Kargil Vijay Diwas: देश के दुश्मनों से टकराने वाले सपूतों के शौर्य को नमन
By योगेश कुमार गोयल | Updated: July 26, 2025 05:21 IST2025-07-26T05:21:33+5:302025-07-26T05:21:33+5:30
Kargil Vijay Diwas: कैप्टन अनुज नायर, मेजर पद्मपाणि आचार्य, राइफलमैन संजय कुमार जैसे अनेक वीरों ने अपने प्राण न्योछावर किए.

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कारगिल युद्ध भारतीय सैन्य इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसमें केवल जीत नहीं बल्कि मानवीय साहस, रणनीतिक दूरदर्शिता और अनगिनत अनसुने बलिदानों का संगम है. 26 जुलाई की तारीख भारतीय इतिहास का वह स्वर्णाक्षरित पृष्ठ है, जो अदम्य साहस, अटूट राष्ट्रभक्ति और वीरता के चरमोत्कर्ष का प्रतीक बन चुका है. यह दिन 1999 के उस गौरवशाली क्षण की स्मृति है, जब भारतीय सेना ने अद्वितीय पराक्रम का परिचय देते हुए दुर्गम कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराकर पाकिस्तानी घुसपैठियों को पराजित किया था.
#WATCH | Drass | 'Shaurya Sandhya' event organised at the Kargil War Memorial on the eve of 26th Kargil Vijay Diwas as people in large numbers illuminate lamps to pay tribute to the valiant soldiers who laid down their lives in the line of duty in the 1999 Kargil War. pic.twitter.com/w3SUXCgYmR
— ANI (@ANI) July 25, 2025
#WATCH | Kargil | Ahead of the 26th Kargil Vijay Diwas, the 8 Mountain Division of the Indian Army organised "Gauravmayi Sanskriti" at Drass. A drone show was organised during the event. pic.twitter.com/SEpkDUoHi4— OTV (@otvnews) July 25, 2025
हालांकि इस विजय की चमक के पीछे अनगिनत अनसुनी कहानियां, अनछुए पहलू और मौन बलिदान छिपे हुए हैं, जो आज भी संवेदनाओं के भीतर दबी चीखों की तरह प्रतीक्षा करते हैं कि उन्हें सुना जाए, समझा जाए और उनके सम्मान में राष्ट्र थोड़ी देर नतमस्तक हो. सही मायनों में यह दिन न केवल भारतीय सेना की अदम्य वीरता का प्रतीक है बल्कि यह उन अनकहे बलिदानों की याद दिलाता है,
जो हिमालय की बर्फीली चोटियों पर हमारे जवानों ने देश की अस्मिता की रक्षा के लिए दिए थे. कारगिल युद्ध एक पारंपरिक संघर्ष नहीं था, यह रणनीतिक छल, खुफिया विफलताओं और असाधारण साहस का संगम था. अप्रैल 1999 में जब भारतीय गश्ती दलों ने कारगिल सेक्टर में कुछ असामान्य हलचल देखी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पाकिस्तान की सेना ने नियंत्रण रेखा पार कर भारत की कई ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर गुपचुप कब्जा जमा लिया था. प्रारंभिक भ्रम यही था कि यह कुछ सीमित आतंकवादियों की घुसपैठ है लेकिन जल्द ही स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान की नियमित सेना इस अभियान का संचालन कर रही है. यही वह क्षण था,
जब भारत को सैन्य, कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक तीनों मोर्चों पर एक अभूतपूर्व संघर्ष के लिए तैयार होना पड़ा और तब प्रारंभ हुआ एक ऐसा सैन्य अभियान, जो दुनिया के सबसे कठिन युद्धों में से एक माना गया. भारत के लिए कारगिल युद्ध एक अत्यंत जटिल युद्ध था क्योंकि यह युद्ध समुद्र तल से 16-18 हजार फुट की ऊंचाई पर लड़ा गया,
जहां ऑक्सीजन की कमी, बर्फीली हवाएं और भीषण ठंड पहले से ही जीवन के लिए चुनौती थी. उस पर दुश्मन पहले से ऊंचाई पर तैनात था और भारतीय सैनिकों को सीधे चढ़ाई करते हुए गोलीबारी, मोर्टार और स्नाइपर फायर का सामना करते हुए आगे बढ़ना था. ऐसे में यह युद्ध केवल हथियारों का नहीं, मानसिक, शारीरिक धैर्य, असाधारण सैन्य प्रशिक्षण और जीवटता का था.
भारतीय सैनिकों ने जिस साहस के साथ दुर्गम बंकरों पर कब्जा किया, वह विश्व के सैन्य इतिहास में अद्वितीय माना जाता है. कैप्टन विक्रम बत्रा ने 5140 चोटी पर जीत हासिल कर इस युद्ध को नई दिशा दी. ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ने अपने शरीर में गोलियां लगने के बावजूद चोटी पर चढ़कर रास्ता साफ किया.
कैप्टन अनुज नायर, मेजर पद्मपाणि आचार्य, राइफलमैन संजय कुमार जैसे अनेक वीरों ने अपने प्राण न्योछावर किए. किंतु इन नामों के अतिरिक्त सैकड़ों ऐसे नाम हैं, जिनकी कहानियां आज भी हमारी स्मृतियों में धुंधली हैं या कभी सुनाई ही नहीं गईं.