कांग्रेस के दस साल के शासन के दौरान विपक्ष में रहते हुए मोदी (बारह साल तक गुजरात का मुख्यमंत्रित्व मोदी ने इसी दौरान किया, और इस प्रदेश को ‘संविधानसम्मत’ ढंग से हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाकर दिखाया) समेत संघ परिवार के सभी रणनीतिकारों को यकीन दिला दिया है कि संविधान में एक शब्द भी जोड़े-घटाये बिना या कुछ भी घोषित किए बिना वे भारत को व्यावहारिक रूप से हिंदू राष्ट्र बना सकते हैं.

जो प्रक्रियाएं चल रही हैं, वे इसी तरफ इशारा करती हैं. इन प्रक्रियाओं को मैं ‘डिस्कोर्स मैनेजमेंट’ या ‘विमर्श प्रबंधन’ की संज्ञा देता हूं. नब्बे के दशक से ही भारतीय राजनीति और नागरिक जीवन की बहसें हिंदू राष्ट्र के विचार के अनुकूल होती जा रही हैं. इसमें कांग्रेस शासन के दौरान हुई गलतियों की प्रमुख भूमिका है जिनका लाभ उठाकर भाजपा के शासन ने भारतीय राज्य के नीचे बिछी सेक्युलर जाजिम को पूरी तरह से खींच लिया है.

अब राज्य की शक्ति, मीडिया के सहयोग और बुद्धिजीवियों की भागीदारी से यह विमर्श प्रबंधन बखूबी चल रहा है. जो भारत पहले संघ के विचारों में ही हिंदू राष्ट्र था, वह व्यावहारिक रूप से हिंदू राष्ट्र बन चुका है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey blog: Our modern state and religion i.e. Hindu nation?

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