नए सुपरमैन पर फिदा जेन-जी और नाक-भौं सिकोड़ती पुरानी पीढ़ी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 22, 2025 07:11 IST2025-07-22T07:09:23+5:302025-07-22T07:11:06+5:30
भारतीय नौजवान पीढ़ी, खासकर हिंदीपट्टी व शहरी मध्यम वर्ग, फिलहाल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सत्तोन्मुखी स्वप्नलोक में है.

नए सुपरमैन पर फिदा जेन-जी और नाक-भौं सिकोड़ती पुरानी पीढ़ी
सुनील सोनी
यह देखना मजेदार है कि अमेरिका में इन दिनों जो फिल्म छप्परफाड़ कमाई (2800 करोड़ रुपए से अधिक) कर डीसी स्टूडियो को तार रही है, उसका महानायक ‘सुपरमैन’ परंपरागत नायकीय मिथक को तोड़ रहा है. फिल्म में वह प्रवासी है; युद्ध में खलनायक के हाथों पिटता है. रौबीला, छैल-छबीला होने के बावजूद उसे खुद के अस्तित्व पर संदेह है. उसकी प्रेमिका उसे उलाहने देती है. उसे अपने आदर्शों को लेकर संदेह और दुविधा है.
‘सुपरमैन’ अमेरिकी कामिक्स से पैदा पौराणिक नायक आख्यान है. आठ दशकों तक परग्रही सुपरमैन ‘सच, न्याय, आशा’ का शक्तिशाली राष्ट्रवादी अमेरिकी प्रतीक बना रहा है. उसका गुप्त रूप ‘क्लार्क केंट’ भी आदर्श पत्रकार है. फिल्मों में भी वह रूप बदला नहीं. पिछले दशक में जैक स्नाइडर ने उसे ज्यादा स्याह बना दिया था. लेकिन, नई फिल्म में निर्देशक जेम्स गन ने सेल्युलाइड कहानी कहने के अपने अंदाज के मुताबिक उसे आत्मसंशय, अंतर्द्वंद्व से भर दिया है.
गन की फिल्मों, ‘गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी’, ‘द सुसाइड स्क्वाड’, ‘पीसमेकर’ के महानायक इनसानी खामियों से भरे, समाज से परे, नैतिकता-आदर्श के अनाग्रही होते हैं. अमेरिका में ‘सुपरमैन’ के इस रूप पर मीडिया और सोशल मीडिया में पीढ़ीगत बहस जारी है.
लगता है, जैसे यह फिल्म अमेरिका की नई-पुरानी पीढ़ी के बीच चल रहे सांस्कृतिक संघर्ष का प्रतीक है. समीक्षकों की राय बंटी हुई है. आलोचक सुपरमैन के किरदार को इस तरह चित्रित करने को अमेरिकी संस्कृति के नैतिक ह्रास की गाथा कह रहे हैं, समर्थक उसे मौजूं, सफल और नए दौर का आईना बता रहे हैं. पुरानी पीढ़ी यानी बूमर्स और जेन-एक्स को यह ‘सुपरमैन’ पसंद नहीं आ रहा, पर 18 से 30 आयुवर्ग के युवा यानी मिलेनियल और जेन-जी उसे खूब पसंद कर रहे हैं.
इन नई पीढ़ियों को वह अपने जैसा और मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक माहौल से मेल खाता लगता है. बूमर्स और जेन-एक्स इसे अमेरिकी पहचान को कमजोर करना कह रहे हैं. फिल्म में जब करुणा, अंतर्द्वंद्व और राजनीतिक व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं, तो वे इसे ‘वोक’, ‘एंटी-अमेरिकन’ या ‘सॉफ्ट’ कहकर चिढ़ाते हैं. गन उसे ‘प्रवासी’ करार देते हैं, तो उनके साथ दक्षिणपंथी भी उसे ‘सुपरवोक’ कहने लगते हैं. लेकिन, नई पीढ़ी यानी मिलेनियल, जेन-जी उसे आत्मसंशयी, अंतर्द्वंद्व से घिरे संवेदनशील, मानवीय हीरो के रूप में देखती है.
वह नायक जो सत्ता, सेना, कॉर्पोरेट की साठगांठ को लेकर चल रहे ‘युद्ध के खेल’ को लेकर इस पीढ़ी की विडंबना और दुविधा को उजागर करता है. जेम्स गन का यह ‘सुपरमैन’ उत्तर आधुनिक नायक है. वह मिलेनियल की समानुभूति और जेन-जी के नैतिक बोझ से निकला है. वह ताकतवर है, उड़ता है, परअच्छे-बुरे का फर्क जानता है, सत्ता, सरकार, हिंसा, युद्ध, कॉर्पोरेट; सब पर सवाल और संदेह करता है.
वह राष्ट्र का प्रतीक बनने के बजाय समूची मानवता के पक्ष में हैं. उसकी नैतिकता स्थायी भाव में नहीं, स्थल-काल-संदर्भ से बनती है. इसके चलते उम्मीद भी नैतिक दुविधा में फंसी है. यहीं वह मार्वल यूनिवर्स के सुपरहीरो अलग हो गया है.
जेन-जी को संवेदनशील, गहराई से सोचनेवाले किरदार चाहिए. उन्हें यह देखकर बेहतर लगता है कि सुपरहीरो केवल मसीहा नहीं होते, वे नए जमाने के संघर्ष से जूझ रहे युवा जैसे हैं. वे मानते हैं कि अगर सुपरमैन ‘गोरा मसीहा’ है, तो निरर्थक है.
उन्हें राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को चुनौती देने वाले पसंद हैं. वे राज्य की शक्ति को संदेह से देखते हैं. यहीं, अमेरिकी मिलेनियल और जेन-जी भारतीयों की समान पीढ़ियों से अलग हो जाता है. भारतीय नौजवान पीढ़ी, खासकर हिंदीपट्टी व शहरी मध्यम वर्ग, फिलहाल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सत्तोन्मुखी स्वप्नलोक में है.
उसकी चेतना फिलहाल अमेरिकी जेन-जी सरीखी आलोचनात्मक या अंतर्द्वंद्व से भरी नहीं, बल्कि सत्तानुकूल, गौरवमय अतीत की कल्पना से चलती है. ‘सुपरमैन’ जैसा उत्तर आधुनिक नायक उसे चुनौती या प्रेरणा नहीं देता, भ्रम में डालता है. भारतीय बाजार से फिल्म की महज 33 करोड़ कमाई इसे पुष्ट करती है.